अकेले में पोर्न देखना गलत कैसे हो सकता है!
क्या एक इंसान का अपने घर के अंदर पोर्न देखना गुनाह है? सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. पॉर्न पर प्रतिबंध लगे न लगे लेकिन सुप्रीम कोर्ट का सवाल सवा लाख का है. बड़ा दिलचस्प होगा सरकार का पक्ष देखना...
-
Total Shares
- भारत की सभ्यता-संस्कृति क्या है? यही हमारे संस्कार हैं? क्या हमारी सोच यहीं पर जा कर अटक जाती है?
- आखिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी कोई चीज है. प्रतिबंध से क्या संविधान की धारा 21 का उल्लंघन नहीं होगा?
पोर्न पर प्रतिबंध हो या नहीं, इस पर आम जनता के बीच बहस के यही दो पहलू निकल कर सामने आते हैं. सुप्रीम कोर्ट हालांकि एक कदम आगे जाकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर पूछ डालती है - क्या एक इंसान का अपने घर के अंदर पोर्न देखना गुनाह है?
पोर्न पर प्रतिबंध लगे न लगे लेकिन सुप्रीम कोर्ट का सवाल सवा लाख का सवाल है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर यह मान भी लिया जाए कि पोर्न देखना सामाजिक रूप से गलत है तो क्या हम हर उस गलत चीज पर बैन लगा पाते हैं, जिसे समाज बुरा मानता है? उदाहरण के तौर पर रेप करना गलत है और मर्द रेप करते हैं. तो क्या हम पूरी मर्द प्रजाति पर ही प्रतिबंध लगा देते हैं? नहीं न! ठीक ऐसे ही पोर्न से पनपने वाली गंदगी और क्राइम को खत्म करने पर बहस होनी चाहिए, न कि पोर्न की पहुंच को ही रोक दिया जाए.
पोर्न हमेशा गलत हो जरूरी नहीं
क्या कोई भी चीज सिर्फ और सिर्फ बुरी या सिर्फ और सिर्फ अच्छी हो सकती है? कभी नहीं. चीजें हमेशा ग्रे होती हैं. न परफेक्ट ब्लैक, न परफेक्ट वॉइट. पोर्न भी इस सिद्धांत से परे नहीं है. इसे ऐसे समझते हैं - एक अपराधी जबरन किसी को ब्लैकमेल करने के लिए पोर्न या एमएमएस बनाता है तो यह गलत है. लेकिन क्या तब भी यह उतना ही गलत होगा जब इसे इंटरटेनमेंट के लिए बनाया जाए! घर के अंदर प्रेमी जोड़ों का इसे देखना और एंजॉय करना किस एंगल से गलत माना जाएगा? पोर्न देखकर यौन कुंठा से ग्रसित होना और रेप को अंजाम देना गलत हो सकता है लेकिन इसे देखने के बाद हस्तमैथुन कर यौन सुख की प्राप्ति गलत कैसे हो सकती है?
कामसूत्र और खजुराहो का देश
हमारे देश में यौन संबंध और इससे जुड़े विचार हमेशा से साहित्य और कला के साथ-साथ चले हैं. खजुराहो या कामसूत्र यूरोप या बिलायत की देन नहीं है. यह हमारे साहित्यकारों और कलाप्रेमियों की देन है, जिसे सैकड़ों साल पहले के समाज में सराहा भी गया और यथोचित सम्मान के साथ स्थान भी दिया गया. भारतीय समाज में यौन संबंधों को न सिर्फ स्वीकार किया गया है बल्कि इसके आयामों को बढ़ाने के लिए इस पर सार्थक बहस भी की गई है. प्राचीन साहित्यों को उठाकर देख लें, स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.
पोर्न पर सुप्रीम कोर्ट भी उहापोह की स्थिति में
सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी उसके पुराने फैसले से एकदम अलग है. हाल के आदेश में मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू ने भारत में सभी पोर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने इसे निजी स्वतंत्रता का मामला बताया और कहा कि ऐसा करने से संविधान के अनुच्छेद- 21 के तहत लोगों को व्यक्तिगत आजादी पर सवाल खड़े हो जाएंगे. उन्होंने यह भी पूछा कि किसी बालिग को आप बंद कमरे में कुछ भी देखने से कैसे रोक सकते हैं? हालांकि 2014 में तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जस्टिस आर.एम. लोढा ने सुनवाई के दौरान पोर्न संबंधी ऑनलाइन कॉन्टेंट को ब्लॉक करने के लिए सख्त कानून बनाए जाने पर सहमति जताई थी.
सही है कि सुप्रीम कोर्ट उहापोह की स्थिति में है. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछला फैसला लोगों की आजादी पर सवाल खड़े करता. अनुच्छेद- 21 के तहत मिलने वाले अधिकार का हनन होता. उहापोह ही सही लेकिन हालिया फैसला स्वागत-योग्य है. अब गेंद सरकार के पाले में है. दिलचस्प होगा देखना कि सरकार का क्या रूख रहने वाला है...
आपकी राय