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Updated: 22 मई, 2015 08:00 AM
न्यूजफ्लिक्स
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बाल मजदूरी को लेकर कानून में बदलाव की बात चल रही है. केंद्र की मोदी सरकार अगर बाल मजदूरी कानून में नए संशोधन का प्रस्ताव लाती है तो आखिर क्या होगा देश के लाखों बच्चों का भविष्य? नजर डालिए यहां-

दो कदम पीछे सरकार

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नए संशोधन के मुताबिक स्कूल से पहले या बाद के समय, 14 साल तक के बच्चे अपने परिवार के साथ खेत, जंगल, घर और मनोरजंन के क्षेत्र में हाथ बंटा सकते हैं.

काम में पिसता बचपन

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अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वालों बच्चों के औसत पर अगर नजर डाली जाए तो उनकी तादाद कृ‌षि क्षेत्र में 69.5%, उद्योगों में 17.5% और सेवा क्षेत्र में 13% है. इसमें घरों में काम करने वाले 5 से 14 साल तक के बच्चे भी शामिल हैं.

दांव पर भविष्य

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अभी तक 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा पाने का अधिकार है लेकिन इस संशोधन से शिक्षा के अधिकार पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में 63.5% लड़कियां बीच में ही स्कूली पढ़ाई छोड़ देती हैं. लड़कियों के स्कूल छोड़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण घरेलू काम होता है.

गरीबी से घिरा भविष्य

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ज़्यादातर बाल मज़दूर बिना किसी कौशल, हाथ का काम सीखते हैं. इसी कारण जवानी तक उन्हें कम मज़दूरी या बेरोजगारी में ज़िंदगी बितानी पड़ती है. 2011 में युवाओं में "गैर-श्रमिकों" का अनुपात करीब 40% था. इनमें से 60.5% गैर श्रमिक घरेलू काम या दूसरों पर आश्रित थे. युवा वर्ग कहें तो इसमें 20 से 34 वर्ष के लोग शामिल हैं.

शोषण की दास्तां

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18 साल से कम उम्र के बच्चे बाल मज़दूरी कानून के तहत नहीं आएंगे तो इसका लाभ उठाकर मालिक, दुर्घटना के समय अपना पल्ला झाड़ सकता है. आमतौर पर मज़दूरी के लिए बच्चे पहली पसंद होते हैं क्योंकि वह सस्ते में उपलब्ध होते हैं. उद्योग क्षेत्र में एक बाल मजदूर 10 रुपए प्रति घंटा कमाता है. इस कानून का फायदा उठाकर कोई भी संस्था बाल "पारिवारिक व्यापार" के नाम पर बाल मज़दूरी को बढ़ावा दे सकती है.

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