क्या घरेलू कामों के बोझ के डर से लड़कियां शादी नहीं कर रही हैं?
बेटे की शादी के बाद घर की सारी जिम्मेदारी बहू के ऊपर डाल दी जाती है. घर का काम करने और रसोई में खाना बनाने में बुराई नहीं है, लेकिन यह तब उबाऊ हो जाता है सब सबकुछ उस महिला को ही संभालना पड़ता है. महिलाएं पूरी कोशिश करती हैं कि वे घर और ऑफिस दोनों को मैनेज कर सकें. वे मेहनत करने से नहीं, खुद को खोने से डरती हैं.
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कमाऊ और घरेलू बहू की चाह का दौर है भाई...मतलब लड़की ऐसी हो जो हर महीने घर में सैलरी देती हो वो भी मोटी सैलरी. वरना 10 हजार के लिए भागादौड़ी करने का क्या मतलब है? ऊपर से अगर वह खाना बनाना जानती हो तब तो सोने पर सुहागा है. वैसे हमारे घर में काम ही क्या है, दो टाइम 4 लोगों का खाना ही तो बनाना है. हमने तो कामवाली बाई भी लगा रखी है. हमारा बेटा भी आज के जमाने की सोच वाला है. इसलिए हमें तो बहू के नौकरी करने पर कोई परेशानी नहीं है. अब घर की मान, मर्यादा का ख्याल तो सभी को रखना पड़ता है. ऊपर से रिश्तेदारों और आस-पड़ोस का भी तो ध्यान रखना है. अब करने को तो हम भी बड़ी-बड़ी बातें कर दें मगर रहना तो इसी समाज में है. इसलिए घर तो संभालना ही पड़ेगा. वरना लोग क्या कहेंगे?
लड़कियों को लगता होगा कि शादी के बाद औरतों की जिंदगी बदल जाती है
खुद से शादी करने वाली चाहें गुजरात की क्षमा बिंदु हों या दीया और बाती फेम अभिनेत्री कनिष्का सोनी...कहीं इनके शादी ना करने की वजह ऊपर लिखी गई बातें तो नहीं हैं? दोनों का कहना था कि वे खुद से सबसे अधिक प्यार करती हैं. उन्हें किसी की पत्नी बनने की जरूरत नहीं है.
हमारे समाज में बेटे की शादी के बाद घर की सारी जिम्मेदारी बहू के ऊपर डाल दी जाती है. घर का काम करने और रसोई में खाना बनाने में बुराई नहीं है, लेकिन यह तब उबाऊ हो जाता है सब सब कुछ उस महिला को ही संभालना पड़ता है.
आप माने या ना माने लेकिन आज भी कई घरों में बेटे-बहू दोनों काम करते हैं, मगर घर के सारे कामों का लेखा-जोखा महिला के कंधे पर होता है. वह अकेले घर संभालते-संभालते खुद को भी भूल जाती है. उसकी पर्सनैलिटी बदल जाती है. जो हर महीने फेशियल और वैक्स करवाती थी, जिसके बार करीने से सजे होते थे, जिसके आइब्रो शेप रहती थी, जिसके नाखून चमकते थे अब उन हाथों में हल्दी और मसालों के रंग लगे होते हैं. वह रात को यह सोचकर सोती है कि कल नाश्ते और खाने में क्या बनेगा. वह रात को ही कभी सब्जी काटती दिखती है तो कभी काम करती...
महिलाएं पूरी कोशिश करती हैं कि वे घर और ऑफिस दोनों के संभाल सकें
उस महिला को तो त्योहार की छुट्टी का भी पता नहीं चलता. वह वीकऑफ में घर के काम खत्म करती है. उसे ही देखना पड़ता है कि बॉलकनी में लगे पौधे सूख रहे हैं. उसे पता रहता है कि फ्रिज में रात का आटा रखा है. उसे पता रहता है कि तेल खत्म होने वाला है. सबके सो जाने के बाद घर की लाइट और गैस की पाइप लाइन भी वही बंद करती है. किसी के मेहमान के घऱ आने पर क्या बनेगा यह भी वह तय करती है. किसी बर्थे डे, किसकी सालगिरह है, किसे क्या तोहफा देना है यह भी उसके ही जिम्मे है.
