समलैंगिकता को लेकर क्या कहते हैं भारत के 6 प्रमुख धर्म
धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो, भारत में समलैंगिकता को लेकर धार्मिक मान्यताएं भी लोगों की सोच पर बड़ा असर डालती हैं. हिंदू, इस्लाम, बौद्ध, जैन, ईसाई और सिख धर्म में समलैंगिकता पर कुछ खास बातें कहीं गई हैं.
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भारत में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. धारा 377 को मनमाना और अतार्किक बताते हुए असंवैधानिक करार दिया है. समलैंगिकता एक ऐसा मुद्दा है जो मानव सभ्यता के शुरूआती काल से ही अस्तित्व में रहा है. लेकिन आधुनिक काल में ऐसे लोगों को समाज में हमेशा हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है. हाल-फिलहाल में कुछ देशों में इन्हें कानूनी मान्यता दी गई है लेकिन सामाजिक हालात में कोई ख़ास सुधार नहीं हुआ है. एक सवाल ये उठता है कि क्या समलैंगिक लोगों के लिए आम सामाजिक जीवन कभी संभव नहीं था और दुनिया के प्रमुख धर्म क्या सोचते है समलैंगिकता को लेकर.
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है.
इस्लाम में हराम है
इस्लाम में समलैंगिकता को हराम माना गया है. इसको एक गुनाह की तरह देखा जाता रहा है. इस्लामिक धार्मिक ग्रन्थ कुरान के अनुसार समलैंगिकता एक अपराध है. महिलाओं में समलैंगिक संबंधो को लेकर इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों में उतना जिक्र नहीं है लेकिन हदीस में इसका जिक्र कहीं-कहीं मिलता है. एक हदीस के अनुसार अगर कोई महिला समलैंगिक कृत्यों में लिप्त पाई जाती है तो उसको अवश्य सजा मिलनी चाहिए क्योंकि समलैंगिकता पाप है. दुनिया के जितने भी इस्लामिक देश हैं वहां समलैंगिक लोगों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है. खाड़ी देशों के अलावा अफ्रीका के कई मुस्लिम देशों में समलैंगिकता को लेकर फांसी की सजा का प्रावधान है. इन देशों में सऊदी अरब, ईरान, सूडान और यमन शामिल हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और क़तर में भी समलैंगिकता अपराध है.
हिंदू सनातन धर्म की उदारता
हिन्दू धर्म समलैंगिक लोगों को लेकर उदार रवैया रखता है. रिग वेद में समलैंगिकता को अप्राकृतिक तो माना गया है लेकिन साथ ही ये भी बताया गया है कि अप्राकृतिक संबंध भी प्रकृति का ही एक हिस्सा है. और इस पर दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए. रिग वेद में समलैंगिक की चर्चा 'विकृति: एवम प्रकृति:' शीर्षक से की गई है. प्राचीन भारतीय समाज सभी प्रकार की विविध संस्कृतियों, कलाओं और साहित्यों को अपने में समाहित किये हुये था. महादेव शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर वाला है. मिथकीय आख्यान में विष्णु का मोहिनी रूप धारण कर शिव को रिझाना किसी भी भक्त को अप्राकृतिक अनाचार नहीं लगता है. भगवान अय्यप्पा का जन्म विष्णु और शिव के मिलन से ही हुआ है, जिसमें शिव स्त्री-रूप में हैं. इसी तरह की कहानी गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ की है. उनका जन्म दो मांओं के मिलन से हुआ है.
स्त्री-पुरुष संबंध पर जहां एक से बढ़कर एक ग्रंथ हिंदू धर्म में लिखे गए हैं, तो वहीं दूसरी ओर कोणार्क, जगन्ननाथ पुरी औ खुजराहो में समलैंगिक संबंधों को दर्शाती मूर्तियां भी देखी जा सकती हैं. ये प्रदर्शित करता हैं कि प्राचीन काल में सभी तरह के यौन झुकाव खुलेतौर पर मौजूद थे. लोग इतने सहिष्णु और खुले विचारों के थे कि समलैंगिक-प्रेम की मूर्तियों को स्वतंत्रता के साथ बनाकर न सिर्फ प्रदर्शित किया, बल्कि उन्हें मंदिरों का हिस्सा भी बनाया.
