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Updated: 08 मार्च, 2018 12:59 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
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फेसबुक से लेकर तमाम सोशल मीडिया पर फेमिनिज़्म का जलाव देख रही हूं. बाज़दफ़ा इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी से भी जोड़कर देखा जाता है. लेकिन जहां तक मैं जानती हूं, और मानती भी हूं कि फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमिनिज़्म दो अलग मुद्दे हैं.

- न्यूड फोटो अपडेट करना

- पीरियड के धब्बों को आराम से पहनकर घूमना

- ब्रा की पट्टी दिखाना

- कितने लोगों से सेक्स किया ये नहीं छिपाना

- ऑर्गेज़म डिस्कस करना

ये सारी चीज़ें फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन हैं, फेमिनिज़्म नहीं है. वे औरतें जो फेमिनिज़्म (नारीवाद) का झंडा लेकर नाचती हैं, उन्हें पहले तो फेमिनिज़्म को सिरे से समझने की ज़रूरत है.

फेमिनिज़्म समानता की बात करता है. नौकरी में, तनख्वाह में, प्रॉपर्टी में, एजुकेशन में, सब में औरतों के लिए समान अधिकार हो. फेमिनिज़्म औरतों की हक़ की बात करता है. उन्हें आर्थिक और सामाजिक स्तर पर एक बेहतर ज़िंदगी कैसे मिले इसकी बात करता है.

feminism2_030718063242.jpgफेमिनिज़्म समानता की बात करता है

फेमिनिज़्म कहीं भी पुरूषों को दुश्मन नहीं मानता. यह एक विचारधारा है जो समाज की कमज़ोर आधी आबादी को मुख्यधारा से जोड़ने के हक़ की बात करता है.

मगर आज फेमिनिज़्म का मतलब पूरी तरीके से बदल गया है. कुछ वैसे ही जैसे वामपंथ ने मतलब और मकसद बदल लिए हैं. अब है जिसकी डफली उसका राग. फटाफट पब्लिसिटी पाने का सबसे आसान तरीका, सोशल मीडिया पर फेमिनिज़्म का झंडा लेकर पुरुषों को गाली देना, व्यक्तिगत भड़ास निकालने के लिए पब्लिक प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना, घर में पति या बॉयफ्रेंड से नहीं पट रही इसलिए फेसबुक पर पूरे पुरूष समुदाय को गालियां देना क़त्तई फेमिनिज़्म नहीं है.

दुःख की बात तो ये है कि जो औरतें पब्लिसिटी पाने के लिए ये कर रही हैं, उनका तो कुछ नहीं जा रहा लेकिन सच में वो लोग जो महिलाओं के लिए कुछ करना चाह रहे हैं उनकी बेवकूफी की वजह से वो भी मज़ाक की पात्र बन रही हैं.

अभी तो एक और ट्रेंड देखने को मिल रहा है, गुटबाज़ी. हां, बीस-पच्चीस महिलाओं के लिए फेमिनिज़्म ब्रा का स्ट्रेप दिखाता हुआ फोटो अपडेट करना है तो वहीं कुछ सौ महिलाओं के लिए हैशटैग सेल्फी विथाउट मेक-अप अपलोड करना है.

भाई कोई इनको समझाओ ये फेमिनिज़्म नहीं है. कुछ भी करने से पहले उसके बारे में जानकरी तो इकट्ठा कर लो. 1837 में जब फ्रांसीसी दार्शनिक और समाजवादी चार्ल्स फ्यूरियर ने फेमिनिज़्म शब्द गढ़ा होगा तो उनको कत्तई पता नहीं होगा कि उनके शब्द का ऐसे दुरुपयोग होगा. अमेरिकी फेमिनिस्ट और मशहूर पत्रकार ग्लोरिया स्टेन कहती हैं, ‘फेमिनिस्ट वह है जो बराबरी की अहमियत समझता है और मर्द और औरत दोनों को पूरा इंसान मानता है.’ तो इसमें पुरुषों को गरियाकर कौन सा फेमिनिज्म सधेगा?

ये मेकअप विथाउट सेल्फी अपडेट करके तुमने किसको इम्पॉवर किया? किसी को नहीं. तुम्हारे पोस्ट पर वही मर्द आकर 'आह-वाह' किये जिनके खिलाफ झंडा ले कर तुम चल रही हो.

अभी भी वक़्त है संभलने का. फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेमिनिज़्म के बेसिक अंतर को जानने का.

तुमको जितने लोगों के साथ सेक्स करना है करो. सिगरेट पीना है, शराब पीकर खुले में नाचना है नाचो, मगर इसे फेमिनिज़्म का नाम मत दो. ये तुम्हारी आज़ादी है, इस पर तुम्हारा हक़ है. ये तुम्हारे मौलिक अधिकार हैं.

feminismछोटे कपड़े पहनना फेमिनिज्म नहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है

फेमिनिज़्म किसी को नीचा दिखाना नहीं सिखाता

मेरे घरवालों के लिए मुझे खाना बनाना पसंद हैं. जिसे प्यार करती हूं उसके लिए कपड़े फोल्ड कर देना, कहीं जा रहे तो बैग पैक कर देना, कभी थके हैं तो हल्के हाथों से मसाज़ कर देना, चाय बना देना मुझे कहीं से भी 'लेस फेमनिस्ट' नहीं बनाता.

तो जो औरतें अपनी खुशी से अपनों के लिए ये कर रही हैं वो पिछड़ी हुई नहीं है. तुम बाहर तो नारे फेमिनिज़्म के लगा रही हो और घर जाकर पति के सामने अपने हक़ के शब्द नहीं बोल पा रहीं, बताओ तुम कहां फेमनिस्ट हुईं?

फेमिनिज्म के आंदोलन ने महिलाओं को मताधिकार दिलवाया है, राजनीतिक अधिकार दिलवाए (याद कीजिए नीदरलैंड्स की विल्हेमिया ड्रकर को) इसने गर्भपात के कानून बनवाए और गर्भनिरोधक गोलियों को सुलभ करवाया (याद कीजिए फ्रांसीसी स्वास्थ्य मंत्री सिमॉन वील को) और 1945 के उस पल को भी याद कीजिए जब दूसरी बड़ी लड़ाई के दौरान अमेरिकी महिला फौजियो ने पुरुष फौजियों की जगह ली थी, और इसी के बरअक्स सीरिया में महिला फौजियों की वह खुशी के नृत्य की तस्वीर पर देख लीजिए जब उन्हें फ्रंट पर भेजा जाना मंजूर कर लिया गया (इस घटना को तो दो हफ्ते भी नहीं बीते). मतलब साफ है, अपने हक के लिए आवाज़ उठाओ. शो ऑफ मत करो.

सबसे पहले अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाओ. फिर दूसरों के लिए. घर के आस-पास जो देखो किसी के साथ अन्याय हो रहा हो वहां उसके लिए स्टैंड लो. ये सोशल मिडिया पर, इंकलाब ज़िंदाबाद, पुरुष समुदाय मुर्दाबाद से कुछ नहीं होगा.

यूं आपस में जो उलझती रहोगी, तो जिस सोच को सोचकर ये 'फेमनिज़्म' या 'नारीवाद' टर्म क्वाइन किया गया था उसका सत्यानाश कर दोगी. समझने की जरुरत है बहन. बाकि अपनी चुल्ल को शांत करने के लिए नए-नए पैंतरे ढूंढों मगर फेमिनिज़्म के नाम पर तो बवाल मत काटो.

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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