स्त्री को अनुमति देकर मसीहा बनने वाले आखिर तुम होते कौन हो?
वह कुछ भी करती है तो सबसे पहले उसे अपने पति से पूछना पड़ता है. पति भी उसे किसी बात के लिए मना नहीं करता लेकिन अगर किसी दिन वह पति से पूछना भूल जाए और बाद में बताए तो वह उसपर चिल्लाने में देरी भी नहीं करता.
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मैं तुम्हें किसी बात के लिए रोकता नहीं हूं, तुम्हें बाहर जाने देता हूं, तुम्हें नौकरी करने देता हूं, तुम्हें मायके जाने से नहीं रोकता...ये बातें धनुष अपनी पत्नी नीलू को हर दो-तीन दिन में सुना ही देता है. नीलू भी हां में हां मिलाने में ही अपनी भलाई समझती है. उसने भी जैसे मान लिया है कि उसकी जिंदगी पर अब उसका कोई अधिकार नहीं है.
वह कुछ भी करती है तो सबसे पहले उसे अपने पति से पूछना पड़ता है. पति भी उसे किसी बात के लिए मना नहीं करता लेकिन अगर किसी दिन वह पति से पूछना भूल जाए और बाद में बताए तो वह उसपर चिल्लाने में देरी भी नहीं करता.
नीलू सोचती है कि उसका पति कितना अच्छा है जो उसे परमिशन दे देता है. वह खुद को बहुत भाग्यशाली मानती है कि उसका पति उसे साड़ी के बदले सूट पहनने देता है, 12 चूड़ियों के बराबर दो चूड़ी पहनने देता है, भरी मांग सिंदूर लगाने की जगह चुटकी भर सिंदूर लगाने देता है, भारी मंगलसूत्र की जगह छोटा मंगलसूत्र पहनने देता है, पैरों में पायल की जगह बिछिया पहनने देता है. उसे उसे मायके जाने देता है....सोचिए इतना देने वाला लोगों की नजरों में किसी मसीहा से कम कैसे हो सकता है? लेकिन एक सीमित दायरे में बांधकर अपनी पत्नी को अधिकार देने वाला, परमिशन देने वाला वह होता कौन है?
परमिशन देने के बाद पुरुष अपनी पत्नी पर ऐसे प्यार जताते हैं जैसे कोई एहसान कर दिया हो
यह कहानी सिर्फ नीलू की नहीं है बल्कि कई गृहिणियों की है. यह सिर्फ गांव और छोटे शहरों तक की बातें नहीं है. हाई सोसाइटी में भी पति तपाक से बोल देता है कि मैंने मेरी वाइफ को अपनी कंपनी खोलने और काम करने की परमिशन दे रखी है. क्या ऐसे पति खुद कुछ करने से पहले अपनी पत्नियों से इजाजत मांगते हैं? यहां बात एक तरफा नहीं हो रही है क्योंकि रिश्ते में सम्मान पति और पत्नी दोनों डिजर्व करते हैं.
पत्नी को शादी के बाद क्या पहनना है, आगे पढ़ाई करनी है या नहीं, नौकरी करनी है या नहीं, घरवालों के साथ कैसे बात करनी है...यह सब पति ही तय करता है. आजकल तो लड़कियां शादी से पहले की पूछ लेती हैं कि शादी के बाद जॉब तो करने दोगे...सोचिए जिस काम को करने के लिए उन्होंने पढ़ाई की उसी के लिए अब उन्हें इजाजत लेनी पड़ती है. इतना ही नहीं पत्नी को मिलने वाली सैलरी का क्या होगा यह भी पति ही तय करता है. कई बार तो लड़कियां बिना पति के परमिशन के कुछ खरीद भी नहीं पाती हैं. उन्हें अपने मायके पैसे देने से पहले पति से पूछना पड़ता है. किसी फॉर्म को भरना हो या गाड़ी चलानी सीखनी हो बिना पति से परमिशन लिए महिलाएं कोई फैसला नहीं ले पातीं.
अगर पत्नी की कोई हॉबी हो जैसे डांस सीखना उसके लिए भी परमिशन की जरूरत पड़ती है. एक लड़की होश संभालने के साथ ही परमिशन मांगने लगती है कभी पिता से, कभी भाई से तो कभी पति से. उसकी जिंदगी उसके हिसाब से नहीं चलती. इसलिए वो जो वास्तवित में होती है कभी बन ही नहीं पाती. वह सिर्फ वही बन पाती है जो उसके पिता, भाई और पति तय सीमा में बनने की इजाजत देते हैं. खाना बनाना, घर संभालना, हर बात के लिए दूसरों पर निर्भर रहना यह एक की जिंदगी बन जाती है.
