भारत का भविष्य अब 'गाड़ी' के नीचे आ रहा है..
पूरे भारत में गाड़ियों की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ी है कि आंकड़े काफी चिंताजनक होते जा रहे हैं. इस समय परिवारों से ज्यादा गाड़ियां बढ़ रही हैं और मौजूदा आंकड़े भारत के भविष्य को दिखा रहे हैं!
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भारत में घर ज्यादा हैं या गाड़ियां? ये सवाल बड़ा पेचीदा लगेगा और आपका सीधा सा जवाब होगा घर. क्योंकि जनसंख्या को देखें तो गाड़ियां कम ही निकलेंगी. पर अगर आपसे कहा जाए कि ये अनुमान और इस बात से जुड़े आंकड़े तेज़ी से बदल रहे हैं तो? ताज़ा मामला पुणे का है. महाराष्ट्रा के इस शहर में गाड़ियों की संख्या पुणे की मौजूदा जनसंख्या से ज्यादा हो गई है.
रीजनल ट्रैफिक ऑफिस MH-12 के मुताबिक पुणे की जनसंख्या 35 लाख है और यहां रजिस्टर्ड गाड़ियों की संख्या 36.2 लाख हो गई है. इसमें अधिकतर टू-व्हीलर गाड़ियां हैं. इसका मतलब शहर में कम से कम एक गाड़ी प्रति व्यक्ति के हिसाब से है और कुछ मामलों में प्रति व्यक्ति दो गाड़ियां हैं. इसमें सबसे ज्यादा ग्रोथ टैक्सी और कैब सेग्मेंट में है. पिछले साल के मुकाबले इस साल 25% ज्यादा टैक्सी और कैब पुणे में रजिस्टर की गईं.
ये तो थी पुणे की बात, लेकिन पूरे भारत का क्या हाल है कोई जानता है? पूरे भारत में गाड़ियों की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ी है कि आंकड़े काफी चिंताजनक होते जा रहे हैं.
औसत कितनी गाड़ियां...
2001 से लेकर 2015 के बीच प्रति 1000 लोग गाड़ियों की संख्या में तेज़ी से इजाफा हुआ है और अब तो हालात और बद से बद्तर होते जा रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में रजिस्टर्ड गाड़ियों की संख्या प्रति 1000 लोग 2001 में 53 थी. ये 2002 में 56 हो गई थी और 2015 तक ये 167 पहुंच गई थी.
ये ग्राफ दिखाता है कि 14 सालों में किस हद तक गाड़ियां बढ़ी हैं. भारत में पर्सनल गाड़ियों की संख्या में ऐसा इजाफा हो रहा है जो भारत को दुनिया के कुछ सबसे बड़े ऑटो मार्केट्स में से एक बना रहा है. 2016-17 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2 करोड़ से ज्यादा पैसेंजर गाड़ियों को बनाया गया. इसमें थ्री व्हीलर, पब्लिक ट्रांसपोर्ट शामिल नहीं है. अगर सभी जोड़ दिए जाएं तो कुल 25,316,044 गाड़ियों का प्रोडक्शन हुआ (Siam की रिपोर्ट के अनुसार). इससे भारत की औसत गाड़ियों की संख्या 220 करोड़ से ऊपर हो गई. अगर इसमें थ्री व्हीलर और ट्रक आदि शामिल कर लिए जाएं तो ये संख्या 250 करोड़ से ज्यादा का आंकड़ा पार कर जाएगी.
एक परिवार के पास औसत कितनी गाड़ियां?
अगर यहां सिर्फ परिवारों की बात करें 2011 के सेंसस डेटा के अनुसार भारत के औसत कार वाले घर सिर्प 5% थे. ये आंकड़ा 2016 में 11% हो चुका था (ICE 360° सर्वे के मुताबिक). सिर्फ कार ही नहीं, टू-व्हीलर की संख्या भी 15% तक बढ़ी है
सोर्स: Livemint
अपर मिडिल क्लास और हाई क्लास भारत की सबसे ज्यादा कारें और लगभग एक तिहाई टू-व्हीलर के मालिक हैं. इसमें से टॉप 10% के पास देश की 46% कारें हैं और 22% टू-व्हीलर हैं. सबसे निचला तबका जो लगभग 20% हिस्सा है वो साइकिल से काम चलाते हैं.
कितना नुकसान होता है गाड़ियों के कारण?
अब बारी है सबसे अहम मुद्दे की. इन गाड़ियों के कारण नुकसान कितना होता है? इसे मोटे-मोटे तौर पर देखें तो गाड़ियों के कारण तीन बड़े नुकसान होते हैं. पहला ट्रैफिक, दूसरा प्रदूषण और तीसरा एक्सिडेंट.
1: ट्रैफिक के कारण..
ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (TCI) और IIM-कलकत्ता की एक स्टडी के मुताबिक भारत में हर साल ट्रैफिक जाम और देरी के कारण 21.3 बिलियन डॉलर (लगभग 1,384 करोड़ रुपए) का नुकसान होता है. इसमें से 6.6 बिलियन सिर्फ डॉलर नुकसान देरी के कारण होता है और सालाना 14.7 बिलियन डॉलर (लगभग 954 करोड़ रुपए) का नुकसान ट्रैफिक जाम के कारण बढ़े हुए ईंधन खर्च के कारण होता है.
हर हफ्ते 108 रुपए ज्यादा खर्च...
एक उदाहरण के तौर पर समझिए अगर दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 70 रुपए प्रति लीटर है और कार का माइलेज 15 किलोमीटर प्रति लीटर है. मान लीजिए 20 किलोमीटर जाना है तो 93 रुपए का पेट्रोल लगेगा. एक औसत ट्रैफिक जाम 20% ज्यादा पेट्रोल का खर्च लेता है तो वही 20 किलोमीटर अब 111 रुपए में पहुंचेंगे. अब इस हिसाब से देखें तो अगर हफ्ते के 6 दिन ट्रैफिक में फंसे रहे तो 108 रुपए ज्यादा हर हफ्ते देने पड़ेंगे. अब महीने और साल का हिसाब खुद ही लगा लीजिए.
2: प्रदूषण...
इसका भी सबसे अच्छा उदाहरण दिल्ली ही है. दिल्ली में पिछले 10 सालों में 70% ज्यादा प्रदूषण बढ़ गया है जिसका अहम कारण गाड़ियां ही हैं. सबसे ज्यादा रेवेन्यु बढ़ाने वाले मार्केट्स में से एक ऑटोमोबाइल मार्केट की 250 करोड़ गाड़ियां रोज़ कितना प्रदूषण बढ़ाती होंगी इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. 2010 के आंकड़ों के मुताबिक एयर पॉल्यूषण के कारण साल में सांस से जुड़ी और दिल से जुड़ी बीमारियों की वजह से 620,000 मौतें हुईं. भारत की जीडीपी का 3 प्रतिशत हिस्सा एयर पॉल्यूशन से जुड़ी बीमारियों में खर्च होता है.
3: एक्सिडेंट..
एक गैर सरकारी आंकड़े के मुताबिक भारत में हर रोज़ 16 बच्चे रोड एक्सिडेंट के कारण मारे जाते हैं. सिर्फ दिल्ली में ही 5 जाने रोज़ एक्सिडेंट के कारण जा रही हैं. हर चार मिनट में भारत में एक मौत रोड एक्सिडेंट के कारण हो रही है. 1214 टूव्हीलर एक्सिडेंट रोज़ भारत में हो रहे हैं. ये आंकड़े लगातार बढ़ते ही चले जा रहे हैं.
सिर्फ दिल्ली ही नहीं मुंबई, बेंगलुरू, चेन्नई भी ट्रैफिक, एक्सिडेंट और प्रदूषण की समस्या से गुज़र रहे हैं. हर शहर के अपने अलग आंकड़े हैं और ये काफी चिंताजनक हैं.
पुणे, भोपाल, इंदौर, अहमदाबाद भी पीछे नहीं..
पुणे ही नहीं भोपाल, इंदौर, अहमदाबाद जैसे शहरों में भी अब ट्रैफिक की समस्या बढ़ने लगी है. गाड़ियों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ आम शहरों में भी ये हालात हैं कि रोज़ाना गाड़ी चलाना महंगा पड़ने लगा है. इन शहरों में सबसे ज्यादा टू-व्हीलर का इस्तेमाल किया जाता है.
ये आंकड़े नहीं भारत की सच्चाई है. वो भारत जो डेवलपमेंट के नाम पर तेज़ी से पश्चिमी आदतों को अपना रहा है. वो भारत जहां जगह तो कम है, लेकिन लोग ज्यादा हैं, वो भारत जहां जनसंख्या दुनिया में सबसे ज्यादा होने की कगार पर है. अमेरिका में अगर हर इंसान के पास गाड़ी है तो वहां न तो इतनी आबादी है और न ही वहां इतनी कम जमीन, लेकिन कौन समझाए? पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने से बेहतर लोगों को अपनी गाड़ी में जाना लगता है, लेकिन असल समस्या कोई समझना नहीं चाहता. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की दिक्कतों और भीड़ से बचने के लिए लोग सड़कों पर गाड़ियां लेकर निकल जाते हैं. अगर घर के पास किसी जगह जाना है तो भी कई लोग अपनी कार निकालते हैं. अकेले इंसान के लिए भी हवाई-जहाज जैसी विशालकाय गाड़ी को सड़क पर उतारा जाता है. अगर भारत में गाड़ियां इसी तरह से बढ़ती रहीं तो नई गाड़ी और शो ऑफ के चक्कर में हम अपना ही भविष्य बर्बाद कर लेंगे.
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