'सही' सेक्शुअल पार्टनर न ढूंढ पाना भी विकलांगता होगी !
WHO की तरफ से नई गाइडलाइन्स आई हैं. इसके अनुसार अगर कोई अपने लिए सही सेक्शुअल पार्टनर नहीं ढूंढ पा रहा है ताकि वो बच्चे पैदा कर सके तो ये भी एक तरह की विकलांगता होगी.
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भारत में सोरेगेसी ने कई लोगों को परिवार का सुख दिया है. सेरोगेसी IVF जैसी चीजें भारत में काफी लोकप्रिय भी हैं, लेकिन इनके नियमों को लेकर हमेशा चर्चा होती रही है. अब खुद ही सोचिए तुषार कपूर और करण जौहर जब पिता बनते हैं तो सेरोगेसी के लिए एक नया बिल पेश किया जाता है जिसमें ऐसे सिंगल पेरेंट या एक गे को सेरोगेसी के तौर पर भी बच्चे पैदा न करने का नियम बनाया जाए और ये गैरकानूनी हो जाए. लेकिन अब WHO ने भारत के इस नियम के विरुद्ध एक नई परिभाषा गढ़ी है जिसमें Right to Reproduce यानि हर इंसान को बच्चे पैदा करने का हक है ये अहम मुद्दा रखा है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन अब इनफर्टिलिटी (बांझपन या निष्फलता) की एक नई परिभाषा गढ़ रहा है. अभी तक कुछ ऐसी परिभाषा थी कि अगर कोई 12 महीने तक बिना प्रोटेक्शन के सेक्स करने के बाद भी प्रेग्नेंट नहीं हो पा रहा है तो ये इनफर्टिलिटी है. लेकिन अब इसे एक तरह की विकलांगता कहा जाएगा. ये अब कोई आम मेडिकल कंडीशन नहीं रहेगी और इसे विकलांगता ही कहा जाएगा.
ये सिर्फ इस हद तक ही सीमित नहीं है. WHO ने इस परिभाषा में एक और बदलाव किया है.
सेक्शुअल पार्टनर न ढूंढ पाना भी एक विकलांगता..
जी हां, ये पढ़कर शायद आप चौंक गए हों, लेकिन टेलिग्राफ वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक WHO की तरफ से नई गाइडलाइन्स आई हैं. इसके अनुसार अगर कोई अपने लिए सही सेक्शुअल पार्टनर नहीं ढूंढ पा रहा है ताकि वो बच्चे पैदा कर सके तो ये भी एक तरह की विकलांगता होगी. इसे किसी खराब सेंस में न लें. ये असल में कुछ लोगों के फायदे के लिए ही है.
ऐसा क्यों किया जा रहा है?
ये सिंगल लोगों के लिए अभिषाप नहीं है, बल्कि WHO की तरफ से एक एक बेहतर पहल है जो हेट्रोसेक्शुअल, गे, लेस्बियन कपल को भी विट्रो फर्टिलाइजेशन की मदद से बच्चे पैदा करने की सहूलियत देगी. WHO की तरफ से ये 'राइट टू रिप्रोड्यूस' के तहत किया जा रहा है.
अब इनफर्टिलिटी की परिभाषा कुछ इस तरह से लिखी गई है कि ये हर इंसान को परिवार का सुख दे सके. सिंगल लोग, गे, लेस्बियन सभी इसका फायदा उठा सकेंगे.
विरोध भी कम नहीं..
WHO की ये पहल भले ही भलाई के लिए हो, लेकिन इसका विरोध भी कम नहीं है. कई लोग इसे बेतुका फैसला बता रहे हैं. विरोध का कारण ये है कि वो जोड़े जिनके साथ कोई मेडिकल इनफर्टिलिटी है वो भी परिवार के लिए आसानी से ट्रीटमेंट नहीं करवा पाएंगे अगर NHS (नैशनल हेल्थ सर्विस) ने ऐसे नियम बदल दिए तो.
अभी कुछ ऐसे नियम है कि NHS फर्टिलिटी ट्रीटमेंट उन जोड़ों के लिए फंड करती है जो इनफर्टाइल साबित हो जाते हैं. साथ ही उनके लिए जहां फर्टिलिटी की कोई परिभाषा नहीं बताई जा सकती, लेकिन प्रेग्नेंसी नहीं हो पा रही है.
नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर एक्सिलेंस (NICE) की परिभाषा के अनुसार वो महिलाएं जिनकी उम्र 42 साल से कम है उन्हें IVF की पूरी तीन साइकिल लेने की छूट है. इसमें सेम सेक्स जोड़े भी हैं जो सेरोगेसी और प्राइवेट फंडेड फर्टिलिटी ट्रीटमेंट करवा चुके हैं और कोई फायदा नहीं मिला.
अगर परिभाषा बदलती है तो इससे मेडिकल कंडीशन वाले कई जोड़े IVF का फायदा नहीं ले पाएंगे. हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि NHS पूरी तरह से WHO की परिभाषा को अपना लेगा. अगर ऐसा होता है तो विकलांग साबित हुए (इनफर्टाइल) जोड़ों के लिए बच्चा पाने की राह और मुश्किल हो जाएगी.