इन बातों पर कोई ध्यान ही नहीं देता है क्योंकि लोगों को यह सामान्य लगता है. किसी महिला को अगर एक दिन खाना न बनाने का मन करे तो भी उसे उस बात के लिए पति से पूछना ही पड़ेगा. वो पति तो किसी दिन घर की सफाई करके या हफ्ते में एक समय का नाश्ता बनाकर इतराता है. वह पति जो ऑफिस से आते ही सोफे पर लेट जाता है और पत्नी ऑफिस से आकर किचन में चली जाती है और लोग कहते हैं कि महिलाएं कमजोर होती है. जिस हिसाब से महिलाएं घर-बाहर काम करती हैं...इनके दिमाग में ऑफिस के काम की टेंशन, घर की जिम्मेदारी सब होती है...ऐसे में तो उनसे ज्यादा मेहनती और ताकतवार कोई हो ही नहीं सकता...
साड़ी पहनने वाली शरीफ और जींस पहनने वाली महिला को बिगड़ैल कहने वाले लोग क्या जानेंगे कि, अगर उस महिला की जिंदगी में ये परमिशन हटकर साथ जुड़ गया होता तो शायद वह कुछ और होती. बेटियां अगर कुछ अलग कोर्स भी करना चाहती हैं तो उन्हें पहले परमिशन ही लेनी पड़ती है. बचपन से लेकर बुढ़ापे तक महिलाएं इस परमिशन से बंधकर ही रह जाती है.
सोचिए महिलाओं को शादी के बाद अपने ही घर जाने के लिए ससुराल से परमिशन लेनी पड़ती है. लड़कियों को ऑफिस में देर हो जाए तो उन्हें अपने घर से परमिशन लेनी पड़ती है, किसी सहेली के साथ कहीं ट्रिप पर जाना हो या अकेले ट्रेवल करना हो तो भी परमिशन लेनी ही पड़ती है, देर तक सोना हो, नाम कमाना हो, सबके सामने अपनी बात रखनी हो...इस तरह पति अपनी पत्नी को देते ही जाता है और जिंदगी भर का साथ है तो पत्नी भी पति के हिसाब से खुद को बदलने लगती है.
इतना परमिशन देने के बाद पुरुष अपनी पत्नी पर ऐसे प्यार जताते हैं जैसे कोई एहसान कर दिया हो. पति को लगता है कि वह पत्नी को उसके अधिकार दे रहा है लेकिन कौन पूछे उससे कि यह देने वाला होता कौन है? कौन हो तुम जिसकी परमिशन बाई डिफॉल्ट लेनी चाहिए, कौन हो तुम जो खुद को यह अधिकार दे बैठे कि तुम जो दोगे सिर्फ वही तुम्हारी पत्नी का है.
पत्नी को तुम्हारे परमिशन की जरूरत तो है ही नहीं...उसको तुम अपने हिसाब से अपनी दुनिया के पाठ पढ़ाओगे और यह बताओगे कि क्या दे सकते हो क्या नहीं...ऐसा करके तो तुम बड़े दिलवाले कहलाओगे, लोगों की नजरों में खुद को महान बताओगे क्योंकि तुमने अपनी पत्नी को वो दिया जो बहुत सी महिलाओं को नसीब ही नहीं होता...
पत्नी तो यही सोचती रहती है कि उसका पति कितना देने वाला है. वह अधिकार जो उसने किसी को दिया ही नहीं था, अपने आस-पास जंजीर खींचने का अधिकार किसी और का कभी था ही नहीं, पत्नी के पास तो कभी कोई लकीर तो थी ही नहीं, वो तो तुमने बनाई है, तुमने उसे उड़ान तो दी लेकिन एक तय किए गए पंख के साथ...पति-पत्नी के रिश्ते किसी कंडीशन अप्लाई के साथ नहीं होते...इसलिए परमिशन देना छोड़कर साथ देना शुरु करो.
किस स्ट्रीम से पढ़ना है, किस क्षेत्र में नौकरी करनी है, शादी कब करनी है, बच्चे कब करने है, सोशल मीडिया यूज करना है, कब सोना है, कब जगना है. महिलाएं अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद कर सकती हैं...इसलिए आप अपनी परमिशन अपने पास रखिए और उन्हें जीने दीजिए.
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