बेटी की शादी के लिए ये सब करना बंद कर दें पिता
इस बेटी ने दुनिया में जो भी देखा-समझा, बाकी सहेलियों के शादीशुदा जीवन से जो कुछ भी सीखा उसका सार यही था कि उसे शादी नहीं करनी है. और अगर शादी करनी ही है तो उसकी कछ शर्तें हैं. बेटी कहती है- पापा, अगर आपको मेरी शादी करनी है तो ये चीजें आप बिल्कुल नहीं करेंगे.
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एक पिता अपनी बेटी की शादी करना चाहते हैं, लेकिन बेटी है कि मान नहीं रही. आजकल तो ये होता ही है कि बेटियों को शादी के लिए मनाना पड़ता है. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. पहले तो 12वीं कर लेने के बाद ही पिता लड़की के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर देते थे. कभी-कभी तो 'लड़का हाथ से न निकल जाए' की वजह से लड़की की पढ़ाई बीच में ही रुक जाती थी. और लड़की बेचारी मां-बाप की मर्जी के आगे सिर झुका लेती थी. ऐसा नहीं है कि बेटियां आज अपनी मनमर्जी करती हैं, माता-पिता का मान नहीं रखतीं. लेकिन अब वो पहले जैसा समय नहीं रहा जिसकी वजह से बेटियां मजबूर हो जाया करती थीं.
आज की बेटियों को बदलते वक्त ने हिम्मत दी है. वो पढ़-लिखकर और भी परिपक्व हुई हैं. आत्मनिर्भर हैं. अपने जीवन के फैसले खुद लेने में सक्षम भी. और इसीलिए शादी करना या जीवन साथी चुनने जैसे फैसलों पर अपने दिल की बात अपने माता-पिता के आगे बेहिचक रख सकती हैं.
कुछ वचन तो पिता को भी बेटियों को देने चाहिए
आज की इस बेटी ने दुनिया में जो भी देखा-समझा, बाकी सहेलियों के शादीशुदा जीवन से जो कुछ भी सीखा उसका सार यही था कि उसे शादी नहीं करनी है. और अगर शादी करनी ही है तो उसकी कछ शर्तें हैं. बेटी कहती है- पापा, अगर आपको मेरी शादी करनी है तो ये चीजें आप बिल्कुल नहीं करेंगे.
1. पापा, शादी के लिए पैसे जोड़ना बंद कर दो
भारत में तो यही होता है कि जिस दिन घर में लड़की पैदा होती है, उसी दिन से पिता उसकी शादी के लिए पैसे जोड़ना शुरू कर देते हैं. बेटी की शादी को बड़ी जिम्मेदारी कहते हैं लेकिन सच तो ये है कि ये जीवन का सबसे बड़ा खर्च होती है, जहां माता-पिता अपने जीवन की पूंजी लगा देते हैं. इस सबसे बड़े खर्च के लिए वो अपनी जरूरतें भी कम कर लेते हैं. हर जगह से पैसे बचाते हैं क्योंकि 'बिटिया की शादी करनी है'. माता-पिता की ये स्थिति देखकर एक लड़की का दिल कितना रोता है, वही जानती है. इसलिए प्लीज ऐसा मत करो. अपने मेहनत और त्याग से जोड़े गए इन पैसों को बेटी का शादी के लिए खर्च मत करो. और बेटी पर ही खर्चना है तो उसकी शिक्षा पर करो, उसे आत्म निर्भर बनाने के लिए करो.
2. पापा, शादी के लिए डेडलाइन मत दो
आजकल के माता-पिता बेटियों को पढ़ा तो रहे हैं, डॉक्टर इंजीनियर भी बना रहे हैं. लेकिन पढ़ाई पूरी करते ही शादी का दबाव डालने लगते हैं, वो इसलिए कि समाज ने बेटियों की शादी की 'सही उम्र' निर्धारित की हुई है. लड़की अगर 30 की हो गई तो समझो उसे लड़के नहीं मिलने वाले. पापा माना कि समाजिक दबाव है आप पर लेकिन सिर्फ समाज की वजह से मुझपर शादी करने का दबाव मत डालो. शादी के लिए मेरा मानसिक रूप से तैयार होना भी जरूरी है.
3. पापा, 'अच्छे लड़के' को मेरी नजर से भी देखो
माता-पिता हमेशा अपनी बेटियों के लिए सबसे अच्छा ही चुनना चाहते हैं. उनके लिए अच्छा लड़का वही है जो आर्थिक रूप से मजबूत हो, उसका फैमिली बैकग्राउंड अच्छा हो, समाज में अच्छा मान-सम्मान हो. लेकिन मेरी नजर में अच्छे लड़की की परिभाषा थोड़ी अलग है. मेरी नजर में अच्छा लड़का वो है जो मुझे मेरे करियर को सपोर्ट करे, जब मैं भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ूं तो वो मेरी हिम्मत बने, मुझे समझे. इसलिए लड़का ढूंढें तो इस बात का भी ध्यान रखें. क्योंकि जीवन में सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत होना ही जरूरी नहीं.
