अब कप्तान के रूप में कोहली का भी टेस्ट है
टीम की हार में बल्लेबाजों के साथ ही कप्तान कोहली और टीम के फैसले भी उतने ही जिम्मेदार लगते हैं. हालांकि कोहली जो खुद जबरदस्त फॉर्म में हैं और लगातार अच्छा प्रदर्शन भी कर रहे हैं, मगर पूरी टीम से जीतने लायक प्रदर्शन करा नहीं पा रहे है.
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एजबेस्टन में पहले टेस्ट मैच में करीबी हार के बाद उम्मीद यह थी कि शायद भारतीय टीम लॉर्ड्स में होने वाले दूसरे मैच में वापसी करे. हालांकि उम्मीद के विपरीत दूसरे टेस्ट मैच में भारतीय टीम और भी शर्मनाक तरीके से हार गयी. भारतीय बल्लेबाजों का आत्मसमर्पण इस प्रकार का रहा कि टीम को पारी और 159 रनों की करारी हार झेलनी पड़ी. बल्लेबाजों का प्रदर्शन किस कदर निराशाजनक रहा वो इस बात से समझी जा सकती है कि भारत की दोनों पारियों को मिलाकर 11 बल्लेबाज दोहरे अंक तक भी नहीं पहुंच सके, और टीम दोनों पारियों को मिला कर कुल 82 ओवर तक ही खेल सकी.
भारत की दोनों पारियों को मिलाकर 11 बल्लेबाज दोहरे अंक तक भी नहीं पहुंच सके
हालांकि भारत का इंग्लैंड की धरती पर प्रदर्शन 2011 के दौरे से बेहद खराब रहा है, भारत को 2011 दौरे से लेकर अब तक इंग्लैंड की धरती पर खेले 11 टेस्ट मैच में 9 में हार का सामना करना पड़ा है, जबकि टीम को इस दौरान एकमात्र जीत पिछले दौरे पर लॉर्ड्स के मैदान पर ही मिली थी. हालांकि इस बार लॉर्ड्स के मैदान पर भारतीय टीम का प्रदर्शन इतना लचर रहा कि यकीन करना मुश्किल है कि वर्तमान भारतीय टीम टेस्ट क्रिकेट रैंकिंग में पहले पायदान पर है.
2011 से 2018 के दौरे तक टीम के लगभग सभी चेहरे बदल गए, मगर प्रदर्शन के पैमाने पर खिलाड़ियों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला. इस दौरे से पहले इस भारतीय टीम जिसका नेतृत्व विराट कोहली के हाथों में था, से उम्मीद यही की जा रही थी कि यह टीम इंग्लैंड में खराब प्रदर्शन के रिकार्ड्स को जरूर बदलेगी. मगर पहले दो मैचों में टीम का प्रदर्शन यह बताने के लिए काफी है कि टीम जीतना तो दूर जीतने के लिए खेलती भी नजर नहीं आ रही है. भारतीय बल्लेबाजों में इंग्लैंड के गेंदबाजों का खौफ कुछ इस कदर का है कि कोई विकेट पर टिकना ही नहीं चाहता.
हालांकि टीम की हार में बल्लेबाजों के साथ ही कप्तान कोहली और टीम के फैसले भी उतने ही जिम्मेदार लगते हैं. जहां पहले मैच में पुजारा का टीम से बाहर रखना सवालों के घेरे में था, तो दूसरे मैच में ओवरकास्ट कंडीशन्स में उमेश यादव की जगह कुलदीप यादव को खिलाना भी कम चौंकाने वाला नहीं रहा. इसके अलावा कोहली का के एल राहुल प्रेम भी समझ से परे है. राहुल का विदेशी पिच पर प्रदर्शन हमेशा औसत ही रहा है, बावजूद इसके कोहली ने दूसरे मैच में उन्हें शिखर धवन के ऊपर तरजीह दी. हालांकि शिखर भी विदेशी पिचों पर संघर्ष करते रहे हैं, मगर कॉन्फिडेंस के मामले में वो राहुल से बेहतर दिखते हैं, और साथ ही शिखर विदेशी सीरीज में कुछ बदकिस्मत भी रहे हैं, जब पूरी टीम की विफलता का ठीकरा उन्हीं के सर फोड़ दिया जाता है. शिखर को पिछले कुछ सीरीज के दौरान एक मैच के बाद बेंच पर जगह दे दी जाती है.
विराट कोहली को खुद को बेहतर कप्तान के रूप में साबित करना होगा
हालांकि कोहली जो खुद जबरदस्त फॉर्म में हैं और लगातार अच्छा प्रदर्शन भी कर रहे हैं, मगर पूरी टीम से जीतने लायक प्रदर्शन करा नहीं पा रहे है. यह कुछ कुछ सचिन तेंदुलकर के दौर जैसा भी है, जब सचिन बतौर कप्तान अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद टीम को जीत नहीं दिला पा रहे थे, और बाद में सचिन ने कप्तानी से ही तौबा कर ली थी.
अभी तक बतौर कप्तान कोहली का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है, मगर सच यह भी है कि टीम को इस दौरान ज्यादातर घरेलू पिचों पर ही जीत मिली है, और विदेशी पिचों पर टीम की कहानी अभी भी ढांक के तीन पात वाली ही है. ऐसे में अगर कोहली खुद को एक महान बल्लेबाज के साथ एक बेहतर कप्तान के तौर पर भी देखना चाहते हैं तो उन्हें खुद के प्रदर्शन के साथ ही टीम के प्रदर्शन को भी ऊंचा उठाना होगा. भारतीय टीम के लिए अभी भी इंग्लैंड में तीन टेस्ट बाकी है ऐसे में कोहली को इन तीन टेस्ट में ऐसे फैसले लेने होंगे जो टीम को जीत दिला सकें. ऐसे में कह सकते हैं कि आने वाले टेस्ट मैच कप्तान के रूप में कोहली का भी टेस्ट लेने वाले हैं.
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