जागरण संपादक के खिलाफ कार्रवाई क्यों दूध का धुला फैसला नहीं है
चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर जितने मामले नेताओं के खिलाफ लंबित हैं, उनके सामने दैनिक जागरण के संपादक की गिरफ्तारी हैरान करती है.
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उत्तर प्रदेश में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के 200 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. शिकायतों की संख्या तो हजारों में है, जिस पर चुनाव आयोग को अभी फैसला लेना बाकी है. लेकिन एग्जिट पोल छापने के मामले में दैनिक जागरण के खिलाफ न सिर्फ ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई है, बल्कि इसमें आरोपी के रूप में संपादक को एक दिन के भीतर घर से गिरफ्तार कर लिया गया है.
अब यह कार्रवाई कुछ बुनियादी सवाल खड़े कर रही है.
- क्या वाकई एग्जिट पोल का वेबसाइट पर पब्लिश होना संपादक का जुर्म है.
- क्या यह सिर्फ उसी के बूते की बात थी कि वह 15 जिलों में होने वाले प्रथम चरण के मतदान का एग्जिट पोल करा लेता और उसे वेबसाइट पर डाल देता?
- संपादक ही असली आरोपी है या बलि का बकरा?
कानून की बात
अब कुछ बातें, रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट की
इस कानून के हवाले से मतदान के 48 घंटे पहले से किसी तरह ओपिनियन/एग्जिट पोल छापना या टीवी प्रसारण करना प्रतिबंधित रहता है. और यह प्रतिबंध अंतिम चरण के मतदान की समाप्ति तक लागू रहता है.
- मतदान वाले इलाकों में प्रचार थमने के बाद रैली नहीं की जा सकती.
- मतदाता को प्रभावित करने के लिए किसी तरह की प्रचार सामग्री बांटना या इस तरह की बातें करना दंडनीय अपराध है.
उद्देश्य: इस कानून का उद्देश्य यही है कि मतदाता प्रभावित न हो और वह स्वतंत्र रूप से मतदान कर सके.
अब सवाल:
1. यूपी में पहले चरण के मतदान के बाद एग्जिट पोल प्रकाशित कर दैनिक जागरण की वेबसाइट ने यह बता दिया कि जिन लोगों से उन्होंने बात की है, वे किस पार्टी को वोट देकर आए हैं. लेकिन यही बात तो लगभग हर टीवी डिबेट और अखबारों के आर्टिकल में चुनाव विश्लेषकों ने तफसील से कही. यदि वे कह रहे हैं कि भारी मतदान होने का फायदा बीजेपी या सपा को मिल रहा है. तो क्या यह बाकी चरण में मतदान करने वालों को प्रभावित करना नहीं है ?
2. मौजूदा दौर में सबसे ताकतवर सोशल मीडिया है. जहां हर नागरिक या नागरिकों के समूह अपने आप में स्वतंत्र 'एग्जिट पोल' जारी कर रहे हैं. सबके अपने स्वतंत्र स्रोत हैं और वे फेसबुक या ट्विटर पर टिप्पणी लोगों को प्रभावित करने के लिए ही करते हैं. क्या चुनाव आयोग का दायरा सिर्फ एक वेबसाइट के संपादक तक ही है ?
3. आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप अमित शाह, मायावती, मुलायम सिंह से लेकर लगभग सभी प्रमुख दलों के प्रमुख नेताओं पर लगा है. आरोप लगाने वाले भी राजनीतिक दल के ही लोग थे. कई मामलों में नोटिस भी दिए गए. बाद में क्या हुआ, यह किसी को पता नहीं. किसी बड़े नेता को ऐसे आरोप में कभी गिरफ्तार नहीं किया गया ?
4. 11 फरवरी को यूपी में प्रथम चरण का मतदान चल रहा था. और उसी दिन दोपहर में मोदी बदायूं में सभा को संबोधित कर रहे थे. जहां दूसरे चरण में 15 फरवरी को वोटिंग होगी. वे अपनी बातों से मतदाताओं को लुभा भी रहे थे और विरोधियों पर आरोप भी लगा रहे थे. इस भाषण का लाइव टेलिकास्ट टीवी पर हुआ. जिसे पहले चरण में मतदान करने जा रहे लोगों ने भी देखा. तो क्या माना जाए, उनका मतदान प्रभावित नहीं हुआ ? जहां मतदान होना है, क्या वहां किसी तरह के बाहरी पॉलिटिकल भाषण के प्रसारण को रोकने का इंतजाम चुनाव आयोग ने किया है ?
5. दैनिक जागरण के एग्जिट पोल पर ताबड़तोड़ कार्रवाई के दौरान पेड न्यूज के वे मामले भी ध्यान आ जाते हैं, जिन पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई है. इन सभी नेता आरोपी हैं. क्या किसी को याद है कि ऐसे किसी मामले में नेता को उसके बीवी बच्चों के सामने हथकड़ी लगा दी गई हो ?
6. दैनिक जागरण के खिलाफ उन 18 जिलों में एफआईआर दर्ज कराई गई है, जहां पहले चरण का चुनाव हुआ. यह इसलिए अजीब है, क्योंकि एग्जिट पोल के प्रकाशन से उन जिलों के मतदाताओं पर तो कोई असर ही नहीं पड़ा. प्रभावित तो बाकी चरण में मतदान करने वाले वोटर हुए हैं. तो कार्रवाई वहां के निर्वाचन अधिकारियों ने क्यों नहीं की है ?
चुनाव आयोग के हाथ-पैर होता है जिला प्रशासन. जो चुनाव के दौरान इस संस्था का हिस्सा बन जाता है. नेताओं के खिलाफ कार्रवाई शायद उनके लिए मुश्किल हो, क्योंकि चुनाव के बाद पाला तो उन्हीं से पड़ना है. मीडिया भी चुनाव में अहम भूमिका निभाता है. आरोप लगाए जा रहे हैं कि दैनिक जागरण वालों का बीजेपी से करीबी नाता है, इसीलिए उन्होंने यह एग्जिट पोल करवाया. लेकिन ऐसे में मीडिया समूह के मालिकों के बजाए संपादक या पत्रकार तक पहुंचना प्रशासन के लिए असान ही रहा होगा न ?
गरीब की जोरू !!!
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