इस्लाम और शिव कनेक्शन: काबा में होती थी मूर्ति पूजा?
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घर वापसी, धार्मिक कट्टरपंथ पर जैसी ठनी हुई है, अगर उसके बीच जमीयत ए उलेमा के मुफ्ती मोहम्मद इलियास यदि भगवान शिव को मुसलमानों का पहला पैगंबर कह दें तो हंगामा तो होगा ही. लेकिन गूगल पर सर्च करिए काबा और भगवान शिव. आधे सेकंड में 36 हजार रिजल्ट सामने होंगे. हर वेबसाइट के अपने दावे, अपने तर्क. बहस ऐसी ही अनंत, जैसे भगवान है या नहीं. उतनी ही आक्रामक, जैसे ईशनिंदा. तो कुछ सच्चाई है या सब रोचक ही है.
1. पीएन ओक ने एक किताब लिखकर समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले से मूर्ति पूजा होती थी. हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे. गहन रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है. पैगंबर मोहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां तोड़ी थीं.
2. यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है. पूर्व में इन दोनों ही देशों की सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था. ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं.
3. हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं. इस पत्थर के बारे में ही कहा जाता है कि यह शिव लिंग था. जो इस्लाम के वहां आने से पुराना है. हालांकि, मुस्लिम मानते हैं कि इस पत्थर को आदम और ईव के साथ जन्नत से भेजा गया था. इस पत्थर के आसपास अब चांदी की फ्रेमिंग कर दी गई है. वैसे ही जैसे कई शिवलिंग के आसपास जलाधरी की होती है.
4. इस्लाम से पहले मिडिल-ईस्ट में पीगन जनजाति रहती थी. वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी. मूर्ति पूजा उसमें से एक थी. पैगंबर मोहम्मद का मक्का में इन्हीं लोगों से विवाद हुआ और वे मदीना चले गए. फिर वहां से ताकतवर होकर लौटे और मक्का में इस्लाम कायम किया. और मूर्ति पूजा बंद करा दी.
5. किसी हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है. यह परंपरा इस्लाम के आने से पहले से जारी है.
सिर्फ यही नहीं, हजारों तर्क-कुतर्क हैं. वेबसाइट, ब्लॉग भरे हुए हैं. यह दावा करने के लिए कि इस्लाम की उत्पत्ति हिंदू धर्म से ही हुई है. और बराबरी से जवाब दिया जाता है कि इस्लाम तो आदम के साथ स्वर्ग से आया. पता नहीं, इस बहस में कोई जीत भी गया तो हासिल क्या होगा?
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