नसीर आप मुसलमान हैं, टारगेटेड हैं तो फिर आप स्टार कैसे?
'खान हूं, इसीलिए फेमस और सक्सेसफुल हूं' - ऐसा कहते मैंने किसी को नहीं सुना है. न ही इस थीम पर कोई फिल्म ही बनी. तो फिर हर बार My Name is Khan वाला जुमला क्यों उछाला जाता है?
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'My name is Naseeruddin Shah, I am Muslim, that’s why I was targeted.'
नसीर साब! आप भी न! पर्दे पर के इतने शानदार अदाकार को न्यूज मीडिया के सामने अपनी कलाकारी को साबित करने की जरूरत है क्या? बिल्कुल नहीं. ठीक उसी तरह, जैसे कि आपको देशभक्ति साबित करने की जरूरत नहीं है. अफसोस कि ऊपर और नीचे अंग्रेजी की दोनों लाइनें आपको कहनी पड़ीं - वो भी भावुक होकर. आपकी भावुकता पर्दे पर दिखती है, ऐसे ही थोड़े न आप वन ऑफ द फाइनेस्ट एक्टर माने जाते हैं. मैं भी आपका फैन हूं, लेकिन बड़े पर्दे पर ही. कृपया इसे छोटे पर्दे पर मत उतारिए.
'Don’t need to prove my patriotism to anybody.'
14 अक्टूबर को आप ट्विटर पर खूब ट्रेंड किए. लोगों ने आपको निशाना बनाया. उसी के लिए, जिसके लिए सुधींद्र कुलकर्णी पर कालिख पोती गई - पाकिस्तान के पूर्व केंद्रीय मंत्री खुर्शीद कसूरी के बुक लॉन्च में शामिल होने पर. आप नाराज हुए. लेकिन क्यों? धर्म और राजनीति (खासकर पाकिस्तान के मामले में) के कुएं से बेदाग निकल आएंगे, यह आपने कैसे सोच लिया. वो भी तब जब आप एक स्टार हैं.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित क्यों?
आपने कहा कि पाकिस्तान की तारीफ में कही गई कोई भी बात भारत-विरोधी कैसे हो सकती है? फिर आपने पूछने के अंदाज में कहा कि यदि आप यह कहते हैं कि इमरान खान एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं, तो इसका यह मतलब तो नहीं है कि सुनील गावस्कर बेहतर खिलाड़ी नहीं हैं? लेकिन क्या आपके तर्क दूसरों पर लागू नहीं होते? क्या पाकिस्तान से चिढ़ने वाले लोगों को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं?
आपने सवाल उठाया कि वहां ए.जी. नूरानी और दिलीप पडगांवकर भी थे, उन पर सवाल नहीं उठे. अरे नसीर साब! नूरानी और पडगांवकर को तो अंग्रेजी वाले भी ठीक से नहीं जानते, आपको तो वो भी जानते हैं जिन्हें हिंदी तक नहीं आती. आपके 'अ वेडनसडे' को देखने के लिए लोग फ्राइडे का इंतजार करते हैं, वो भी पैसे देकर. कहां हैं आप! जिन्हें सर पर बिठाया जाता है, उन्हें ही गिराकर कंधे तक भी लाया जाता है. जो जनता के कंधों पर कभी चढ़े ही नहीं, वो क्या खाक गिराए जाएंगे?
खान हूं, इसीलिए फेमस और सक्सेसफुल हूं
ऐसा कहते मैंने किसी को नहीं सुना है. और न ही इस थीम पर कोई फिल्म बनी हो, ऐसा याद आ रहा है मुझे. अब प्लीज यह मत कहिएगा कि खान जेनिटकली बेस्ट होते हैं, इसलिए फेमस और सक्सेसफुल हैं. क्योंकि आपके ऐसा कहते ही सारे गांधी भी खुद को बेस्ट कहते हुए पीएम पद के सदाबहार दावेदारी ठोक देंगे. यह इसलिए भी नहीं कहिएगा क्योंकि राहुल द्रविड़ ने भी ऑस्ट्रेलिया में आईसीसी इवेंट के दौरान माना था कि कोई जरूरी नहीं कि हमेशा बेस्ट ही टॉप पर पहुंचे. टॉप लेवल पर हर फिल्ड में लॉबिंग होती है - आप और हम सब जानते हैं इस सत्य को.
कैसे बनते हैं स्टार
सलमान के शर्ट उतारने पर, शाहरुख के बांहें फैलाने पर क्या सिर्फ मुस्लिम लड़कियां और लड़के ही आह भरते हैं, सीटियां बजाते हैं? जहीर जब किसी पाकिस्तानी को आउट करते हैं तो अगला विकेट किसी हिंदू बॉलर को मिले, इसे लेकर स्टेडियम में क्या जाप या मंत्रोचारण शुरू हो जाता है? नहीं न! वो इसलिए साब, क्योंकि हिंदू भी आपको स्टार बनाने में मददगार होते हैं और दिल से आपको स्टार मानते भी हैं.
राजनेताओं को राजनीति करने दीजिए. मजबूरी है उनकी, उन्हें वोट मांगना होता है जनाब. आप तो अपना हुनर बेचिए. और बेशक बनाने वाले ने आपमें वो कूट-कूट कर भरा है. आपको उसमें फंसने की जरूरत ही नहीं, जिसे माइनॉरिटी सिंड्रॉम कहते हैं.
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