छात्राओं के कपड़े उतारने वाले शिक्षक नहीं, व्यापारी हैं
शिक्षा के मंदिर में शिक्षा के अलावा हर चीज उपलब्ध है. जो समर्थ हैं वो ये सब झेल सकते हैं, लेकिन फंसता है गरीब आदमी, क्योंकि उसके पास पैसा नहीं, तो क्या उसकी कोई इज्जत ही नहीं...
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चरमराई हुई शिक्षा व्यवस्था के चलते जो राज्य सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहता है, वो है बिहार. बिहार बोर्ड और नकल के बारे में तो आप काफी सुन चुके हैं लेकिन एक खबर ने अब तक की सारी खबरों को दरकिनार कर दिया. इसे अब तक की सबसे ज्यादा शर्मनाक घटना कहा जाए तो भी कम होगा, कि यूनिफॉर्म की फीस न जमा किए जाने पर एक स्कूल टीचर ने दो बच्चियों के कपड़े उतरवा लिए और उन्हें अर्धनग्न अवस्था में ही घर भेज दिया.
स्कूल में ही उतरवा ली गई बच्चियों की यूनिफॉर्म
नहीं, दोष स्कूल का कैसे हो सकता है. स्कूल तो शिक्षा का मंदिर होता है, अच्छा बुरा सिखाने वाले शिक्षक भला कैसे बुरे हो सकते हैं. दोष तो गरीबी का होता है, दोष वो होता है जब एक गरीब अपनी बच्चियों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का ख्वाब देख लेता है. इस शख्स ने भी देखा, और अपनी दोनों बच्चियों का दाखला बेगूसराय के बी.आर. एजुकेशन एकेडमी में करा दिया.
नया सेशन शुरू होने पर स्कूल की तरफ से बच्चों को यूनिफॉर्म दी गई थी जिसके पैसे परिजनों को स्कूल में जमा कराने थे. आजकल आर्थिक तंगी से गुजर रहा ये पिता अपनी दोनों बच्चियों की यूनिफॉर्म के 1,600 रुपये जुटा नहीं पाया. उसने सोचा भी नहीं होगा कि उसकी मजबूरी उसे ये दिन दिखाएगी. और स्कूल वालों की तरफ से उसे और उसकी बेटियों को उम्र भर की शर्मिंदगी दी जाएगी.
छुट्टी होने पर जब पिता बच्चियों को लेने स्कूल पहुंचे तो उन्हें पैसे के लिए बोला गया, पिता ने कहा कि वो कल पैसा जमा करा देंगे, लेकिन स्कूल की टीचर को एक और दिन का भी इंतजार गंवारा नहीं था, उन्होंने कहा कि अभी जमा करवाएं नहीं तो बिना कपड़ों के बच्चियों को लेकर जाएं, और बच्चों से कपड़े खोलने के लिए कहा. जब बच्चों ने कपड़े नहीं खोले तो कमरे में ले जाकर टीचर ने बच्चों की यूनिफॉर्म उतारी और उन्हें अर्धनग्न अवस्था में पिता के साथ रवाना कर दिया.
ये दोनों बच्चियां नर्सरी और पहली कक्षा में पढ़ती हैं और इनकी उम्र 5 और 6 वर्ष है. पर स्कूल की टीचर के इस व्यवहार से दोनों बच्चियां सदमे में हैं, वो इसपर प्रतिक्रिया तो नहीं दे सकतीं लेकिन इतना तो तय है कि उनके कोमल मन पर इस घटना के निशान ताउम्र बने रहेंगे. रही बात उस पिता की, तो उसकी नजरों से भी शर्मिंदगी का ये नजारा कभी ओझल नहीं हो पाएगा.
शिकायत भी की गई, स्कूल टीचर और प्रिंसिपल को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लिया गया, लेकिन नतीजा क्या निकला, दोष किसका? बिहार हो, या कोई भी दूसरा राज्य शिक्षा को व्यापार बनाने के कई कारखाने बिना किसी एफिलिएशन के हर गली मोहल्ले में खुले हुए हैं, इनपर किसी की लगाम नहीं. पहले तो मनमानी फीस, फिर कमीशन के चलते यूनिफॉर्म और स्टेशनरी भी स्कूल से ही मिलेगी वाली मजबूरी हर माता-पिता को झेलनी पड़ रही है. शिक्षा के मंदिर में शिक्षा के अलावा हर चीज अवेलेबल है. जो समर्थ हैं वो ये सब झेल सकते हैं, लेकिन फंसता है गरीब आदमी, क्योंकि उसके पास पैसा नहीं, तो उसकी कोई इज्जत ही नहीं... स्वार्थ के मद में चूर शिक्षक इस तरह के काम करके अपनी अस्मिता खो रहे हैं. और वहीं इस तरह के मामले सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
ऐसे मामलों की कोई गिनती नहीं, बिहार से अब ये खबरें आम हैं. शिक्षा व्यवस्था पर बिहार सरकार का ये बेपरवाह रवैया एक लचर शासन की ओर इशारा कर रहा है, जो न जनता के हित में है और सरकार के हित में तो कतई नहीं है.
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