एक तरह से WHO एक सीमित वर्ग के लिए अच्छा काम भी कर रहा है और अगर इसके दुष्परिणाम देखें तो ये भी काफी ज्यादा हैं.
ये सब अमेरिका के हिसाब से तो ठीक है, लेकिन अगर देखा जाए तो भारत में इसका कितना योगदान रहेगा? WHO के नियम करण जौहर जैसे बच्चा चाहने वाले लोगों से टकराएंगे. क्योंकि इन्होंने सेरोगेसी का सहारा लिया. WHO की नई परिभाषा कहती है कि हर किसी को रीप्रोड्यूस करने का हक है, लेकिन भारत में तो इससे जुड़े कई और नियम हैं.
सेरोगेसी का ट्रेंड भारत में नया नहीं है. इसे लीगल स्टेटस तो 2002 में ही मिल चुका है, लेकिन इससे जुड़े नियम और कायदे अभी तक साफ नहीं हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा सरोगेसी के लिए सिर्फ कुछ गाइडलाइन्स दी गई हैं. इसके लिए कोई ठोस नियम नहीं है. इसीलिए तुषार कपूर या करन जौहर ने सरोगेसी का इस्तेमाल करके कोई नियम नहीं तोड़ा है. बहरहाल ये सोचने वाली बात है कि जब सिंगल पिता एक बच्ची को गोद नहीं ले सकता है फिर सरोगेसी के इस्तेमाल से अगर लड़की हो जाए तो ऐसे केस में उस बच्ची पर कोई नियम नहीं लागू होता है क्या.
क्या कहता है नियम-
सरेगोसी के लिए कोई ठोस नियम नहीं है. पिछले साल तुषार कपूर के पिता बनने के बाद सरोगेसी के नियम चर्चा में आए थे और ससंद में एक बिल भी पेश किया गया था. बिल पास होने से पहले ये थे नियम.
- सरोगेसी कांट्रैक्ट में सरोगेट मां, उसके परिवार, पति आदि की सहमती होनी चाहिए और साथ ही कांट्रैक्ट में पूरा मेडिकल प्रोसेस भी होना चाहिए, साथ ही बच्चे के सभी खर्च से जुड़ी जानकारी और मां की लिखित सहमती होनी चाहिए.
- सरोगेसी के समय अगर बच्चे को कुछ हो जाता है तो मां को पूरी फाइनेंशियल मदद, या फिर अगर मां को कुछ हो जाता है तो पूरा खर्च, इलाज आदि की जानकारी साथ ही अगर बच्चा पालने वाले माता-पिता के बीच तलाक हो जाता है तो बच्चे की जिम्मेदारी किसपर रहेगी आदि जानकारी होनी चाहिए.
- सरोगेट कांट्रैक्ट में सरोगेट मां के लाइफ इंश्योरेंस कवर की जानकारी होनी चाहिए.
- सरोगेट बच्चे को लीगल स्टेटस दिया जाएगा.
- सरोगेट बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में पालने वाले मां-बाप का नाम होना चाहिए.
- सरोगेट मां और डोनर की जानकारी गुप्त रखी जानी चाहिए.
- सेक्स सिलेक्टिव सरोगेसी बैन होगी.
पहले के नियमों में कहीं भी ये नहीं था कि सिंगल पेरेंट सरोगेसी का सहारा नहीं ले सकता है या फिर उनसे जुड़ा कोई भी नियम नहीं था. पिछले साल संसद में इससे जुड़ा एक बिल पास किया गया था इसका नाम था Surrogacy (Regulation) Bill, 2016 उसमें ये सभी नियम थे-
- कमर्शियल सरोगेसी को बैन किया जाएगा. ऐसा इसलिए होगा ताकी गरीब महिलाओं का शोषण ना हो सके.
- रिपोर्ट के अनुसार 2000 सरोगेसी क्लीनिक हैं जो भारत में चल रहे हैं उनपर बैन लगेगा.
- एल्ट्रुस्टिक सरोगेसी (परोपकारी सरोगेसी) का प्रावधान बिल में है जिसमें अगर किसी जोड़े को बच्चे नहीं हो रहे हैं तो उनका कोई रिश्तेदार उनकी मदद कर सकता है.
- सिर्फ भारतीय नागरिक ही यहां सरोगेसी का इस्तेमाल कर सकेंगे. इसके पहले ऐसा कोई नियम नहीं था. यहां एनआरआई और विदेशी भी सरोगेसी का इस्तेमाल कर रहे थे.
- सिर्फ शादीशुदा जोड़ों को ही इसका फायदा मिलेगा. गे, सिंगल पेरेंट, लिव इन कपल इसका फायदा नहीं ले पाएंगे.
- जो कपल सरोगेसी का फायदा उठा रहा है उसका मेडिकल सर्टिफिकेट देना होगा.
- जिन जोड़ों के खुद के बच्चे हैं या फिर पहले से ही गोद लिया हुआ है उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा.
- सरोगेसी क्लीनिक को 25 साल तक बच्चे का रिकॉर्ड रखना होगा.
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