कार के पास खड़ी मॉडल को देख लार टपकाने वालों के लिए क्या कहेंगे आप?
आजादी का मतलब ये नहीं होता कि बिना कपड़ों के घूमो तभी आजाद कहलाएंगे, आजादी का मतलब होता है खुद की पहचान एक इंसान के रूप में स्थापित करना. खुद के लिए जगह बनाना.
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ए क्लास कार रखने का सपना किसका नहीं होता. और इस ए क्लास गाड़ी के मालिक बनने की संतुष्टि किसी ए क्लास महिला को पाने से ज्यादा होती है. अब भले ही ये सच हो या न हो लेकिन आजकल के गाड़ियों की एड को देखकर तो ये कहा ही जा सकता है क्योंकि हर दूसरी गाड़ी के लॉन्च में सेक्सी कपड़े पहने हुए लड़कियों को खड़ा कर दिया जाता है.
मजे की बात तो ये है कि सिर्फ मॉडल ही नहीं बल्कि कई बॉलीवुड स्टार भी कार के लॉन्च में नजर आती हैं. चाहे प्रियंका चोपड़ा हो या फिर करीना कपूर, मलाइका अरोड़ा हों, जैकलिन फर्नांडिस या फिर कटरीना कैफ सब कारों के बगल में पोज देती दिख जाएंगी. तो आखिर इन हद से ज्यादा महंगी गाड़ियों के पीछे मॉडलों के खड़े होने का कारण क्या है?
कार और सेक्स एक ही सिक्के के दो पहलू?
इसका असली कारण है कार और हॉट लड़कियां हमारे पुरुषवादी समाज की कमजोरी मानी जाती हैं. लड़कियों के बाद स्पीड ही लड़कों की कमजोरी मानी जाती है. साथ ही ये कॉम्बीनेशन भी हिट हो रहा है. तो सोने पर सुहागा वाली स्थिति हो गई. यही कारण है कि ऑडी से लेकर बीएमडब्लू तक, टाटा मोटर्स से लेकर निसान तक ने सुंदर मॉडलों को लेकर अपनी गाड़ी का प्रमोशन किया है.
Psychologyforrmarketers.com के माग्दा के बताते हैं कि- 'सालों से कार को सेक्स के साथ जोड़ा जा सकता है ताकि कारों की बिक्री बढ़ाई जा सके. कार निर्माता चाहते हैं कि उनकी कारें लोगों को सेक्सी, फास्ट और डेयरिंग फील दें और इसलिए ही हॉट मॉडलों के साथ वाले प्रचार कार की बिक्री के लिए परफेक्ट होंगे.'
तो जब किसी भी प्रोडक्ट को सेक्सुअल चीजों से जोड़ दिया जाता है तो वो सीधा लोगों के दिमाग के उस हिस्से को प्रभावित करता है जहां से कि वो प्रोडक्ट उन्हें खुद के लिए जरुरी फील होने लगे. और लोग उस प्रोडक्ट को खरीदने से खुद को रोक ना पाएं. यही कारण कि बिल्कुल फिट और डीप नेक कपड़ों में जब कोई भी आकर्षक महिला किसी कार के लिए पोज देती है, किसी डियो के ऐड में नजर आती है या फिर जूस के ग्लास के दिखाई जाती है तो उसका साफ मकसद यही होता है.
बाजार में औरतें प्रोडक्ट ही होती हैं
और आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये कोई नया पैंतरा नहीं है बल्कि सौ साल पहले 1871 में ही पर्ल तंबाकू ने अपने सिगार के पैकेट पर नग्न औरत की तस्वीर लगाई थी. इसके बाद लोग रूके नहीं और ये परंपरा ही चल पड़ी. यहां तक की पिछले महीने स्कॉटलैंड की एक फुटबॉल टीम आयर यूनाईटेड ने फैंस के लिए तैयार किए गए कपड़ों का प्रचार मॉडलों के द्वारा कराया. इसमें मॉडलों के शरीर को पीला और सफेद रंग जो उनकी जर्सी का रंग है उससे रंग दिया गया.
पैसा और बाजार एक ही बात
बाजार ने हर चीज को बिकाऊ तो बना ही दिया है साथ ही हमने उस आग में घी डालने का काम भी किया है. पुरुषों ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए औरत तक को उत्पाद बना दिया लेकिन महिलाओं ने क्या किया? बाजार में खुद की कीमत तय करके उन्होंने इस सोच को हवा ही दी है. फेमिनिज्म के नाम पर सेक्स, पीरियड्स और गालियां देकर खुद को इंडीपेंडेंट और बोल्ड का तमगा देने वाली सभी महिलाओं को अपने शरीर के इस बाजारीकरण पर भी सोचना चाहिए.
आजादी का मतलब ये नहीं होता कि बिना कपड़ों के घूमो तभी आजाद कहलाएंगे, आजादी का मतलब होता है खुद की पहचान एक इंसान के रूप में स्थापित करना. खुद के लिए जगह बनाना. इस बात को लड़कियां जिस दिन समझ जाएंगी उस दिन ही असली आजादी मिलेगी. फेमिनिज्म के नाम पर बेकार की बातों में अपना टाइम खराब करने के बजाए इस तरफ ध्यान दें तो बात बने.
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