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Updated: 17 जुलाई, 2017 03:18 PM
देवदत्त पट्टनायक
देवदत्त पट्टनायक
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हिंदु पुण्यतिथि के मुकाबले जयंती को पसंद करते हैं. हालांकि, हम कह सकते हैं कि अधिकांश हिंदू त्योहार भगवान के जन्म के बारे में हैं (राम का जन्म, कृष्ण का जन्म, हनुमान का जन्म, गरुड़ का जन्म) या राक्षसों की मृत्यु के बारे में (दुर्गा के हाथों महिषा का संहार, राम द्वारा रावण का संहार, कृष्ण द्वारा नारका का संहार) ये दोनों ही घटनाएं, देवों का जन्म, दानव का संहार, सकारात्मकता पैदा करने के रूप में देखा जाता है.

ये बड़ा अलग है उससे जब ईसाइ समुदाय द्वारा ईसा मसीह (गुड फ्राइडे) की मृत्यु और संतों के शहीद होने या शिया मुस्लिम समुदाय द्वारा पैगंबर के दामाद के परिवार की मृत्यु पर मुहर्रम पर शोक जताने से.

ऐसा इसलिए क्योंकिविश्वभर में हिंदू मान्यताओं के अनुसार जन्म को शुभ और मृत्यु को अशुभ माना जाता है. कह सकते हैं कि पवित्रता के लिहास से महाभारत की तुलना में रामायण ज्यादा पवित्र है. ऐसा इसलिए क्योंकि रामायण में राम के जन्म का वर्णन है जबकि महाभारत में कृष्ण के जन्म के सम्बन्ध में कोई बात नहीं है. इस मामले में भागवत पुराण को अधिक महत्त्व दिया गया हुई क्योंकि इसमें कृष्ण के जन्म का वर्णन मौजूद है.

सभी धर्मों में इस बात को प्रमुखता से बल दिया गया है कि सभी आत्माओं का एक दिन होता है जिसे जीवित लोगों द्वारा याद रखा जाता है. हिंदू धर्म में ये पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है, वो दिन जब मरे हुए लोगों की आत्मा की शांति के लिए समस्त विधि विधान से अलग - अलग रस्मों का आयोजन किया जाता है. पर यहां एक अंतर दिखता है. ईसाई धर्म और इस्लाम में मरे हुए लोगों के बारे में मिलता है कि इन्होंने अपनी सारी जिंदगी जी ली है और पूरे जीवन के किये धरे के लिए, इन्हें न्याय के अंतिम दिन का इन्तेजार है. वहीं हिंदू धर्म में मृत पुनर्जन्म का इंतजार करते हैं. हिंदू परंपराओं में अन्य धर्मों के मुकाबले मौत को अगले जन्म का माध्यम मानते हुए इसपर गहराई से बल दिया गया है.

जीवन, मृत्यु, जन्म   इस्लामी और ईसाई परंपराओं में, मौत मूल्यवान है अतः कब्रों और स्मारकों का निर्माण किया जाता हैइस्लामिक और ईसाई परंपराओं में, मौत मूल्यवान है और इसलिए कब्रों और मजारें स्मारक बन जाती हैं. अधिकांश हिंदू समुदायों में, मृतकों का कोई अवशेष घर के अंदर या आसपास नहीं रखा जाता है. जो भी चीजें मृत्यु से जुड़ी हुई हैं उसे अशुभ और अपवित्र माना गया है. आपको बताते चलें कि हिंदू मठवासी परंपरा में, मृत शिक्षकों का शरीर दफनाया गयाजाता था और उनकी कब्र के ऊपर  तुलसी के पौधे रोपित किये जाते थे. हालांकि इनकी पूजा नहीं होती थी और इनके माध्यम से मृत्यु के स्थान को चिन्हित किया जाता था. शायद ये परंपरा बौद्धों से आई हो जो अपने शिक्षकों के अंतिम संस्कार के बाद, मृत शरीर के दांत, बाल या हड्डियां रख लिया करते थे.