ईसाई धर्म में मिश्रित विचार हैं
ईसाई धर्म के विभिन्न पंथों में समलैंगिकों को लेकर अलग- अलग मान्यताएं हैं. रोमन कैथोलिक चर्चों के अनुसार समलैंगिकता एक विकृत सोच है. समलैंगिक लोगों को पापी बताया गया है. बाइबल में Sodom शहर का जिक्र है, जिसे भगवान ने खुद तबाह किया था. किस्सा कुछ यूं है कि जब इस शहर में पाप बढ़ने लगा तो भगवान ने इसकी पड़ताल के लिए कुछ देवदूत भेजे. लेकिन यहां के पुरुषों ने इन देवदूतों का ही बलात्कार करना चाहा. वे उनके साथ समलैंगिक संबंध बनाना चाहते थे. भगवान इससे नाराज हुए और उन्होंने इस शहर को तहस-नहस कर दिया. (इस कहानी को इस्लाम मानने वाले भी पूरी निष्ठा के साथ फॉलो करते हैं, और समलैंगिकों को पापी कहते हैं.)
हालांकि, रोमन कैथोलिक मान्यताओं के उलट ऑर्थोडॉक्स चर्च तो समलैंगिकों के स्वागत की बात करते हैं. अप्राकृतिक सेक्स को इन लोगों के लिए ऑक्सीजन के रूप में बताया गया है. अगर इन्हें एक दूसरे से अलग किया गया तो ये इनके मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है. प्रोटेस्टेंट चर्च भी समलैंगिकता को लेकर उदार रवैया अपनाते हैं और समलैंगिक लोगों की शादी भी धूम-धाम से करते हैं.
बौद्ध धर्म भी उदार है
बौद्ध धर्म में पांच उपदेशों को प्रमुख माना गया है. तीसरे उपदेश में बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति को यौन दुर्व्यवहार से बचना चाहिए. लेकिन समलैंगिकता यौन दुर्व्यवहार है या नहीं, इसकी चर्चा कहीं नहीं है. हीनयान पंथ को मानने वाले बौद्ध भिक्षुओं ने समलैंगिकता को यौन दुर्व्यवहार के रूप में नहीं देखा है. जहां तक बौद्ध भिक्षुओं की बात है तो उन्हें आध्यात्मिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के सेक्स से दूर रहने को कहा गया है.
जैन धर्म में अमान्य है वह संबंध जिससे सृजन न हो
जैन धर्म के 'श्रमण' अभिलेखों में साधु-साध्वियों और आम धर्मावलंबियों के लिए यौन-संबंधों को लेकर दो टूक बातें लिखी गई हैं.
1. साधु-साध्वियों को किसी भी तरह के यौन संबंधों से दूर रहना है. यानी पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करना है.
2. आम धर्मावलंबियों के लिए उसी यौन-संबंध को सही माना गया है, जिससे संतान उत्पन्न हो सके.
3. आम लोगों को सलाह दी गई है कि वे मनोरंजन के लिए यौन-संबंध न बनाएं. ऐसा करने से वे मोहनीय कर्म के भागीदार बन जाएंगे. जो कि पतनकारक माना गया है.
यानी किसी भी हालत में जैन धर्म समलैंगिक संबंधों को मान्यता नहीं देता है. चूंकि इससे किसी तरह संतान का जन्म नहीं होता है.
सिख धर्म में लिखित मान्यता नहीं है
सिख धर्मग्रंथों में समलैंकिता को लेकर कोई लिखित मान्यता नहीं है लेकिन 2005 में कुछ सिख संगठनों ने समलैंगिकता को अपने धर्म और इसकी मान्यताओं के खिलाफ बताया था. गुरुग्रंथ साहिब में जीवन को जीने के तरीकों के बारे में बताया गया है लेकिन समलैंगिकता के ऊपर कोई टिप्पणी नहीं की गई है.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)
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