महिला खिलाड़ियों की शक्ति पर खेल संगठनों की सोच 'टेनिस गेंद' सरीखी हल्की है!
अमेरिकी ओपन शुरु होने से पहले ही विवादों में घिर गया है. विश्व की नंबर एक टेनिस खिलाड़ी इगा स्वियातेक ने यूएस टेनिस एसोसिएशन पर आरोप लगाया है कि इस टूर्नामेंट में महिला खिलाड़ियों के साथ लैंगिक भेदभाव किया जाता है.
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अमेरिका के न्यूयॉर्क में 29 अगस्त से साल के आखिरी ग्रैंड स्लैम अमेरिकी ओपन की शुरुआत हुई. टूर्नामेंट शुरु होने से पहले ही विवादों में घिर गया. विश्व की नंबर एक टेनिस खिलाड़ी इगा स्वियातेक ने यूएस टेनिस एसोसिएशन पर आरोप लगाया कि इस टूर्नामेंट में महिला खिलाड़ियों के साथ लैंगिक भेदभाव किया जाता है. इगा ने कहा कि ओपन में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को हल्की गेंद मिलती है. हल्की गेंद को नियंत्रित करना कठिन होता है. मामले पर अपना पक्ष रखते हुए यूएस टेनिस एसोसिएशन ने जवाब में कहा कि भारी गेंद हार्ड कोर्ट पर पुरुषों को नियंत्रित करने और हल्की गेंद महिलाओं के खेल में गति देने के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है. इगा स्वियातेक इस मामले में आवाज उठाने वाली पहली महिला नहीं हैं. इससे पहले टेनिस खिलाड़ी पौला बदोस ने इस पर आपत्ति जताते हुए पूछा था कि क्या वे पुरुषों के समान गेंद का उपयोग कर सकती हैं. इसी वर्ष ऑस्ट्रेलियन ओपन की विजेता एश्र्ले बार्टी ने भी गेंद में भेदभाव का विरोध किया था.साल में चार ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंट होते हैं. इनमें ऑस्ट्रेलियन ओपन, फ्रेंच ओपन और विंबलडन में महिला और पुरुषों की गेंद में कोई अंतर नहीं होता. केवल यूएस ओपन में महिला और पुरुषों के लिए अलग- अलग गेंद का इस्तेमाल किया जाता है.
यूएस ओपन पर जो आरोप एक महिला खिलाडी ने लगाए हैं वो खासे गंभीर हैं
यॉर्क यूनिवर्सिटी के टेनिस कोच माइकल मिशेल का कहना है कि महिला खिलाड़ियों के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले गेंद से अगर पुरुष खिलाड़ी खेलें, तो वो इसे 175 मील प्रति घंटे की गति से हिट करेंगे. वजन में यह बदलाव खिलाड़ियों की शिकायत के बाद हुई थी. बॉल के निर्माता कंपनी विल्सन के ग्लोबल प्रोडक्ट डायरेक्टर जैसन कॉलिंस के अनुसार, 80 के दशक में महिला खिलाड़ियों ने भारी गेंद की वजह से कंधे, कोहनी और हाथ में दिक्कत की बात की थी जिसके बाद इस बदलाव को अमल में लाया गया.
इगा का कहना है कि 10 साल पहले सेरेना विलियम्स जैसी कुछ खिलाड़ियों का खेल ही पावरफुल होता था. बाकि खिलाड़ियों का गेम धीमा होता था. आज के समय में महिला खिलाड़ियों की शारीरिक शक्ति पहले से कई गुना बेहतर है. अब समय बदल गया है और अब यह अलग - अलग गेंदों से खेलने का तर्क उनकी समझ से परे है. केवल टेनिस में ही नहीं दूसरे खेलों में भी शारीरिक शक्ति के आधार पर महिलाओं को लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
महिला क्रिकेट टेस्ट में गेंद का वजन कम से कम 140 ग्राम होता है. जबकि पुरुषों के मैच में गेंद का वजन 156 ग्राम से कम नहीं होता. महिला क्रिकेट में बाउंड्री कम से कम 55 मीटर और अधिकतम 64 मीटर की होती है. जबकि पुरुषों के टेस्ट मैच में यह दूरी क्रमश: 59 मीटर और 82 मीटर होती है. वॉलीबॉल में महिला खिलाड़ी के लिए नेट का ऊपरी हिस्सा 7.35 फिट की ऊंचाई पर होता है. पुरुषों के लिए नेट का ऊपरी हिस्सा 7.97 की ऊंचाई पर होता है.
बास्केटबॉल में भी महिला खिलाड़ी के लिए बास्केट या हूप्स नीचे होता है. भाला फेंक स्पर्धा में महिलाओं का भाला हल्का होता है जबकि बाधा दौड़ में बाधाएं नीची होती है. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने एकबार महिला क्रिकेट को दर्शकों के लिए आकर्षित बनाने के लिए नियमों में कुछ बदलाव किया था. आईसीसी ने महिला क्रिकेट को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए छोटी गेंद और छोटी पिच को उपयोग में लाने की सुझाव दी थी.
भारत की तेज गेंदबाज शिखा पांडे ने इसपर कहा था कि महिला क्रिकेट की प्रगति/ इसे अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए विभिन्न कई तरह के सुझावों के बारे में पढ़/ सुन रही हूं. मेरा निजी तौर पर मानना है कि अधिकांश सुझाव अनावश्यक हैं. उन्होंने कहा कि ओलंपिक 100 मीटर फर्राटा महिला धाविका पहले स्थान का पदक हासिल करने और पुरुष समकक्षों के बराबर समय निकालने के लिए 80 मीटर नहीं दौड़तीं. इसलिए किसी भी कारण से पिच की लंबाई कम करना संदेहास्पद लगता है.
शिखा ने खेल में हो रहे लैंगिक भेदभाव पर आगे कहा था कि खेल की अच्छी तरह से मार्केटिंग करके प्रगति की जा सकती है. दर्शकों को आकर्षित करने के लिए नियमों में बदलाव की जरुरत नहीं है. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा था कि डीआरएस, स्निको, हॉटस्पॉट, अन्य तकनीकी चीजों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाए और दुनिया भर में कहीं पर भी खेले जाने वाले मैच का सीधा प्रसारण क्यों नहीं हो. शिखा ने साथ ही कहा कि महिला और पुरुष क्रिकेट की तुलना नहीं की जानी चाहिए क्योंकि दोनों अलग है. विचार करने वाली बात है कि इतने संघर्ष और सफलता के बावजूद भी खेल में समानता का वह स्वरुप स्थापित क्यों नहीं हो पाया है, जो कि अपेक्षित था.
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