कैसे कोहली एंड कंपनी ने धोनी को किनारे किया
यह कहानी रांची जैसे एक छोटे शहर के लड़के की है. जिसने भारतीय टीम के नेतृत्व की दबाव वाली जिम्मेदारी संभाली और विपरीत परिस्थितियों का बिना घबराए हुए सामना किया.
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यह कहानी रांची जैसे एक छोटे शहर के लड़के की है. जिसने भारतीय टीम के नेतृत्व की दबाव वाली जिम्मेदारी संभाली और विपरीत परिस्थितियों का बिना घबराए हुए सामना किया. लेकिन अपने शानदार करियर के आखरी दौर में उन्होंने प्रशंसकों को निराश कर दिया है. उनके चेहरे पर बड़ा तनाव दिख रहा है. धोनी वह व्यक्ति हैं जिन्होंने कभी अपने जज्बात को खुद पर हावी नहीं होने दिया.
वक्त की घड़ी को कुछ साल पीछे ले जाइए. आपके पास एक क्रिकेटर था जो लापरवाह नहीं हो सकता था. जिसने बैक-टू-बैक कई श्रृंखलाओं में हार का मुंह देखा, कभी इंग्लैंड के खिलाफ और कभी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ. आईपीएल के छठे संस्करण में उस पर मैच फिक्सिंग के आरोप भी लगे. 2007 में टी-20 विश्वकप जीतने के बाद धोनी ने कहा था कि 2007 के विश्व कप में भारत जल्द बाहर निकल जाएगा. तब प्रशंसकों ने रांची में उनके घर पर पथराव किया था. उन्होंने कभी भी भावनाओं को गंभीरता से लेना नहीं सीखा है और हमेशा प्रेक्टिकल एप्रोच पर ध्यान लगाया.
लेकिन अगर वे ऐसे काम करते रहे हैं और उन्होंने हमेशा सफलता हासिल की है. अपनी टीम के सदस्यों के लिए हमेशा अपने होटल के कमरे का दरवाजा 24 घंटे खुला रखने वाले इंसान अब एकदम अलग थलग क्यों है? इस बात से साफ इशारा मिलता है कि यह टीम अब धोनी की नहीं है? क्या यह उन्हें अपने साथियों से कमांडर के तौर पर सम्मान न मिल पाने का मामला है? दिलचस्प बात यह है कि कुछ खिलाड़ियों टेस्ट टीम के कप्तान विराट कोहली की आक्रामक रणनीति को पहले से ही स्वीकार कर लिया है.
हकीकत में टीम निदेशक रवि शास्त्री खूबसूरती के साथ कोहली और टीम से जुड़े रहे. और टेस्ट और वन-डे सीरीज में बांग्लादेश से मुकाबले को खिलवाड़ की तरह देखते रहे. टीम में खेमेबाजी की बातें हो रही हैं. कुछ लोग कोहली को ही मैच के शॉर्ट फोरमेट की बागडोर भी देना चाहते हैं.
विडंबना यह है कि जब से धोनी ने टेस्ट क्रिकेट छोड़ दिया है उनका भावनात्मक पक्ष सामने आ गया है. यह सब इस साल के आईपीएल में शुरू हुआ जब उन्हें एक मैच में मिसफील्डिंग करने वाले साथी खिलाड़ी ड्वेन स्मिथ पर चीखते हुए देखा गया. धोनी के शांत स्वभाव और मैच के हालात को देखते हुए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल था. फिर वेस्ट इंडीज के खिलाफ एक मैच के दौरान धोनी ने एक गलत लेग-बीफोर निर्णय देने पर अंपायरों की आलोचना की. इस बात से कप्तान का वो रूप सामने आया जिससे कई लोग आंजान थे.
क्या यह उस टीम का नेतृत्व करने का दबाव है, जिसने कोहली के रूप में नेतृत्व के नए ब्रांड को देख लिया है? बचपन के कोच चंचल भट्टाचार्य मानते हैं कि निश्चित रूप से ड्रेसिंग रूम का माहौल धोनी की मदद नहीं कर रहा है. कोहली भी कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं, जिससे लगे कि वे अपने माही भाई के पीछे खड़े हैं. यह तथ्य अब शक पैदा कर रहा है. कोहली उन्हें प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं. लेकिन कब तक?
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