FIFA में भारतीयों की दिलचस्पी फुटबॉल से ज्यादा खिलाड़ियों की गर्ल फ्रेंड्स-बीवियों में है!
Fifa को लेकर भारतीयों में भी उत्साह कम नहीं है. भारत के लोग भी उसी शिद्दत से फ़ुटबॉल देख रहे हैं जैसे विश्व का कोई अन्य मुल्क. लेकिन क्या भारतीय वाक़ई फुटबॉल देख रहे हैं? सवाल इसलिए क्योंकि अगर देख रहे होते तो आज अपनी भारतीय फुटबॉल टीम भी वहां क़तर में होती.
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भारत में उसमें भी उत्तर भारत में नवंबर की गुलाबी ठंडक ख़त्म हो रही है. दिसंबर के हाड कंपा देने वाले जाड़े की शुरुआत होने वाली है लेकिन फ़ुटबॉल फैंस को इससे कोई मतलब नहीं है.उनपर फुटबॉल का खुमार न केवल चढ़ा है बल्कि सर चढ़ कर बोल रहा है. फुटबॉल लवर्स की निगाहें अपनी-अपनी टीवी स्क्रींस पर हैं. चाहे वो मेसी और मुलर के फैन हों या फिर वो, जो क़तर में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप 2022 में नेमार और रोनाल्डो को सपोर्ट कर रहे हैं हर कोई ये जानने को बेताब है कि वो कौन होगा जो सबको पछाड़ते हुए फुटबॉल के विश्व कप पर कब्ज़ा जमाएगा. यूं तो फुटबॉल जैसे खेल में कुछ भी पूर्वनियोजित और पूर्वनिर्धारित नहीं है (मोरक्को को ही देख लीजिये फीफा रैंकिंग में बाइसवें नंबर की टीम थी, वर्ल्ड नंबर 2 बेल्जियम 0-2 से शिकस्त दे दी इसी तरह कोस्टा रिका ने जापान को 1 गोल से हरा दिया ) बावजूद इसके विश्व के किसी अन्य मुल्क की तरह यहां भारत में भी फुटबॉल वर्ल्ड कप को लेकर उत्साह कम नहीं है. भारत में भी लोग उसी शिद्दत से मैच देख रहे हैं. विश्व के तमाम छोटे बड़े मुल्क अपनी अपनी टीमों के साथ क़तर में हैं और फुटबॉल मैच खेल रहे हैं भारतीयों का हाल थोड़ा अलग है.
विश्व के किसी अन्य फुटबॉल फैन की तरह भारतीयों का भी उत्साह फुटबॉल के प्रति कम नहीं है और मजेदार ये कि कारण फुटबॉल है ही नहीं
भारतीय फुटबॉल फैंस के दिल में एक बात टीस की तरह चुभ रही है और वो ये कि आखिर कब हम टीम इंडिया को क्रिकेट की ही तरह फुलबॉल वर्ल्ड कप में गेंद के पीछे और विरोधी खिलाडियों को छकाते हुए देखेंगे? कब ऐसे होगा जब फुटबॉल के महासमर में कोई खिलाड़ी भारत की जर्सी में भारत के लिए गोल दागेगा? कोई कुछ कह ले ये भारत और फुटबॉल को लेकर जो भी सवाल उठ रहे हैं, माकूल हैं. कब तक हम फुटबॉल प्रेमी बेगानी शादी में अब्दुल्ला बन खुश होते रहेंगे. कब तक हम स्क्रीन पर नेमार, लूका मॉड्रिक, दि मारिया, मेसी, एमबाप्पे, मुलर जैसों को देख कर फर्जी में ताली बजाएंगे उनकी ख़ुशी में ख़ुशी और ग़म का ग़म मनाएंगे?
