गोरखपुर जैसे मामले होते रहेंगे क्योंकि दोष हमारा भी कम नहीं...
कानून का इकबाल इस देश में तभी हो सकता है जब वीआईपी से लेकर आम आदमी तक की औकात कानूनी मामले में एक हो. लेकिन जब कानून जाति, धर्म, भाई-भतीजावाद, बाहुबल, धन के नाम पर बनाये जाते हैं तो उनका प्रभाव भी वैसा ही होता है.
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गोरखपुर में जो घटना हुई है, ऐसी ही एक घटना पहले इंदौर में भी हुई थी. लंबे समय तक इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं निकलेगा, क्योंकि हम लोग असल समाधान चाहते ही नहीं हैं. हम लोग ऐसी घटनाओं के बाद केवल अपने राजनैतिक विरोधियों की खाल खींचने की कोशिश करते हैं और इसी में इतिश्री कर लेते है.
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लेकिन समस्या का समाधान कहीं दूर नहीं, खुद के अंदर है. इन घटनाओं के दोषी हम लोग भी हैं, हम जाति के नाम पर लोगों को चुनते हैं, धर्म के नाम पर चुनते हैं, भ्रष्ट और अपराधियों को अपना प्रतिनिधि बनाते हैं, इसलिए क्योंकि वो लोग हमारे छोटे-मोटे लालचों को पूरा करते हैं. बदले में हमारी सांसे छीनी जाती हैं लेकिन हम इसका अंदाजा नहीं लगा पाते कि हमारी चिंदीचोरी में हमने अपने बच्चों का भविष्य ही गिरवी रख दिया है. सड़-गले लोग जब प्रतिनिधि बन कर आते हैं तो नियम, कानून भी सड़-गल जाते हैं.
कानून का इकबाल इस देश में तभी हो सकता है जब वीआईपी से लेकर आम आदमी तक की औकात कानूनी मामले में एक हो. लेकिन जब कानून जाति, धर्म, भाई-भतीजावाद, बाहुबल, धन के नाम पर बनाये जाते हैं तो उनका प्रभाव भी वैसा ही होता है. वोट बैंक की राजनीति, प्रशासनिक निर्णय एंव नीति निर्माण को भ्रष्ट कर देती है, इसका परिणाम ये होता है कि हमेशा किसी एक का पेट दूसरे की रोटी छीनकर भर जाता है. पेट उसका भर जाता है जो वोट बैंक है और रोटी उसकी छीनी जाती है जो वोट बैंक नहीं है. सरकारें बदलती हैं, रोटी और पेट भी वोट बैंक के हिसाब से बदलते हैं. भूख और गरीबी सालों साल इस डर्टी डांस को देखती रहती है.
यहीं से हमारी असफलता शुरु हो जाती है, ऐसे में सिस्टम में अपनी जगह बनाने के लिए लोग बड़ी कीमतें चुकाते हैं और बदले में हजार गुना ज्यादा कीमत वसूलते हैं. भ्रष्टाचार का बीज बोकर हम ईमानदारी, मानवता, संवेदनशीलता, तटस्थता की मांग करते हैं तो हम जिंदा मक्खी निगलने का काम करते हैं.
एक करोड़पति थे उनको केवल कुछ गुप्त रोग थे, इसके अलावा उन्हें चिकित्साशास्त्र के बारे में कुछ नहीं पता था, अपने इलाज के दौरान उन्हें पता चला कि इसमें लाखों की कमाई होती है, साहब ने अपना इलाज कराने के साथ आधा दर्जन प्राइवेट अस्पताल खोल दिए. क्या आपको उम्मीद है ऐसे लोग मानव कल्याण करेंगे. चुनावों के समय हमारी राजनैतिक पसंद मुर्गी, बकरी चुराने वाले लोग होते हैं, और हमको उम्मीद है कि वो हमारी सांसों की चोरी नहीं होने देंगे.
आकड़ों को खंगालेंगे तो आप जान पाएंगे कि सड़क में छीना-झपटी करने वाले लोग तक इस देश में किसी राज्य में मंत्री तक बने हैं, ऐसे लोग आपके परिवार की रक्षा किन आदर्शों के साथ करेंगे और क्यों करेंगे, किस मुगालते में हैं हम. हमने खुद इनको वोट देकर चुना है, इसलिए जिम्मेदारी भी हमारी ही है. प्रशासनिक तंत्र जाति, धर्म के नाम पर होने वाले नीतिगत अंतरों से सड़ चुका है और आप अपेक्षा करते हैं कि वो तटस्थ रहकर सबके लिए काम करेंगे.
सिर्फ अंधेरा है आपकी आंखो का, ये देश अभी स्वतंत्रता की एक दूसरी लड़ाई लड़ रहा है. ये देश लड़ रहा है अपने अंदर की गंदगी से और वो तब तक दूर नहीं होगी जब तक हम सब खुद को नहीं सुधारेंगे, दूसरे के व्यक्तित्व से निकले मल से सबको बदबू आती है, लेकिन अपनी बुराई के मल की बदबू और सड़ांध पहचानकर दूसरों के ऊपर फेंकना बंद कीजिये. इसे सार्वजनिक फैलाना रोक दीजिये. अब जिम्मेदारी अपने हाथों में लीजिये और नयी पीढ़ी को वो गंदगी न दीजिये जिससे होकर आप गुजरे हैं. और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते है तो अगली पीढ़ी से आपको सम्मान पाने का कोई हक नहीं है.
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