कन्यादान का मतलब कन्या का दान करना नहीं
4. पापा, लड़के वालों की डिमांड पूरी न करना
वैसे तो सभी जानते हैं कि शादी में दहेज लेना और देना अपराध है. और इसीलिए सीधे-सीधे कोई दहेज नहीं मांगता. आजकल के पढ़े-लिखे लोग दहेज के खिलाफ होने की बात भी करते हैं लेकिन बड़े प्यार से अपनी डिमांड रख भी देते हैं. ये बस यही कहते हैं कि हमें तो इतने लाख की शादी करनी है. ये घर के सामान, कार जैसे महंगे तोहफों को मना भी नहीं करते क्योंकि ये तो पिता अपनी बेटी की खुशी के लिए करते ही हैं. लड़के वाले नाराज न हो जाएं, और बेटी ससुराल में खुश रहे इसके लिए माता-पिता ससुराल वालों की हर बात का ध्यान रखते हैं, कोई कमी छोड़ना नहीं चाहते. लेकिन शादी फिर भी ससुराल वालों के मन की नहीं होती, कोई न कोई कमी तो रह ही जाती है. इसलिए आप सिर्फ मेरी शादी करना, डिमांड पूरी न करना. मुझ अच्छी शिक्षा देकर और मुझे आत्मनिर्भर बनाकर आप मेरे लिए सबसे बेहतर पहले ही कर चुके हो. यही मेरे और मेरे ससुराल वालों के लिए सबसे अच्छा गिफ्ट होगा.
5. पापा, शादी पर अनाप-शनाप खर्च मत करना
मैं जानती हूं कि जब आप अपने दोस्तों के बच्चों की शादी से आते हो तो मेरी शादी के लिए भी सपने सजा लेते हो. औरों की भव्य शादियां देखकर आपकी भी इच्छा होती है कि मेरी शादी भी बढ़िया से बढ़िया कर दूं. दुनिया देखेगी, लोग क्या कहेंगे ये सब सोचकर आप अपने बजट से भी ज्यादा खर्च कर देते हैं. जिन दो लाख रुपयों को बचाने के लिए आपके कई साल लगे, वो दो लाख रुपए सिर्फ बैंकेट हॉल का एक दिन का किराया है. क्या शादी सिंपल तरह से नहीं हो सकती, जहां आप पर ये दबाव न हो कि लोग क्या कहेंगे? शादी दुनिया दिखावे के लिए नहीं मेरी खुशी के लिए करना.
6. लड़की वाले बनकर हाथ जोड़े और सिर झुकाए मत रहना
हमारे समाज में लड़की के घरवालों पर हमेशा ही लड़की के ससुराल पक्ष के आगे झुके रहने का दबाव होता है. लड़की चाहे कितनी ही पढ़ी-लिखी, आत्म निर्भर हो लेकिन समाज ने कुछ नियम बना रखे हैं जिन्हें लड़की के माता-पिता को निभाने ही पड़ते हैं. और वो नियम इस तरह के होते हैं जो समाज के सामने ये बता देते हैं कि ससुराल वाले हमेशा मायके वाले से ऊपर ही होंगे. और उनके आगे मायके वालों के बिछे ही रहना होता है. लड़की के माता-पिता हाथ जोड़कर ससुराल वालों के आगे रहते हैं. समधियों के पैर छूते हैं. कहीं कहीं तो दामादों के भी. लड़की पति के साथ मायके आए या वहां से जाए तो सारा खर्च लड़की के घरवाले उठाते हैं. लड़की को मायके भेजने के लिए ससुराल वालों की अनुमति जरूरी है, कोई मायके से लेने आएगा तभी भेजेंगे जैसे कई बेबुनियाद नियम हैं. आप अपने जीवन की सबसे कीमती चीज दूसरे के हाथों में सौंप रहे हैं. आप क्यों किसी के भी आगे झुकेंगे. ये तब होता था जब लड़कियां ससुराल वालों और पति पर आश्रित होती थीं, इसीलिए माता-पिता हर बात सिर झुकाए मानते रहते थे. बेटी को लायक बनाकर आपने सिर उठाने का काम किया है.
अपने कलेजे का टुकड़े को परायाधन कौन कहता है
7. शादी के बाद बेटी को बेटी ही समझना, पराया धन नहीं हूं मैं
बेटी की शादी करके गंगा नहा लेने की बात कही जाती है. बेटी को बचपन से ही पराया धन कहा जाता है. शादी पर कन्यादान कर देने जैसा रिवाज होता है. कैसे किसी के जिगर का टुकड़ा पराया हो सकता है. शादी कर देने का मतलब ये नहीं कि बेटी मेहमान की तरह घर आएगी या फिर वो बेटी के ससुराल आकर असहज महसूस करें, 'बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए' जैसी बाते करें. शादी करते ही बेटी के जीवन का फैसले लेने का सारा हक पति या ससुराल वालों का हो गया क्योंकि अब बेटी दूसरे घर की हो गई. माता-पिता बीमार भी हों तो बेटी को नहीं बताते, क्या शादी के बाद भी बेटी को माता-पिता के प्रति फर्ज नहीं निभाने चाहिए? शादी का मतलब मेहमान होना नहीं है. कन्यादान सिर्फ रिवाज तक ही रखना, दान में देने वाली चीज नहीं होतीं बेटियां.
'अगर आपको ये सब मंजूर है तो मैं शादी के लिए तैयार हूं'
ये लड़की आजकल की लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती है, जो सक्षम है आत्मनिर्भर है लेकिन शादी के मामले में वो कभी भी खुद को सशक्त नहीं समझती. वजह ये सब हैं. और इसीलिए आज लड़कियां शादी करने से कतराती हैं. अगर समाज में शादी से जुड़ी इन कुछ बातों को अहमियत दी जाए तो लड़कियां खुश रहेंगी. ये वो बाते हैं जिनकी वजह से ससुराल में रहने वाली बेटियां सिर्फ अफसोस करती हैं, कि काश पापा ने ऐसा न किया होता. ये शर्तें नहीं वो वचन हैं जिन्हें हर बेटी को अपने पिता से लेने ही चाहिए.
पर सवाल अब भी यही है कि हमारे इसी समाज में रहने वाले पिता क्या अपनी इन बेटियों के दिल की आवाज सुनेंगे?
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