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Updated: 21 फरवरी, 2018 04:43 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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11,400 करोड़ के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाला मामले में सरकार के सामने फ़िलहाल दो चुनौतियां हैं. सबसे बड़ी चुनौती है देश छोड़कर भागे मुख्य आरोपी नीरव मोदी एवं मेहुल चौकसी को वापस लाने की. दूसरी चुनौती है गए हुए पैसे वापस लाने की. नीरव मोदी एवं मेहुल चौकसी को वापस लाने से न केवल उनको सजा दिलवाई जा सकेगी, बल्कि गबन किए गए रकम की वसूली में भी सहायता मिलेगी, पर क्या ये संभव है?

नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, पीएनबी घोटाला, प्रत्यर्पण

देश छोड़कर भागे दोनों आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए उन्हें भारत लाना पड़ेगा. यह काम प्रत्यर्पण के जरिए हो सकता है. परन्तु प्रत्यर्पण की कार्रवाई से जुड़ी पेचीदगियों के चलते कई बार ऐसा संभव नहीं हो पाता या फिर कार्रवाई पूरी होने में काफी वक्त लग जाता है. वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने कहा है कि सरकार धोखाधड़ी के आरोपी नीरव मोदी के प्रत्यर्पण की कोशिश करेगी और उनकी धोखाधड़ी के लिए उन्हें सज़ा देगी. पर क्यों कठिन है नीरव मोदी एवं मेहुल चौकसी को वापस भारत लाना?

पता नहीं किस देश में हैं अपराधी

भारत की 47 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है और 9 अन्य देशों के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था पर सहमति है. पर अभी तक ये पता नहीं चल पाया है कि नीरव मोदी और मेहुल चौकसी कहां हैं. अगर वो उन देशों में हैं, जिनके साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है तब तो उनको भारत लाना संभव है. वरना यह बहुत ही मुश्किल होगा. कुछ न्यूज़ रिपोर्ट्स के मुताबिक नीरव मोदी बेल्जियम में है या दुबई में है. अगर वो इन देशों में होगा तो भारत वापस लाना संभव तो है पर आसान नहीं.

बहुत हैं क़ानूनी पेचीदगियां

प्रत्यर्पण संधि के तहत कोई भी देश किसी आरोपी को दूसरे देश को तभी सौंपता है जब आरोपी का अपराध साबित हो जाए और कोर्ट उसे दोषी करार दे दे. या उस पर वारंट हो और आरोपों के पुख्ता सबूत हों. लेकिन यह तभी होगा जब आरोपी का अपराध, दोनों देशों में अपराध माना जाता हो. नीरव एवं मेहुल को प्रत्यर्पित करने के लिए एक लम्बी अदालती प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो कि इतनी आसान नहीं है. प्रत्यर्पण के लिए एक शर्त यह भी है की जिस कृत्य के लिए आरोपी को प्रत्यर्पित किया जाना है, वह दोनों देशों में दंडनीय अपराध की श्रेणी में तो हो ही साथ ही उस अपराध के लिए कम से कम एक साल तक की सजा का प्रावधान होना चाहिए.

भारत का प्रत्यर्पण का रिकॉर्ड बहुत ही ख़राब रहा है

विदेश मंत्रालय के अनुसार 2002 से अभी तक भारत 62 लोगों का प्रत्यर्पण करवा पाया है. उसके पहले का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. एक RTI के जबाब में विदेश मंत्रालय ने कहा की अभी भी 121 प्रत्यर्पण का अनुरोध विभिन्न देशों में लंबित है. यानी कि हमारा प्रत्यर्पण की सफलता की दर लगभग 33% है. इस रिकॉर्ड को संतोषजनक तो नहीं ही कहा जा सकता.

बड़े लोगों के प्रत्यार्पण का रिकॉर्ड और भी ख़राब है

बड़े लोगों और हाई प्रोफाइल केसों में प्रत्यार्पण का रिकॉर्ड तो और भी ख़राब है. विजय माल्या और ललित मोदी का उदाहरण सबके सामने है. दोनों को कई कोशिशों के बाद भी अभी तक ब्रिटेन से भारत नहीं लाया जा सका है. इसके अलावा जतिन मेहता, संजय भंडारी और दीपक तलवार जैसे लोगों को भी हम वापस नहीं ला पाए हैं.

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लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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