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Updated: 08 जुलाई, 2017 06:10 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा की फिल्म 'जब हैरी मेट सेजल' के प्रोमो में शब्द 'इंटरकोर्स' (संभोग) का इस्तेमाल किया गया है, जिसे पहलाज निहलानी को आपत्ति थी. उनका कहना था कि बच्चे अगर इस शब्द के बारे में माता-पिता से पूछेंगे तो ?? हालांकि पहलाज जी की बात से समाज का एक बड़ा वर्ग इत्तेफाक नहीं रखता. लोगों को इंटरकोर्स शब्द से कोई परेशानी नहीं और आज का समाज इस शब्द को एक बेहद सामान्य शब्द ही मानता है. रैपर और एक्टिविस्ट सोफिया अशरफ ने भी एक 'एडल्ट मूवी' के जरिए ये बात लोगों के सामने रखी कि क्यों माता-पिता का अपने बच्चों से सेक्स पर बात करना जरूरी है.

इसी कड़ी में एक और वीडियो इंटरनेट पर धूम मचा रहा है. जिसमें दिखाया गया है कि जब माता-पिता ने पहली बार अपने बच्चों से सेक्स पर बातचीत की तो उनके लिए ये कितना मुश्किल रहा, किस तरह उन्होंने बच्चों को 'इंटरकोर्स' के बारे में समझाया और बच्चों की तरफ से कैसे-कैसे रिएक्शन्स देखने को मिले.

children, sexकुछ बच्चों के रिएक्शन्स बड़े कमाल के थे

यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि कुछ बच्चों को उनके साथी पहले ही सेक्स के बारे में जानकारी दे चुके थे, जो एक बच्चे की दृष्टि से कितनी अपर्याप्त थी आप अंदाजा लगा सकते हैं.  

जब बच्चों से पूछा गया 'क्या तुम्हें पता है कि बच्चे कैसे बनते हैं? तो एक ने कहा 'हां मैं जानता हूं कि इंसान पानी से बना होता है.' एक बच्ची ने कहा उसे भगवान बनाते हैं, भगवान ही उसे पैदा होने के लिए पेट में रखते हैं'.

children, sexहैरान कर देंगे बच्चों के मासूम जवाब

माता-पिता ने ये भी पूछा कि महिला और पुरुष अलग-अलग कैसे होते हैं. तो भी बच्चों के जवाब हैरान करने वाले थे.

देखिए वीडियो-

कुछ लोगों को ये भले ही अजीब लगे लेकिन माता-पिता अपने बच्चों के साथ कंफर्ट लेवल पर जाकर एक स्वस्थ बातचीत को अंजाम दे सकते हैं. शुरुआत में आपको भी बच्चों की ऐसी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं, लेकिन यकीन मानें तो ये बातचीत बच्चों के लिए बेहद जरूरी है.

क्यों??

पहली बात तो ये कि बच्चे अच्छे और बुरे स्पर्श में अंतर समझने लगेंगे, वो किसी के बहकावे में नहीं आएंगे, शोषित होने से बचेंगे. वो आपसे खुले हुए होंगे तो कम से कम वो घर आकर आपको ये तो बता पाएंगे कि उनके साथ कहीं कोई ज्यादती तो नहीं कर रहा.

दूसरी बात, दोस्तों या इंटरनेट से आधा अधूरा ज्ञान मिलने से बेहतर क्या ये नहीं कि उन्हें सेक्स के बारे में सही से बाताया जाए. भारतीय समाज इसे स्वाकारने में भले ही हिचके, लेकिन अब ऐसा समय नहीं रहा कि बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए, बच्चों के साथ होने वाली यौन शोषण की घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि अब बच्चों का दोस्त बनकर ही हम उनकी हिफाजत कर सकते हैं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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