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Updated: 09 जून, 2016 07:55 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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समाज के चश्मे से देखें तो महिलाएं खूबसूरत हों, गोरी हों, छरहरी हों तभी सुंदरता के सांचे में फिट बैठती हैं. और लड़कियां हमेशा समाज के बनाए मापदंडों पर खरा उतरने के लिए प्रयास भी करती रहती हैं. वो सुंदर लगना चाहती हैं, अच्छी दिखना चाहती हैं, वो चाहती हैं कि लोग उन्हें पसंद करें. लेकिन इसी समाज में महिलाओं का एक वर्ग ऐसा भी है जो आकर्षण से जरा अलहदा है. वो मोटी हों, काली हों, या कुरूप भी हों तो समाज उन्हें स्वीकार लेता है, लेकिन वो औरत होकर भी औरत जैसी न लगे तो?

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 महिला होकर भी महिला जैसी नहीं दिखतीं रोज़

अमेरिका में रहने वाली 39 वर्षीय रोज़ गेल भी एक महिला हैं. वो बात और है कि ये महिलाओं जैसी दिखाई नहीं देतीं. ये भी उन कुछ महिलाओं में से एक हैं जो पॉलीसिस्टिक ओवरी सिन्ड्रोम से जूझ रही हैं. इसी की वजह से उनके शरीर पर पुरुषों की तरह बाल उग आए, न सिर्फ चेहरे पर बल्कि छाती पर भी. 25 साल से भी ज्यादा वक्त से वो समाज के बनाए गए खांचे में फिट होने की कोशिश करती रहीं.

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 करीब 8 महीने से बढ़ा रही हैं दाढ़ी

13 साल की उम्र में ही उनके चेहरे और शरीर पर बाल दिखाई देने लगे थे, उन्होंने तभी से उन्हें शेव करना शुरू कर दिया. तब से अब तक हर रोज उन्होंने शेविंग को एक रिवाज की तरह निभाया. लेजर तकनीक से लेकर हर महंगे से महंगा इलाज करवाया, लेकिन सब व्यर्थ. सालों तक खुद को आकर्षक दिखाने के लिए वो ये सब करती रहीं, अपने शरीर के बाल कपड़ों के पीछे छिपाती रहीं लेकिन अब जाकर उनका सब्र जवाब दे गया. और उन्होंने खुद की हकीकत को स्वीकार करते हुए शेविंग करना बंद कर दिया और दाढ़ी बढाने लगीं.

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 सालों तक रेज़र इस्तेमाल करने से बाल मोटे और सख्त हो गए

रोज़ कहती हैं- 'दाढ़ी बढ़ाने के बाद मेरा आत्म विश्वास बढ़ गया है. मैं दाढ़ी के साथ अच्छा महसूस करती हूं, और इतना अच्छा मुझे दाढ़ी के बगैर भी कभी नहीं लगा था. खुद को स्वीकारने से अच्छा कुछ और नहीं.'

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शुरुआत में दाढ़ी बढ़ाने में काफी परेशानी महसूस हुई, लेकिन अब नहीं

वो कहती हैं- 'मैं अपने शरीर को लेकर जरा भी शर्मिंदा नहीं हूं. मैं इन बालों में और भी स्त्रीत्व महसूस करती हूं. मैं सेक्सी और सेनसुअस भी हूं, भले ही ये मेरे रूप में दिखाई नहीं देता, लेकिन ये मेरे एटिट्यूड में नजर आता है. मैंने आखिरकार खुद को स्वीकार कर लिया है.'

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 अब आत्मविश्वास से भरा महसूस करती हैं रोज़

लेकिन क्या स्वीकार पाएगा समाज?

हम जैसे हैं वैसे ही हमें खुद को स्वीकारना चाहिए, शायद ऐसा करके ही हम खुश रह सकते हैं. रोज़ गेल ने भी यही किया. क्योंकि रोज-रोज की शेविंग से वो तंग आ चुकी थीं. 26 सालों के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार रोज़ ने खुद को उसी रूप में स्वीकार लिया, लेकिन क्या समाज उन्हें इस रूप में स्वीकार पाएगा?

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दाढ़ी के बिना ऐसी दिखाई देती थीं

ये भले ही कड़वी है, लेकिन सच्चाई यही है कि महिलाएं अगर महिलाओं जैसी न दिखें, तो समाज उन्हें अलग ही नजरिए से देखता है. आज भी समाज ट्रांसजेंडर लोगों को स्वीकार नहीं कर पाया, क्योंकि वो वैसे दिखाई देते हैं, जो वो हैं ही नहीं. लिंग परिवर्तन के बाद वो भले ही उस रूप में आ जाएं, लेकिन असलियत छुपती नहीं.

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 उन्हें देखकर लोग समझ नहीं पाते कि वो महिला हैं यैा पुरुष

रोज़ भी महिला होकर पुरुष जैसी दिखाई देने लगी हैं, उनके अपने भले ही उनका साथ दे दें, लेकिन समाज के सामने वो हमेशा एक कन्फ्यूजन ही क्रिएट करती रहेंगी, कि क्या वो महिला हैं, या फिर पुरुष. कुछ लोगों के लिए भले ही वो बहादुर, साहसी और इंन्सपिरेशन हों, लेकिन बहुतों के लिए वो दया और सहानुभूति की पात्र बनी रहेंगी. भले ही आज रोज का आत्मविश्वास बढ़ गया हो, लेकिन डर है कि जिस दिन समाज उन्हें ये महसूस करवाएगा, उन्हें सिर्फ अफसोस होगा. क्योंकि रोज़ को भले ही महसूस होता हो, लेकिन इस दाढ़ी में किसी को भी स्त्रीत्व नहीं दिखता.

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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