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Updated: 18 जनवरी, 2017 07:06 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर में एक प्रमिका ने अपनी पूर्व प्रेमी के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया है, साथ ही उसके चेहरे पर चाकुओं से कई वार भी किये हैं. आगे बढ़ने से पहले आपको अवगत करा दें कि इस घटना पर जहां फेमिनिस्ट बिरादरी खुश है तो वहीं समाज का वो तबका खासा परेशान है जो स्त्री पुरुष दोनों की बराबरी की बात एक साथ करता है. ऐसे लोगों का मानना है कि ये घटना सिर्फ और सिर्फ कुछ दिन पहले न्यू ईयर ईव पर बैंगलोर में लड़कियों के साथ हुई छेड़छाड़ का बदला है.

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 पेशे से नर्स लीडिया ने अपने प्रमी के चेहरे पर एसिड डाल दिया 

ज्ञात हो कि बीते दिनों बैंगलोर में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने शहर की जनता के साथ-साथ पुलिस प्रशासन को भी चिंता और अचरज में डाल दिया है. बताया जा रहा है कि बैंगलोर के श्रीरामपुरा में रहने वाली 26 वर्षीय स्त्री और पेशे से नर्स लीडिया ने विजयनगर में रहने वाले अपने प्रमी जयकुमार 30 वर्ष के चेहरे पर एसिड डाल दिया है, साथ ही महिला द्वारा युवक के चेहरे पर चाकू से कई वार भी किये गए हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते 4 वर्षों से महिला पुरुष संग रिलेशनशिप में थी और लगातार शादी करने का दबाव बना रही थी जिसे युवक द्वारा अलग-अलग बहाने बनाकर खारिज किए जा रहा था और अभी हाल ही में दोनों का ब्रेक–अप भी हो गया था. महिला के करीबी लोगों कि मानें तो, युवक के इन बहानों से वो बहुत खफ़ा और अपने को अपमानित महसूस कर रही थी जिसके चलते उसने इस घटना को अंजाम दिया. घटना की जानकारी मिलने पर पुलिस द्वारा महिला को धारा 326 (a) के तहत गिरफ्तार कर लिया है साथ ही स्थानीय राहगीरों द्वारा गंभीर रूप से घायल युवक को केसी जनरल हॉस्पिटल में उपचार के लिए भर्ती कराया है. फिलहाल युवक खतरे से बाहर है.

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बैंगलोर में हुई अपनी तरह की इस पहली वारदात में समाज के अलग-अलग वर्गों में रह रहे लोगों के अपने तर्क हैं और साथ ही लोग इसे न्यू ईयर ईव पर बैंगलोर में लड़कियों के साथ हुई छेड़छाड़ का बदला मानते हुए इसे एक सही कदम बता रहे हैं. ऐसे लोगों का मानना है कि ये बात इस बात की ज़िंदा मिसाल है कि पूर्व में अपने साथ हुए अन्याय को देखकर आजकी लड़कियां मजबूत हो रही हैं जो अपने हक के लिए लड़ना जानती हैं. तो वहीं दूसरी तरफ समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो इस घटना को इंसानियत पर तमाचा मानते हुए इसकी कड़े शब्दों में निंदा कर रहा है.

चाहे बैंगलोर में घटित हुई ये घटना अच्छी हो या बुरी मगर इस घटना के बाद, एक बात तो साफ है कि अब समाज में न तो स्त्री ही सुरक्षित है और न ही पुरुष. जिसका भी पलड़ा भारी है वो अपने स्तर से तंत्र को प्रभावित करने का प्रयास कर रहा है. अंत में ये भी कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में हर व्यक्ति अपने को पुलिस से लेके जज सबकुछ मान बैठा है और उसे इस बात का ज़रा भी अंदेशा नहीं है कि समय में न्यायपालिका नाम की भी कोई चीज होती है.

समाज रूपी साइकिल में, स्त्री और पुरुष पहिये की तरह हैं. यदि किसी कारणवश एक पहिया बेकार हो जाए तो साइकिल को आगे नहीं ले जाया जा सकता. कह सकते हैं कि, एक की खराबी पूरी प्रक्रिया को प्रभावित कर देती है. हम तभी हैं जब हमारे पास समाज है, समाज को परिभाषित करते हुए अरस्तु ने कहा था कि यदि व्यक्ति के पास से उसका समाज अलग कर दें तो निश्चित ही व्यक्ति पशु के तुल्य है.

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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