फीफा 2018 नहीं तो क्या हुआ 2030 के लिए फुटबॉल टीम तैयार होने लगी है
कहते हैं किसी भी खेल के लिए महारत हासिल करनी हो तो उसे बचपन से लेकर बुढापे तक खेलो. शायद इसीलिए अब भारतीय फुटबॉल को नई पहल देने के लिए बेबी लीग बनाई गई है.
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हमारे देश में बच्चे हो या बड़े एक खेल सभी को पसंद आता है वो है क्रिकेट. हर किसी की जुबां पर क्रिकेट की बात रहती है और बड़ी ही गर्मजोशी से हम क्रिकेट वर्ल्डकप का इंतज़ार करते हैं, लेकिन अगर यहीं हम बाकी खेलों की बात करें तो उसके लिए कोई जोश और उत्साह नहीं दिखता.
शायद यही कारण है कि दुनिया भर में फुटबॉल वर्ल्ड कप 2018 का भूत सिर चढ़कर बोला, लेकिन भारत में बस गिने-चुने लोगों ने इसपर प्रतिक्रिया दी. अगर यहीं क्रिकेट होता तो लोग इसे देखने के लिए ऑफिस से छुट्टी ले लेते और अपने काम-धंधे छोड़ देते.
कहते हैं किसी भी खेल के लिए महारत हासिल करनी हो तो उसे बचपन से लेकर बुढापे तक खेलो. शायद यही कारण है कि चीन में लोग 2-3 साल के बच्चों को ही खिलाड़ी बनने के लिए तैयरा करने लगते हैं. जहां चीन में ये प्रथा क्रूर भी लग सकती है वहीं भारत ने थोड़ा ज्यादा शालीन तरीका अपनाया है.
देश में फुटबॉल को लेकर जागरुकता बढ़ाने के लिए मेघालय ने बेबी लीग बनाई है.
The Cutest pic, you will See ????The Meghalaya Baby League 2018 was inaugurated yesterday at Shillong Jawaharlal Nehru StadiumIndian Star Footballer Eugeneson Lyngdoh and the owners of different clubs who participated in this league were present ???? pic.twitter.com/fcmtKFwkr5
— Indian Football Team-For World Cup (@IFTWC) May 20, 2018
हर शनिवार और कुछ पब्लिक छुट्टियों के दिन बच्चे शिलॉन्ग में बेहतरीन जर्सी पहनकर आते हैं और अपनी-अपनी टीम के साथ खेलते हैं और उनके माता-पिता उन्हें प्रोत्साहित करते हैं. इन टीमों में बच्चों की उम्र 4 साल से 13 साल तक होती है और खेल के नियम इसके हिसाब से बदलते हैं कि बच्चे किस उम्र के ब्रैकेट में आते हैं.
उदाहरण के तौर पर जैसे 4 साल के बच्चों के मैच में 10 मिनट खेल के बाद ब्रेक होगा और उसके बाद फिर 10 मिनट खेल. टीनएजर्स के लिए ये 25 मिनट है. हर टीम लीग में 40 मैच खेल सकती है. बच्चों को ट्रेनिंग भी बहुत बेहतरीन ढंग से दी जाती है.
#Meghalaya is hosting a Baby League soccer tournament and this how they trained. The tournament is a joint initiative of Tata Trusts, Meghalaya Football Association and All India Football Federation.Full report: https://t.co/DWF8miY243#SoccerLove #WorldCup pic.twitter.com/rFOOQC8lNx
— Anupam Bordoloi (@asomputra) June 18, 2018
ये खेल हमेशा एकता और समानता सिखाता है. खास तौर पर इस खेल में लैंगिक समानता सिखाई जाती है. इसलिए हर टीम के लिए ये जरूरी है कि कम से कम 10% लड़कियां हों और ऐसी भी कोशिश की जा रही है कि एक पूरी गर्ल्स लीग बनाई जाए.
लीग बनाने का आइडिया मेघालय फुटबॉल असोसिएशन, AIFF (ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन), और मेन स्पॉन्सर टाटा ट्रस्ट के सौजन्य से सफल हो पाया. इसका सीधा कारण ये है ताकि बच्चे प्रतिस्पर्धा को देख पाएं. अगर हर दिन प्रैक्टिस की और कॉम्पटीशन के बारे में नहीं सोचा तो ये गलत होगा. मेघालय फुटबॉल असोसिएशन के सीईओ अर्की नोनग्रम ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि फुटबॉल खिलाड़ियों के सामने जो कमी थी वो थी प्रतिस्पर्धा की. बेबी लीग से बच्चों को वो प्लेटफॉर्म बहुत कम उम्र में मिल जाएगा.
उम्मीद की जा रही है कि जल्दी ही बेंगलुरु और उड़ीसा भी मेघालय की तरह ही बेबी लीग बना सकते हैं.
भारतीय टीम कभी भी फुटबॉल वर्ल्ड कप खेलने नहीं गई. सुनील छेत्री ने कुछ समय पहले लोगों से अपील भी की थी कि वो फुटबॉल स्टेडियम भरें.
भारत के फुटबॉल टीम का कप्तान सुनील छेत्री, देश के लिए 100 मैच खेलने वाला व्यक्ति और अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में लियोनेल मेसी के बराबर गोल करने वाला खिलाड़ी. और उस इंटरनेशनल लेवल प्लेयर को देश से क्या मिन्नत करनी पड़ती है वो देखिए.
This is nothing but a small plea from me to you. Take out a little time and give me a listen. pic.twitter.com/fcOA3qPH8i
— Sunil Chhetri (@chetrisunil11) June 2, 2018
ये है देश में फुटबॉल की हालत. वो देश जहां लोग क्रिकेट को पूजा मानते हैं और बाकी खेल उनके लिए बेकार हैं, उस देश में यकीनन फुटबॉल के स्तर को थोड़ा बढ़ाने के लिए ऐसे काम करने ही होंगे. बच्चों की फुटबॉल लीग ही शायद लोगों को इस खेल में और इंट्रेस्ट जगा सके. धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कम से कम पहल तो हो रही है देश में. हो सकता है कि इस पहल का नतीजा ये निकले कि लोग आने वाले समय में फुटबॉल के प्रति जागरुक हों और इस खेल को भी उतनी तवज्जो भारत में मिल सके जितनी पूरी दुनिया में मिलती है.
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