ग्रेटर नोएडा में गिरी बिल्डिंग में 9 लोगों की मौत को 'हत्या' क्यों ना कहा जाए?
अगर ईमानदारी से सही जांच की गई तो यकीनन इस हादसे में बेगुनाह लोगों की 'हत्या' करने वाले गुनहगारों की एक लंबी फेहरिस्त सामने आएगी. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इसकी जांच के बाद कानूनी पंजा कितनों के गिरेबान तक पहुंचता है.
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ग्रेटर नोएडा में बिल्डिंग गिरने के बाद से अब तक मलबे से 9 लोगों के शव निकाले जा चुके हैं. इनमें एक शव प्यारी पंखुड़ी का भी था, जिसका 29 जून को ही पहला जन्मदिन मनाया गया था. इस बिल्डिंग के अवैध होने की सूचना सरकार को थी या यूं कहें कि अथॉरिटी के अधिकारियों को थी, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ फाइलें एक टेबल से दूसरी टेबल पर पहुंचाई गईं. अब जब इतना भयानक हादसा हो गया है तो जमीनी हकीकत सामने आ गई है. इन अवैध इमारतों के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ कागजों पर हुई थी, जिसकी कीमत 9 लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है और न जाने कितने बेगुनाह सैकड़ों टन मलबे के नीचे दबे हुए होंगे.
इमारत से मिले शवों में एक शव साल भर की प्यारी पंखुड़ी का भी था.
इसे हत्या क्यों न कहें?
इमारत का गिरना यूं तो हादसा ही कहा जाता है, लेकिन जब इमारत निर्माणाधीन हो या फिर हाल ही में बनी हुई हो तो उसके गिरने पर ये समझ लेना चाहिए कि दाल में कुछ काला है. जो बिल्डिंग देखते ही देखते ताश के पत्तों की तरह भरभराकर गिर गई, जरा सोच कर देखिए उसमें कितना घटिया मटीरियल इस्तेमाल किया गया होगा. 9 लोगों की मौत के लिए आखिर ये बिल्डर ही तो जिम्मेदार हैं, जिन्होंने बिल्डिंग बनाने में अधिक फायदा कमाने के लिए धांधली की. ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि इन 9 लोगों की मौत कोई हादसा नहीं, बल्कि हत्या है. और इन लोगों की हत्या करने के लिए उस बिल्डर को भी सजा मिलनी चाहिए, जिसने ये घर बनाया है और उस ब्रोकर को भी जिसने ये सोचा है. जिन अधिकारियों ने घूस लेकर काम करते रहने की इजाजत दी, उन्हें भी सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए.
इन मौतों के लिए बिल्डर, ब्रोकर, प्रशासन, पुलिस सभी जिम्मेदार हैं.
अधिकारी कहते थे- अवैध निर्माण गिरा दिए
ग्रेटर नोएडा में रहने वाले एक मैकेनिकल इंजीनियर ने 22 फरवरी 2018 को शाहबेरी गांव में चल रहे अवैध निर्माण की शिकायत सीएम पोर्टल पर भी की थी. न जाने सीएम ने उसे देखा भी या नहीं, लेकिन अधिकारियों ने तो जवाब देते हुए कहा कि सभी अवैध निर्माण गिरा दिए गए हैं. बाद में एक बार सीएम ने जांच के आदेश भी दिए, तो 27 अप्रैल को फिर से वही जवाब मिला कि सभी अवैध निर्माण गिरा दिए गए. ये निर्माण हुए तो जमीन पर थे, लेकिन इन्हें गिराने का काम कागजों पर हुआ. ये फाइलें घूस के वजन से इतनी भारी होती गईं कि या तो आगे बढ़ाई नहीं गईं या फिर उसे किसी अधिकारी ने खोलकर जांचने की जहमत नहीं उठाई. नतीजा ये हुआ कि अब कई जिंदगियां सैकड़ों टन मलबे में दफन हो चुकी हैं. एनडीआरएफ एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है, ताकि अगर एक भी जिंदगी सही सलामत बची हो तो उसे जिंदा बचाया जा सके.
अभी भी कई जिंदगियां सैकड़ों टन मलबे में दबी हुई हैं.
जिंदगियां बचाने के लिए अपनाए जा रहे हैं ये तरीके
- एनडीआरएफ की टीम खोजी कुत्तों को भी जिंदगी की खोज में लगा चुकी है, ताकि अगर कोई मलबे में दबा है और जीवित है तो उसे बचाया जा सके.
- इसके अलावा विक्टिम लोकेटिंग कैमरा का इस्तेमाल हो रहा है. यह समझ नहीं आ रहा है कि कौन कहां पर फंसा है, इसलिए इस कैमरे की मदद ली जा रही है.
- इतना ही नहीं, रेस्क्यू लाइफ रडार से भी ये पता करने कोशिश हो रहे है कि कोई जीवित है या नहीं. हालांकि, रडार से भी किसी के जिंदा होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं.
भ्रष्टाचार को खत्म करने की मुहिम चलाने वाली भाजपा को बेशक इस हादसे से तगड़ा झटका लगा होगा. जहां एक ओर पीएम मोदी और भाजपा भ्रष्टाचार को मुंहतोड़ जवाब देने की बात करती है, वहीं उसी सरकार में ऐसे अधिकारी और पुलिसवाले बैठे हैं, जो घूसखोरी में लगे हुए हैं. बिल्डर ने घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया, रजिस्ट्री विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए सैकड़ों फ्लैट्स की रजिस्ट्री की, अथॉरिटी के अधिकारी या तो आंख बंद कर के बैठे रहे या उनके हाथों पर वजन इतना रख दिया गया कि उनकी नजरें ऊपर नहीं उठीं, पुलिसवालों को 6 मंजिला अवैध इमारत दिखी नहीं यानी उनकी भी जेबें गरम की गईं, जिला प्रशासन को शिकायत की गई थी तो उसके बाद तुरंत कार्रवाई करते हुए रजिस्ट्री पर रोक लगानी चाहिए थी, बैंक इस इलाके में लोन नहीं दे रहे थे तो जीआईसी नाम के एक प्राइवेट फाइनेंसर ने लोगों को लोन दिया. अगर ईमानदारी से सही जांच की गई तो यकीनन इस हादसे में बेगुनाह लोगों की 'हत्या' करने वाले गुनहगारों की एक लंबी फेहरिस्त सामने आएगी. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इसकी जांच के बाद कानूनी पंजा कितनों के गिरेबान तक पहुंचता है.
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