150 करोड़ भारतीयों के फुटबॉल प्रेम की बात करें तो वे ऐसे मुल्कों को खेलता देख रहे हैं जो असल में हमारे यूपी, बिहार, उत्तराखंड, दिल्ली और ओड़िशा के बराबर आबादी है. क्या हम देश से ऐसे 11 लोग नहीं निकाल सकते जो विश्व पटल ओर हमारी लाज रख लें? हो सकता है. ऐसा बिलकुल हो सकता है. निकल सकते हैं 11 खिलाड़ी. हम देख सकते हैं उन्हें किसी अन्य देश के 11 लोगों को गेंद से छकाते हुए लेकिन उससे पहले हमें अपनी प्राथमिकता बदलनी होगी.
जी हां बिलकुल सही सुना आपने. हमारी टीम फुटबॉल खेलने तब ही बाहर जा पाएगी जब हम अपनी प्राथमिकता बदलेंगे और एनर्जी से लबरेज इस खेल को गंभीरता से लेंगे. बात आगे बढे उससे पहले ये बता देना बहुत जरूरी है कि यहां प्राथमिकता से हमारी मुराद सरकारी प्रयासों या खिलाड़ियों की प्रैक्टिस से नहीं है. यहां हमारी स्वयं की बात हो रही है. हो सकता है 'प्राथमिकता' वाली बात को कोई फुटबॉल लवर इग्नोर मार दे मगर ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि देश में एक बड़ी आबादी ऐसी है जो फुटबॉल को बहुत ज्यादा हल्के में ले रही है और उनके लिए फुटबॉल और विषय कप का अर्थ सिर्फ खिलाड़ी और उनकी गर्ल फ्रेंड्स की हॉट तस्वीरें हैं.
ये भले ही शर्मनाक हो. लेकिन आज का बड़ा सच यही है कि मीडिया, चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या फिर वेब मीडिया ज्यादा से ज्यादा यही दिखा रहा है कि कौन किसकी गर्ल फ्रेंड है और किसने क्या पहनकर किसी जगह पर एन्जॉय किया है. शायद आपको हैरत हो मगर भारत में ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो बाकायदा ये सारी बकवास गूगल पर जाकर सर्च कर रहे हैं. इन्हें न तो महान खिलाड़ियों को देखना है न ही उनके खेल और स्किल को. इन्हें यदि कुछ देखना है तो वो बीच पर बिकनी पहले किसी स्टार फुटबॉलर की पत्नी/ प्रेमिका है.
आप खुद बताइये जिस देश में फुटबॉल जैसे गेम के प्रति लोगों का रवैया फुटबॉलर्स की गर्ल फ्रेंड्स पर आकर रुक जाता हो वहां क्या खाक लोग एक गेम के रूप में फुटबॉल को सीरियसली लेंगे. हो सकता है ऊपर लिखी बातें किसी भी भारतीय फुटबॉल फैन को आहत कर लें या फिर इन्हें एक बेहद बचकाना तर्क करार दे दिया जाए लेकिन जिस तरह फुटबॉल को ग्लैमर और महिलाओं से भारतीय प्रशंसकों द्वारा जोड़ा जा रहा है कल अगर भारतीय टीम लाख प्रयास करके मैदान में उतर भी गयी तो वहां भी हम भारतियों के बीच चर्चा का विषय अपनी टीम के खिलाड़ियों की पत्नी और प्रेमिकाएं होंगी.
विषय को समझने के लिए कोई बहुत ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं है. बात बहुत सीधी है बतौर दर्शक हमें फुटबॉल को फुटबॉल की तरह देखना है. एक खेल की तरह देखना है जबकि हो ये रहा है कि हम ग्लैमर देख रहे हैं. उसमें शामिल महिलाएं देख रहे हैं. बात बाकी ये है कि जिस दिन हम भारतीयों को सही मायनों में फुटबॉल देखने का सलीका आ जाएगा. हमारी टीम भी वहां होगी और शायद किसी दिन फुटबॉल का वर्ल्ड कप भारत आ जाए.
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