जहां जिंदा रहने का संघर्ष है वहां ब्रा पर बहस बेमानी दिखती है
आज़ादी के नाम पर हम कुछ भी नहीं मांग सकते हैं. स्वतंत्र होने और स्वछंद होने में फर्क होता है. किसी भी विषय पर बात करने और जागरूकता लाने में कोई बुराई नहीं है, पर बिन बात के सनसनी फैलाने से जरूर बचना चाहिए.
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जिस देश में लड़कियों को जन्म लेने का अधिकार नहीं, उच्च शिक्षा का अधिकार नहीं, पीरियड और सेक्स जैसे विषयों पर बात करने का अधिकार नहीं, अपनी मर्ज़ी से करियर चुनने का अधिकार नहीं, जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं, मायके और ससुराल के मामलों में बोलने का अधिकार नहीं, अपने मनमुताबिक़ खाने और कपड़े पहनने का अधिकार नहीं, बिना पिता और पति के घर के बाहर क़दम रखने का अधिकार नहीं, देश और दुनिया अकेले घूमने का अधिकार नहीं, वहां हम ब्रा पहनें या न पहनें, सार्वजनिक स्थानों पर खुले स्तन से बच्चे को दूध पिलाने या न पिलाने पर उलझे हैं.
अंडरगारमेंट्स पहनना या न पहनना बहुत ही निजी मामला है. घर के भीतर कोई कैसे रहता है यह उस व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है फिर वह लड़का हो या लड़की कोई दिनभर पैंट शर्ट, सलवार सूट पहनकर खुद को सजा संवारकर रखना पसंद करता है तो कई सहूलियत को देखते हुए बरमूडा, टी शर्ट या वेस्ट में. इसी तरह घर के भीतर भी कोई दिन रात ब्रा पहनकर रह सकता है तो कोई दिन में भी बिना अंडरगारमेंट्स पहने रिलैक्स होकर रहना चाहता है. मुझे नहीं लगता कोई किसी के यहां कॉलबेल बजाकर किसी से पूछता या राय देता हो कि आप क्या पहनें क्या नहीं.
ब्रा पहनना या न पहनना बहुत ही निजी मामला है
इसी तरह बाहर जाने पर भी, सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि हम खुद के और खुद के शरीर के साथ कितना सहज हैं और किसी के सामने खुद को बेहतर तरीके से कैसे प्रस्तुत कर सकते हैं. बाहर जाने पर मुझे कतई अच्छा नहीं लगेगा कि मेरा कपड़ा कहीं से गन्दा हो, फटा हो, उसकी सिलाई उधड़ी हो या मेरे शरीर का कोई हिस्सा आड़ा तिरछा या लटका हुआ दिखे.
दूसरा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी किशोरावस्था में लड़कियों को सही साइज के अंडरगारमेंट्स उपलब्ध कराना जरूरी होता जिससे अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को लेकर वह सहज हो सकें और बिना झिझक स्कूल से लेकर खेल के मैदान तक अपनी मौजूदगी दर्ज़ करा सकें. हां 24 घण्टे टाइट कपड़े में अपने शरीर को बांधे रहना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. इसलिए जरूरी है कि हम जिन भी कपड़ों का चुनाव अपने शरीर के लिए करें वह सही नाप के साथ-साथ आरामदायक भी हों.
यही बात मां द्वारा बच्चे को दूध पिलाने पर भी लागू होती है. कोई घर में अपने बच्चे को खुले स्तन से दूध पिलाता है या ढककर यह मां की मर्ज़ी है. पर बाहर खुले स्थानों या सार्वजिनक जगहों पर हमारा मक़सद बच्चे को दूध पिलाना है या सनसनी फैलाना यह सोचना होगा. ऑफिस, ट्रेन और अन्य जगहों पर मैंने बहुत सारी औरतों को दूध पिलाते देखा है. एक दो बार मैंने खुद ट्रेन में अपनी बच्ची को लाइट बन्द करके कम्बल ओढ़कर दूध पिलाया है. मेरा मक़सद साफ था, मुझे अपनी बच्ची की भूख को शांत करना था वो मैंने किया. मेरा मकसद आज़ादी की आड़ में अपने शरीर के उस हिस्से को दिखाना नहीं था. मैं उन औरतों का भी सम्मान करती हूं जो दिन के उजाले में अपने बच्चे को आंचल में छुपाकर दूध पिलाती हैं.
खुले स्तन से दूध पिलाना है या ढककर यह मां की मर्ज़ी है
आज़ादी के नाम पर हम कुछ भी नहीं मांग सकते हैं. स्वतंत्र होने और स्वछंद होने में फर्क होता है, इस बात को हमें समझना होगा. किसी भी विषय पर बात करने और जागरूकता लाने में कोई बुराई नहीं है, पर बिन बात के सनसनी फैलाने से जरूर बचना चाहिए.
दूसरा हम इंसान हैं जानवर नहीं. सालों की मेहनत के बाद हम सभ्य हुए हैं और सभ्यता को अपनाया है. खाने पीने पहनने ओढ़ने का सलीका सीखा है, उसे बनाये रखने की कोशिश होना चाहिए. यह बात महिला पुरुष दोनों पर लागू होती है.
बच्चे देश का भविष्य होते हैं और उन्हें पैदा करने के लिए दो लोग आपस में सेक्स भी करते हैं, तो क्या सेक्स भी खुलेआम सार्वजनकि स्थानों पर करना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा ही बच्चा पैदा करने जैसा महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है???
खूब लड़िये, खूब आवाज़ उठाइये पर अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए. सही को न्याय दिलाने के लिए, खुद की आज़ादी के लिए, अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए, ख़ुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, खुली हवा में सांस लेने के लिए. जिस दिन आप ये हासिल कर लेंगे उस दिन आप शरीर मात्र नहीं रह जाएंगे, इसलिए उसको ढकने या न ढकने की लड़ाई भी खुद ब खुद खत्म हो जाएगी.
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