धरोहरों और 'हजारों बागों' के शहर हजारीबाग से विलुप्त होते पर्यटक
एक दर्जन से भी अधिक धरोहरों, धार्मिक स्थलों, झीलों, नदियों, बांधों, पहाड़ों, हिलों, कुण्डों को अपने आप में समेटे हजारीबाग शहर का अलग हीं सौंदर्य है. इतने प्राचीनतम इतिहास से लबरेज यह शहर पर्यटन के मानचित्र पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका है.
-
Total Shares
भारत देश में प्राकृतिक सौंदर्यता की बात हो जिसमें झारखंड राज्य की अगर बात ना हो तो, ये ठीक उसी तरह से होगा जैसे अमेरिका में वाइट हाउस न हो और पेरिस में एफिल टॉवर ना हो. कश्मीर की खुबसूरत दृश्य को देखकर कभी जहांगीर ने फारसी में कहा था 'गर फिरदौस बर रुये जमी अस्त/ हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्तो'. इसका मतलब है कि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, और यहीं है. यह पंक्ति पूरी तो नहीं पर थोड़ी जरुर झारखंड पर भी फिट बैठती है. प्रकृति की गोद में समाया झारखंड और इसी राज्य में हीं एक खुबसूरत जगह हजारीबाग है जो रांची से तकरीबन 134 किमी. की दूरी पर स्थित है. यह झारखंड का 10वां सबसे बड़ा जिला है और छोटानागपुर पठार का एक भाग भी है. वहीं झारखंड की सौंदर्यता में चार चांद लगाने में हजारीबाग उसका प्रमुख केन्द्र व अहम हिस्सा है.
एक दर्जन से भी अधिक धरोहरों, धार्मिक स्थलों, झीलों, नदियों, बांधों, पहाड़ों, हिलों, कुण्डों को अपने आप में समेटे हजार बागों का शहर हजारीबाग का अलग हीं सौंदर्य व खुबसूरती है. झीलों का शहर भोपाल और नैनीताल की तरह हजारीबाग का झील भी शहर की जान है. शहर में अगर थोड़ी बहुत विकास कार्य हुए भी हैं तो एकमात्र इसी झील में. वहीं एनएच-33 पर डैम और झरनों को अपने में समेटे ‘नेशनल पार्क’ सरकार और जनप्रतिनिधियों के नजरों में ओझल हीं रहे हैं मानो काले बादलों की भांति सूर्यग्रहण लग गये हों. बौद्ध सर्किट हाऊस से जुड़ने पर यह महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हो सकता है, लेकिन जानबूझकर इसकी खुबसूरती को दो बैलों की कथा में हीरा-मोती बैलों की तरह छोड़ दिया गया है. ‘हजारीबाग झील’ शहर के दिल में स्थित है जैसे मजनू के दिल में लैला स्थित थी और रांझा के दिल में हीर. यहां नौकायन की सुविधा की शुरुआत हुई थी पर इधर के कुछ सालों से बंद पड़े हैं. नगर निगम के कर्मी इसको दोबारा चालू करना मुनासिब भी नहीं समझते हैं. सभी जनप्रतिनिधि एक दूसरे पर ठिकरा फोड़ते रहते हैं.
कैनरी पहाड़, हजारीबाग वाइल्ड लाइफ सैनचुअरी भी प्रमुख जगहों में से एक है. सूर्यकुण्ड, नरसिंहस्थान मंदिर, वहीं प्रसिद्ध छिन्नमस्तिका मंदिर जो कि राज्जरप्पा में स्थित है जो कि शक्तिपीठ भी है और यहां की मान्यता है कि जो भी लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं उनके पूर्ण हो जाते हैं. और दूर-दूर से लोग वाहन की पूजा करवाने भी आते हैं साथ हीं पशुओं का बलि देने का भी मान्यता है. ‘सताफार’ एक पुरातात्विक स्थल जो बलुआ पत्थर की चट्टानों से बना है. ‘ इसको गांव’ अपने शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है जिसके बारे में कहा जाता है मध्य पाषाण युग की है. ‘राज देरवाह’ राष्ट्रीय उद्यान में स्थित एक प्रसिद्ध स्थल है जहां एक टॉवर है जहां से आप जंगल का मनोरम दृश्य को देख सकते हैं, यहां वन फॉरेस्ट बंगला भी है जहां खाना बनाने की सुविधा भी उपलब्ध है. ‘पदमा किला’ जो कि राजगढ़ राजघराने के अंतिम राजधानी के रुप में जाना जाता है, यह आज भी वास्तुकला व शिल्प का अद्भुत उदाहरण है. मंदिरो व तालाबों का नगर इचाक को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है.
125 मंदिरों के साथ इतनी हीं संख्या में तालाब मौजूद था, हालांकि तालाब तो आज के समय में अतिक्रमित हो गए, लेकिन मंदिरों का अस्तित्व आज भी बचा हुआ है. इसी तरह बड़कागांव का बरसो पानी गुफा जहां हर वक्त पानी टपकते रहता है और ताली बजाने से यहां पानी की बारिश होती है. ‘इस्को गुफा’ जो कि हड़प्पाकालीन इतिहास को संजोए हुए है, और गुफा की दीवारों पर आज भी शब्द और कलाकृति अक्षरश: मौजूद है, आजतक कोई भी इस गुफा की लंबाई को नहीं नाप सका है. ‘मेगालिथ’ हजारीबाग मार्ग पर स्थित यह स्थल पौराणिक विज्ञान को चित्रित करता है, यहां हर वर्ष 21 जुलाई और 22 मार्च को खगोलशास्त्रियों का जमावड़ा लगा रहता है.