बच्चा बीमार हो जाए तो उसे ही ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ती है. घर पर कुछ हो जाए तो घर की महिला को ही ऑफिस देरी से जाना पड़ता है. इतना ही नहीं वह ऑफस से भले देरी से आए लेकिन उसे पता है कि रसोई में रोटी उसे ही बनानी है. कई बार तो उसे लोगों के दबाव में आकर छुट्टी लेनी पड़ती है.
वह अपने करियर में बेस्ट कर सकती है लेकिन घर के कामों में उसे किसी की मदद नहीं मिलती. बड़ें शहरों के घरों का तो नहीं पता लेकिन छोटे शहरों और गावों में तो घर की बहू ही सुबह चाय बनाएगी और सबका टिफिन भी वही पैक करेगी. तीज, त्योहार, पूजा और शादी के समय तो सबकी जुबान पर बहू का ही नाम रहता है, क्योंकि यह सब करना तो उस महिला का फर्ज है.
तो क्या इसी बोझ के कारण लड़कियां शादी से करता रही हैं?
महिलाएं पूरी कोशिश करती हैं कि वे घर और ऑफिस दोनों के संभाल सकें. वे मेहनत करने से डरती नहीं है. वे तो खुद को खोने से डरती हैं. शादी ना करने वाली लड़कियों को शायद लगता होगा कि घर की महिलाएं शादी के बाद दूसरों के लिए जीना शुरु कर देती है. जिम्मेदारी इतनी होती है कि चाहते हुए भी खुद के लिए कुछ नहीं कर पातीं. हर महिला को सोने के जेवर और बनारसी साड़ी नहीं चाहिए, वे तो अपने लिए जीना चाहती हैं.
शादीशुदा महिलाएं मन ही मन यह सोचती हैं कि काश कोई उनकी मदद के लिए आगे आए. मगर जब कुछ नहीं हो पाता तो वे बचपन से अपने सहेजे हुए सपनों को छोड़ने का फैसला कर लेती हैं.
लड़कियां शायद यह सब अपने घरों में देख रही हैं कि कैसे महिलाएं सबसे अधिक घर के कामों को तवज्जो देती हैं. ऐसे में शायद उन्हें लगता होगा कि अच्छा है कि मैं किसी की पत्नी या मां नहीं हूं.
लड़कियों को लगता होगा कि शादी के बाद किस तरह औरतों की जिंदगी बदल जाती है. किस करह उनकी जिंदगी पर बिना कहे दूसरों का कंट्रोल हो जाता है.
लड़कियां अपने राजकुमार के सपने तो दखती हैं लकिन जब वे महिलाओं की घर में सना हुआ देखती हैं तो शायद उनका मन शादी से दूर भागता हो. शायद वे अपनी जिंदगी अपने लिए औऱ सपनों के लिए जीना चाहती हों.
कोई महिला भले ही कितनी पढ़ी-लिखी और अच्छी नौकरी वाली क्यों ना हो, उसे तब तक आदर्श नहीं माना जाता जब तक उसकी शादी ना हुई हो. जब तब वह टेस्टी खाना ना बना लेती हो.
समाज में अच्छी महिला वही है जिसे घर के सारे काम आते हो. मौका मिले तो किसी सिंगल वुमन से कभी पूछिएगा कि उसने शादी क्यों नहीं की...शायद यही जवाब होगा कि वह मल्टीटास्किंग नहीं हो सकती, कि घर-ऑफिस सब एक साथ कर ले. वह कहेगी कि मैं अपने लिए काफी हूं. मैं आत्मनिर्भर हूं और अकेले खुश हूं.
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