बजरंग दल क्यों कूट देते हैं प्रेमी जोड़ों को? इसका जवाब दे रहा है ये लेख !
आज जिस तरह बजरंग दल जैसे संगठनों द्वारा संस्कृति के संरक्षण के नाम पर वैलेंटाइन डे का विरोध किया जा रहा है और अराजकता फैलाई जा रही है वो एक गहरी चिंता का विषय है.
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वैलेंटाइन डे के संदर्भ में अनेक प्रचलित क़िस्से कहानी में एक कहानी यह भी है कि इटली में वैलेंटाइन नामक एक युवा माली अपने मालिक की बेटी से प्रेम में था. यह बताने के लिये वह हर रोज़ एक गुलाब तोड़ता कि आज अपनी प्रेयसी से कह दूंगा, लेकिन सामाजिक भिन्नता के कारण कभी इज़हार नहीं कर पाता और उस गुलाब को एक संदूक में रख देता. लेकिन ना कह पाने की तकलीफ़ उसे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी. अंततः उसने बिस्तर पकड़ लिया. जब वह कई दिनों तक वह नहीं दिखा तो मालिक की बेटी उसे ढूंढ़ते हुए उसके कमरे पर आई जहां दरवाज़े की तरफ़ नज़र गड़ाये उसका मृत शरीर हाथ में गुलाब का फ़ूल और एक चिट्ठी लिये पड़ा हुआ था. वह दिन चौदह फरवरी का था. इसलिये आज का दिन प्रेम के इज़हार दिवस के रूप में मनाया जाता है.
आज जिस तरह बजरंग दल जैसे संगठनों द्वारा संस्कृति की दुहाई देकर वैलेंटाइन डे का वोरोध किया जा रहा है वो गलत है
पश्चिम की हवा के साथ यह प्रेम दिवस कई साल पहले हमारे देश में आ गया और जबसे आया है तब से लगातार विरोध और बाजारवाद दोनों एक साथ झेल रहा है. बाज़ारवाद ने प्रेम दिवस को किसी उत्सव का रूप दे दिया, जो रोज़ डे यानि गुलाब डे से शुरू होकर valentine day पर ख़त्म होता है और बीच में आता है, प्रपोज़ डे, चॉकलेट डे, टेडी डे, प्रॉमिस डे, हग डे, और किस डे. जैसे ईश्वर के भक्तों के लिये दस दिन का दशहरा या गणपति ठीक वैसे ही आशिकों के लिये प्रेमास का यह एक हफ़्ता. पहले सात दिन मनपसंद प्रेयस / प्रेमिका को रिझाने का हफ़्ता और अंत में आठवें दिन प्रणय निवेदन का यानि valentine day का.
एक ओर प्रेमास के शुरू होते ही बजरंग दल कुछ अधिक सक्रिय हो जाते हैं. भगवा वस्त्र और हाथ में लाठी लिये ये प्रेम का विरोध करने निकल जाते हैं कि यह भारतीय संस्कृति नहीं, जैसे प्रेम पर पश्चिम का एकाधिकार हो, लेकिन दूसरी ओर गोपियों के साथ रास रचाने वाले कृष्ण की पूजा उनकी प्रेमिका के साथ की जाती है. हालांकि, इनका विरोध इतना मायने नहीं रखता. भला प्रेम करने वालों को आज तक कौन रोक पाया है ? जब वह स्वयं भी ख़ुद को नहीं रोक पाते हैं. वैसे भी साइयन्स ने कहा है जिसे जितना रोकोगे वो उतना बढ़ेगा, इसलिये बजरंग दल के लाख विरोध के बाद भी प्रेमी यह प्रेम उत्सव मानना नही भूलते.
प्रेम दिवस आते ही कुछ ठुकराये हुए प्रेमी बजरंग दल के नाम पर अपनी खुन्दक निकाल लेते हैं. प्रेम में ठुकराये हुए प्रेमी भी बेसब्री से प्रेमास का इंतज़ार करते हैं ताकि वो उस लौंडे की कुटाई कर सकें, जिसके लिये वो ठुकराये गये है, क्योंकि प्रेम ना पाने के दर्द से बड़ा और असहनीय पीड़ा उसे किसी और के साथ देखना होता है.
बजरंग दल का मानना है कि वैलेंटाइन डे भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है
भारत में अन्य विषय की तरह प्रेम भी काफ़ी विवादास्पद विषय है. रोज़ ही सोशल मीडिया के किसी ना किसी की वॉल पर आपको प्रेम का ऑपरेशन होता हुआ दिख जायेगा. प्रेम पर सबके अपने-अपने लिखित वक्तव्य है, ध्यान रहे मात्र वक्तव्य उसका व्यवहारिक जीवन से कोई लेना देना नहीं. चार बच्चों के पिता आध्यात्मिक प्रेम पर दलील पर दलील देते मिल जायेंगे तो कुछ सभ्य क़िस्म के ठुकराये हुए लड़के प्रेम में त्याग की बात बढ़ चढ़ कर लिखेंगे. इस मामले में लड़कियां / महिलायें शाब्दिक उदार दिखाई पड़ती हैं. वह प्रेम पर कालजई रचना रच डालती हैं और लोग वाह वाह कर उठते हैं. लेकिन यक़ीन मानें उसमें एक भी बात पल्ले नहीं पड़ती है, क्योंकि वो यथार्थ से दूर सिर्फ़ शब्दों का जाल होता है और कुछ मुझ जैसी ढीठ महिला ऐसे लेख लिख जाती हैं जो हज़ारों share हो जाती है.
हालांकि, मैं जब भी प्रेम पर लिखती हूं एक तरह का कॉमेंट अक्सर आता है “आपको इक्स्पिरीयन्स होगा”. उनका कहना सही भी है, वो प्रेम नहीं करते, सिर्फ़ बच्चे पैदा करते हैं और भारतीय संस्कृति में बच्चे पैदा करने को प्रेम समझा जाता है, लेकिन मेरी हैरानी को और हैरान करते हुए सोशल मीडिया की हर ख़ाली दीवार आज लाल से रंगी होगी, क्योंकि प्रेम का रंग भगवा नही लाल है जानेमन बजरंग दल.
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