हाउस वाइफ या वर्किंग? जानिए लोगों की नजर में कौन बेस्ट पत्नी है
आप अपने दिमाग से यह निकाल दीजिए कि हमने यह सवाल सिर्फ पुरुषों से किया है क्योंकि कई महिलाएं खुद यह मानती हैं कि कामकाजी महिलाएं ज्यादा काम करती हैं. वहीं कई का मानना है कि हाउसवाइफ जितना सबके लिए करती हैं उतना कामकाजी महिलाएं कभी नहीं कर पातीं, क्योंकि उनके पास किसी और के लिए समय ही नहीं होता है.
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कुछ भी बोलने से पहले यह बता दें कि हाउस वाइफ (Housewife) किसी से कम नहीं है. ना ही हम उन्हें वर्किंग वुमेन (Working Women) से कम आंकने की बात कर रहे हैं. हम यहां बस कुछ लोगों की बातें बता रहें है कि उनका क्या सोचना है, कामकाजी महिलाएं बेहतर हैं या घरेलू?
आप अपने दिमाग से यह निकाल दीजिए कि हमने यह सवाल सिर्फ पुरुषों से किया है क्योंकि कई महिलाएं खुद यह मानती हैं कि कामकाजी महिलाएं ज्यादा काम करती हैं. वहीं कई का मानना है कि हाउस वाइफ जितना सबके लिए करती हैं उतना कामकाजी महिलाएं कभी नहीं कर पातीं, क्योंकि उनके पास किसी और के लिए समय ही नहीं होता है.
वैसे दोनों की अहमियत किसी से कम नहीं है. इस सवाल पर अवनीश का कहना है कि आज के जमाने में पति-पत्नी दोनों का काम करना बेहद जरूरी है. मंहगाई इतनी ज्यादा है कि अकेले के काम करने से कुछ नहीं होने वाला. इंसान क्या कमाएगा और क्या खाएगा? इसलिए पति और पत्नी दोनों को मिलकर काम करना चाहिए.
हाउसवाइफ हों या वर्किंग वुमेन दोनों को सम्मान मिलना चाहिए
इसके ठीक उलट राजीव का मानना है कि अगर पत्नी घर पर रहकर घर को संवारती हैं तो चीजें ज्यादा आसान हो जाती हैं. अगर दोनों लोग काम ही करेंगे तो एक कप चाय मिलना भी मुश्किल हो जाएगा.
त्रिशुला कहती हैं कि मेरे हिसाब से तो वर्किंग वुमेन ज्यादा सही हैं, हाउसवाइफ तो वैसे भी आजकल घर के काम भी नहीं करतीं. उनको भी तो कामवाली बाई के सहारे ही जीना पड़ता है. वे तो आजकल घर का कोई काम भी नहीं करतीं. पहले जैसी हाउसवाइफ अब कहां होती हैं. अब तो किटी पार्टी, मोबाइल में महिलाओं का ज्यादा ध्यान रहता है. अब तो ट्यूशन के लिए भी टीचर लगने लगे हैं. काम तो हमारे जमाने की महिलाएं करती थीं. इससे सही तो वर्किंग वुमेन हैं जो बाहर का काम भी करती हैं और घर भी देख लेती हैं. वो मॉडर्न जो होती हैं.
जबकि ऐसा नहीं है. महिला चाहें हाउसवाइफ हो या वर्किंग, दोनों का काम किसी से कम नहीं होता. दोनों की अपनी मुश्किलें हैं, दोनों कहीं से भी किसी से कम मेहनत नहीं करतीं. यही बात समाज को समझना है.
असल में मॉडर्न तो हाउसवाइफ भी होती हैं. आज की हाउसवाइफ भी खुद को हर चीज से अपडेट रखती हैं. घर में सिर्फ झाड़ूू और बर्तन का ही काम थोड़ी होता है. पूरे घर को संभालना, सबका ख्याल रखना, रिश्तेदारी, चीजों को मैनेज करना...ऐसे और भी 10 काम होते हैं. आज के जमाने में घर में रहने वाली महिला भी कपड़ों और सोच दोनों से मॉडर्न होती हैं. वे जमाने से साथ चलती हैं, वे खुले विचारों वाली होती हैं.
जबकि आज भी समाज में हाउसवाइफ होने को गलत नज़रिए से देखा जाता है. महिला चाहें घर में हो या वर्क प्लेस पर रिस्पेक्ट दोनों को मिलनी चाहिए…जमाना ऐसा है कि महिला चाहें हाउसवाइफ हो या वर्किंग अगर वो दिमाग से खाली और शक्ल से झल्ली है तो कोई उसे पसंद नहीं करता. बात कड़वी है मगर आज के समय ही यही सच्चाई है. कोई यह नहीं चाहता है कि घर में रहने वाली महिला अच्छी ना दिखे. अगर वो मेकअप नहीं करती तो 'लोग क्या कहेंगे' के ताने दिए जाते हैं. उसे घर में भी सजधज कर ही रहना है और अगर आज हाउसवाइफ जमाने के साथ चलने के लिए मॉडर्न बन रही हैं तो हर्ज ही क्या है?
आज के पति भी तो स्मार्ट आउट अप टू डेट पत्नी चाहते हैं. बच्चे भी मॉम को मॉडर्न यानी जमाने के साथ चलते देखना चाहते हैं. तो फिर जब जमाना ही मॉडर्न हो गया है, यही समय की डिमांड है, तो फिर हाउसवाइफ के खुद को अप टू डेट रखने में कैसा हर्ज़ है.
कामकाजी महिलाएं भीड़ में अलग ही नज़र आती हैं, लोग उन्हें तेज तड़ाक व अलग नज़रिए से देखते हैं लेकिन वे अपनी इसी काबिलियत की वजह से आज पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, उनका मकसद खुद को औऱ परिवार को आगे बढ़ाने का है ना कि पुरुष से आगे निकलने का...आज कामकाजी और घरेलू दोनों ही महिलाएं खुद को ज्यादा कॉन्फिडेंट महसूस कर रही हैं. तो हमें भी उन दोनों का बराबार सम्मान करना चाहिए, ना किसी कम आंकों ना किसी तो ताना मारो…
हालांकि ज्यादातर लोगों का मानना है कि महिलाएं घर पर रहकर परिवार की देखभाल करें तो ज्यादा बेहतर है. महिलाओं के काम करने से पूरे घर की व्यवस्था चरमरा जाती है. कई का कहना है कि अगर जरूरत ना हो तो स्त्रियां घर पर ही रहें. कई मानते हैं कि घर पर रहकर सास-बहू का सीरियल देखने से अच्छा है कोई रचनात्मक काम करना, क्यों क्या हाउसवाइफ घर पर सिर्फ टीवी ही देखती हैं?
लोगों को समझ जाना चाहिए कि महिलाओं की अपनी भी जिंदगी हैं. उन्हें भी अपने हिसाब से जीने का हक है. यह फैसला एक महिला ही ले सकती हैं कि उसे काम करना है या नहीं, उस पर इस बात के लिए कोई दबाव नहीं होना चाहिए. ना जाने यह समाज इस सच्चाई को कब अपनाएगा कि समय के साथ बदलाव जरूरी होता है...अगर पति और पत्नी दोनों ही एक-दूसरे की सहायता करें तो ये शिकायतें आएंगी ही नहीं...फिर कभी ऐसी तुलना करने की नौबत नहीं आएगी!
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