जब मुस्लिम बादशाहों ने अपने लिए स्मारक बनवाने शुरू किये उनको देखते हुए कई हिन्दू राजाओं ने भी अपने समाधी स्थल के आस पास मंडप और छत्रियां बनाकर उसे चिह्नित करने का काम किया. आज भी इस अभ्यास को राजस्थान में देखा जा सकता है. आधुनिक समय में ये अभ्यास आज भी जारी है, जिसमें कब्रों का निर्माण किया गया है.  इस बात के उदाहरण के लिए आप महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी की कब्रों को देख सकते हैं. हिन्दू होने के बावजूद जिनके लिए स्मारकों का निर्माण किया गया है.  हिंदू धर्म में अलग अलग समुदाय जो ब्राह्मणवाद को खारिज करते हैं, उनमें मृतकों के लिए स्मारकों का निर्माण किया जाता है. इसे आप जयललिता के मामले में भी देख सकते हैं  वो जिन्होंने द्रविड़ आंदोलन नेतृत्व किया था.

आज 1400 साल होने के बावजूद मुस्लिमों के अंतर्गत आने वाले शिया समुदाय द्वारा इमाम हुसैन की मृत्यु पर शोक प्रकट किया जाता है.  ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ें 2000 साल हो चुके हैं मगर अब भी कई समुदायों द्वारा इस पर अपना दुःख प्रकट किया जाता है.  इन बातों के विपरीत शिव को इसके विपरीत, शिव को 'स्मरंतका' और 'यमंतका' कहा गया है, वो जो स्मृति और मृत्यु का विनाश करने वाले हैं क्योंकि यही हमें मुक्त करता है, हमें इतिहास से बाहर निकालता है और  इसी के जरिये हम कालातीत आत्मा की खोज कर पाते हैं.

हिंदू धर्म में मृत्यु, याददाश्त, प्रगति, ज्ञान और मुक्ति को रोकती है. ये आपको नीचे ले जाती है. मृत्यु का भय मानसिक परिवर्तनों को पैदा करता है जिन्हें केवल योग द्वारा सुलझाया जा सकता है. धर्म के अंतर्गत, मौत और मृत्यु  से उपजा डर फंसाने के रूप में देखा जाता है. इसलिए अंतिम संस्कार के बाद, व्यक्ति को सलाह दी जाती है कि वह पीछे मुड़कर और श्मशान को वापस न देखे. अतीत को भूलना चाहिए इसलिए, अन्य धर्मों की तुलना में ऐतिहासिक कथाओं और पौराणिक कथाओं पर हिंदुओं का अधिक महत्व है.

आजकल, जैसा कि दुनिया "न्याय" के नाम पर प्रतिशोध की तलाश करती है. अब पिछली बातों को याद रखना एक शक्तिशाली राजनीतिक उपकरण बन गया है.  यह रैली में भीड़ जुटाने में मदद करता है और लोगों को बांधता है। उदाहरण के लिए, बार-बार होलोकॉस्ट का जिक्र करके, यहूदी लोगों को बहुत नैतिक श्रेष्ठता और राजनीतिक लाभ प्राप्त होता है इसी तरह, हम पाते हैं कि सिख समुदाय "जल्लीनवाला बाग" को याद करके ब्रिटिश सरकार के अत्याचार और  "ऑपरेशन ब्लू स्टार" को याद करके भारतीय सरकार को दुःख भरी निगाहों से देखता है। और अब हिंदुत्व लॉबी मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं की रैली कर रही है जहां '1,000 वर्ष की दांस्ता' का वर्णन होगा. इस प्रकार, अतीत की याद, का इस्तेमाल अब वर्तमान को आकार देने के लिए प्रयोग किया जा रहा है.

मृत्यु हमें आगे बढ़ने से रोकती है. जन्म, पुनर्जन्म या दोहरा जन्म अच्छा और गौरवशाली माना जाता है. परंपरागत हिंदू योजनाओं में, अतीत को भूलना और वर्तमान को स्वीकारना बेहतर होता है.  शुभ दिशा पूरब (पूर) है जहां से सूर्य उगता है.  शुभ अभिविन्यास उत्तर (उत्तरार्द्ध) है जहां अभी भी और स्थायी पोल स्टार खड़ा है. पश्चिम, सूर्यास्त से जुड़ा हुआ है, और दक्षिण, मृत्यु से जुड़ा है जो अशुभ है. विगत, मृत्यु है और मृत्यु बंधन है जो हमें मुक्ति (मुक्ति) से वंचित करती है.

(DailyO से साभार)

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लेखक

देवदत्त पट्टनायक देवदत्त पट्टनायक @devduttmyth

मिथोलॉजिस्ट, लेखक, इलस्ट्रेटर, स्तंभकार, प्रोफेशनल स्पीकर

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