ख्याल रखना! 'गले लगना और गले पड़ना दो अलग अलग बातें हैं'
आज भले ही Hug day के नाम पर हमारे आपके कैलेंडरों में एक दिन जुड़ गया हो मगर वास्तविकता यही है कि हम अभी भी गले लगने को बिल्कुल भी अच्छा नहीं मानते.
-
Total Shares
यदि भारतीय संस्कृति के मूलभूत नियमों और सभ्यता की बात करें तो यहां अपरिचित के गले लगना, आज भी असंस्कारी माना जाता है. यहां तक कि स्त्री-पुरुष का परस्पर गले मिलना भी संशय के दायरे में स्थान ग्रहण करता है. अत: हमारे यहां किसी महिला को महिला मित्र से गले लग और पुरुष मित्र से नमस्ते, हैलो, हाय कर मिलने की परंपरा चिरकाल से चली आ रही है. गले मिलना किसी एक पक्ष को असहज भी कर सकता है. पर फिर भी कुछ लोग ज़बरन गले मिलते हैं. ध्यान रहे, यहां नेताओं की बात नहीं हो रही!
कहते हैं, परिवर्तन संसार का नियम है. इसलिए अब लोगों की सोच बदल रही है. विशेष रूप से युवाओं में. वे इस बात को लेकर बेहद सहज हैं और इसे सामान्य तौर पर ही लेते हैं. वो जमाने गए जब लड़के-लड़की को साथ देख लोग मुंह फाड़े हौहौ किया करते थे. यदि अब भी ऐसे लोग जीवित हैं तो उन्हें अब अपनी सोच में बदलाव की आवश्यकता है क्योंकि यदि मानसिकता सही हो तो फिर कुछ भी ग़लत नहीं होता.
आज भी हमारे देश में गले लगने को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता
ईद के त्यौहार में गले मिलकर ही बधाई देते हैं. माता-पिता अपने बच्चे को गले से लिपटाकर जो स्नेह वर्षा करते हैं, उससे सुंदर भी कोई अनुभूति हो सकती है, क्या? दो दोस्तों के बीच मित्रता का आलिंगन, एक सुरक्षा-कवच की तरह होता है. आपके दुःख में कोई बढ़कर गले लगा ले तो आंसुओं का ठहरा सैलाब अचानक बह उठता है. गहन पीड़ा में मरहम की अनुभूति होती है. इसे 'जादू की झप्पी' यूं ही नहीं कहा जाता. यह एक जरुरी स्पर्श है जो हर बंधन को और भी मजबूती देता है. अपनत्व का अहसास कराता है. अपार सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत है ये स्नेहसिक्त झप्पी.
हिन्दी फ़िल्मों के कई सदाबहार गीतों में 'लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो, शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो' आज भी कई आंखों को नम कर देता है. यह इसकी लोकप्रियता का ख़ुमार ही है कि अब इसका नया version भी आ चुका है. 'मुझको अपने गले लगा लो, ए मेरे हमराही; तुमको क्या बतलाऊं मैं, कि तुमसे कितना प्यार है' भी जवां उमंगों को हवा देता है.
'चुपके से लग जा गले रात की चादर तले', 'आके तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी', 'बांहों के दरमियां दो प्यार मिल रहे हैं' जैसे ख़ूबसूरत नगमों ने रोमांस को नई परिभाषाएं दी हैं. 'आ लग जा गले दिलरुबा', 'बांहों में तेरी, मस्ती के घेरे सांसों में तेरी खुशबू के डेरे' भी इसी अहसास से ओतप्रोत मस्ती भरे गीत हैं.
'आओ न गले लगाओ न, लगी बुझा दो न ओ जाने जां' में हेलन ने इसे एक अलग ही रंग देकर नए कीर्तिमान स्थापित किए. पति-पत्नी के बीच के रोमांस को दर्शाते हुए जया भादुड़ी और संजीव कुमार पर फिल्माए इस मधुर गाने को भी दर्शकों की ख़ूब वाहवाही मिली थी...'बांहों में चले आओ हो, हमसे सनम क्या परदा'. सीधी-सी बात है जहां 'प्रेम' है वहां गले तो लगेंगे ही. आपकी हा-हू से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला!
बस, ये ध्यान रहे कि 'गले लगना और गले पड़ना दो अलग अलग बातें हैं'.
ये भी पढ़ें -
Promise day: भारतीय समाज और वादे का नाजुक शीशमहल
"आज Hug day है इसलिए हम मल-मल के नहाए हैं और तुम हो कि...."
Perfect Valentine Video: इसे एक बार देखने से मन नहीं भरेगा, चाहे तो शर्त लगा लो !
आपकी राय