‘महुदी पहाड़ी’ शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध यह पहाड़ी मंदिर का विशेष महत्व है जहां शिवरात्रि के दिन भव्य मेला लगता है. ‘कनहरी पहाड़’ जो कभी कवि रविन्द्र टैगोर और फणिश्वरनाथ रेणू के लिए विशेष था. टैगोर की स्मृति में यहां एक गुबंद भी है, यह पहाड़ यहां की खुबसूरती को दर्शाने के लिए सबसे बेहतर है. इतने सौंदर्य व प्राचीनतम इतिहास से लबरेज यह शहर पर्यटन के मानचित्र पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका है और ना हीं इसका विस्तार हुआ है. एयरपोर्ट बनाकर बुद्ध सर्किट से जोड़ने की योजना हो या फिर बुढ़िया माता मंदिर और राजरप्पा भाया भद्रकाली मंदिर सर्किट की बात हो, सिर्फ आधारशिला रखकर छुयी-मुयी पेंड़ की भांति मुर्झा गया. साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड नया राज्य बना लेकिन अलग राज्य बनने के बाद हजारीबाग शहर का अपेक्षित विकास नहीं हो सका है मतलब जहां था वहीं का वहीं कायम है. अनेकों झारखंड में मुख्यमंत्री बने चाहे बीजेपी से बाबूलाल मरांडी हों, अर्जून मुंडा हों या रघुबर दास हों, वहीं झामुमो पार्टी से शिबु सोरेन हों या उनके सुपुत्र और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हों या भ्रष्टाचार में सजायाफ्ता मधु कोड़ा हों. इनमें से किन्हीं मुख्यमंत्रियों ने इस शहर को विकसित करने का समुचित प्रयास नहीं किया. हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र की महत्ता इतनी बड़ी है कि यहां से साल 1998 में सांसद बने यशवंत सिन्हा जो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे थे. फिर 2009 में लगातार दूसरे साल सांसद बने. हालांकि 2004 के चुनाव में ये हार गए थे और वहां कॉमनिस्ट पार्टी से भुवनेश्वर प्रसाद मेहता जीते थे.
2014 के चुनाव में इस सीट से यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा चुनाव जीते, जो मोदी सरकार में मंत्री वित्त राज्य मंत्री रहे. 2019 के चुनाव में भी लगातार दुसरी बार जीत दर्ज की. इनसभी सांसदों ने भी अपनी क्षेत्र में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया या ठोस पहल की हो जिससे पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा मिल सके. सरकार और जनप्रतिनिधि विकास करने में विफल कुलमिलाकर अनेकों सरकारें आयी, अनेकों मुख्यमंत्री बनें, मंत्री, सांसद, विधायक, मेयर, वार्ड-पार्षद बनें पर हजारीबाग का कायाकल्प नहीं कर सके. विकास का राग भुपाली सुर औऱ तान महज कागजों पर हीं दम तोड़ दी. अनकों वादें, हजारों परियोजनाएं/घोषणाएं सब चुनावों तक हीं गुंजती रही, अब तो घुन खा रही है. आधारशिला रखी हुई अनेकों योजनाओं का शिलान्यास तो हुआ लेकिन अंत तक कार्य पूर्ण नहीं हुए और बीच में हीं जर्जर मकान की भांति मुसलाधार बारिश में धाराशाई होकर रह गई.
योजनाओं का जन्म से पहले हीं राम नाम सत्य होकर अंतेयष्टि के राख में विलुप्त हो गया. खैर नेताजी तो नेताजी हीं होते हैं वे हर योजना को पूर्ण नहीं करना चाहते हैं क्योंकि वे अपने सिर पर सत्यवादी होने का ठप्पा नहीं लगवाना चाहते हैं. स्थानीये लोगों को पर्यटकों को आने से रोजगार मिलने की सपना बस सपना हीं रह गया, ठीक उसी तरह से जैसे त्रेता में राजा दशरथ अपने बड़े पुत्र राम को राजगद्दी सौंपकर सोंचे की अब मैं अब आराम से बाकि बचे जीवन को तीर्थ-धाम जाकर सुकूनपूर्वक व्यतीत करेंगे पर पल भर में उनकी सोंची हुई बातें धाराशाई हो गई जब कैकयी के आदेश के बाद राम 14 वर्षों के लिए वनवास को चले गए. ठीक उसी तरह आज कलयुग में भी कहीं-न-कहीं ये बातें हजारीबाग पर चरितार्थ हो रही है जहां नेता कैकयी हो गए हैं और जनता राजा दशरथ. जनता अपने आंसुओं का सैलाब लेकर रोजगार के आस में दिल को ढ़ांढ़स दिए हुए है.
बहरहाल, आत्मनिर्भर होने में समय तो लगता है पर कितना लगता है ये एक अनसुलझा रहस्य हीं है, सुलझ जाए तो जानें? हालांकि झारखंड के लोक कलाकार को भी फिल्म की सुटिंग हो या कोई गाने की सुटिंग, फोटो सुट, फोटोग्राफी, औऱ वीडियो की सुटिंग हजारीबाग जाकर करनी चाहिए खासकर युवाओं को जो कि इन चीजों को अपने सोशल मीडिया पर सर्कुलेट कर सकते हैं या युट्यूब पर अपलोड भी कर सकते हैं. जिससे देश के कोने-कोने में यहां की खुबसूरती को पहुंचाने की जरुरत है तब जाकर वहां के जनप्रतिनिधि भी जागेंगे. अनेकों प्राचानीतम इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्यता का इस अनोखे शहर को विकास की रफ्तार बुलेट ट्रेन की भांति तेज करने की जरुरत है जो अभी छुक-छुक पैसेंजर रेलगाड़ी की भांति चल रही है. ताकि यहां हजारों-लाखों लोगों की संख्या में पर्यटक और सैलानी यहां जुटे और स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिले.
आपकी राय