शिखर धवन की अजीब कश्मकश, या तो अंतिम 16 में नहीं या फिर सीधे कप्तान बनते हैं!
भारत के पूर्व बैटिंग कोच संजय बांगर ने शिखर धवन की भरपूर प्रशंसा करते हुए कहा कि, जैसा खेल है. जब जब धवन टीम में रहे उनका प्रदर्शन काबिल ए तारीफ रहा. वाक़ई बतौर क्रिकेटर बड़ी अजीब किस्मत है शिखर धवन की. या तो उन्हें टीम में रहने का मौका ही नहीं मिला. या फिर सीधे उन्होंने कप्तान की जिम्मेदारी संभाली.
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टीम इंडिया के पूर्व बैटिंग कोच संजय बांगर ने टीम में शिखर धवन की स्थिति को लेकर मन की बात की है. बांगर को महसूस होता है कि वन डे में कई यादगार पारियां खेलने के बावजूद शिखर धवन को वह पहचान नहीं मिली है जिसके वह हकदार हैं. वहीं बांगर का ये भी मानना है कि अगर आज धवन को टीम में खेलने का मौका मिल रहा है तो वजह बस उनका सौरव गांगुली और गौतम गंभीर का पसंदीदा होना है. भले ही वर्तमान में धवन दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 3 मैचों की एकदिवसीय श्रृंखला में भारत का नेतृत्व कर रहे हों. लेकिन बतौर क्रिकेटर जैसा हिसाब-किताब शिखर धवन का रहा वो अपने में तमाम तरह की कश्मकश लिए हुए है. एक क्रिकेट फैन के रूप में जब हम शिखर धवन के क्रिकेट करियर को देखते हैं और उनका अवलोकन करते हैं तो तमाम रोचक तथ्य है जो खुलकर हमारे सामने आते हैं. कह सकते हैं कि शिखर धवन उन चुनिंदा लोगों में हैं जो तमाम मौकों पर अंतिम 16 तक में जगह बनाने में कामयाब नहीं हुए. वहीं हाल का जोड़ लें तो उनके जीवन में ऐसे मौके भी पर्याप्त आए जब सीधे वो कप्तान बने. ये भले ही कहने सुनने में अजीब हो लेकिन ये ऐसा तथ्य है जिसे संजय बांगर से लेकर धवन के फैन तक शायद ही कभी ख़ारिज कर पाएं.
संजय बांगर कुछ कह लें लेकिन शिखर धवन का क्रिकेट करियर हैरान करने वाला है
जिक्र अगर रिकार्ड्स का हो तो शिखर धवन ने 158 मैचों में 45 की औसत से 6647 रन बनाए हैं, जिसमें 17 शतक और 38 अर्द्धशतक शामिल हैं. 2022 में धवन ने 13 मैचों में 50 के करीब की औसत से 542 रन बनाए हैं. जब हम नम्बर्स के लिहाज से शिखर धवन को देखते हैं तो मिलता है कि एक खिलाड़ी के रूप में उनके अंदर कोई कमी नहीं है. जो भी मौके मिले शिखर धवन ने अपने खेल और नेतृत्व दोनों से मैदान पर अपने को प्रूव किया.
आज भले ही शिखर धवन धवन टेस्ट और टी 20 आई में नियमित सदस्य नहीं हैं, लकिन बावजूद इसके यदि टीम उनका भार अपने ऊपर उठा रही है तो उसके पीछे की वजह बस इतनी है कि जब जब टीम को शिखर धवन की जरूरत महसूस हुई तब तब वो हाजिर रहे. बात अगर हाल की ही या ये कहें तो इस सीरीज की, जिसमें भारत का मुकाबला साउथ अफ्रीका से हो रहा है वहां शिखर धवन कप्तान की भूमिका में हैं जो अपने अनुभवों से युवा खिलाड़ियों में नया जोश भर रहे हैं.
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर कर चुके हैं कि शिखर धवन को वो ख्याति नहीं मिली जिसके वो हकदार थे. आप खुद बताइये जब भी एकदिवसीय क्रिकेट में हम बाएं हाथ के बल्लेबाजों के बारे में विचार करते हैं तो सौरव गांगुली और गौतम गंभीर ही वो नाम हैं जो हमारे सामने आते हैं. सवाल ये है कि क्या वर्तमान में हम वन डे में बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में शिखर धवन की कल्पना नहीं कर सकते? बिल्कुल कर सकते हैं लेकिन जिस पोजीशन पर धवन आते हैं वहां भीड़ बहुत है इसलिए धवन के लिए स्कोप कम है.
अब ये सलेक्टर्स का फैसला है या फिर बतौर क्रिकेटर शिखर धवन का भाग्य. यदि आज शिखर टीम के मार्गदर्शक मंडल में आए हैं तो ये जितना फायदेमंद खुद धवन के लिए हैं उतना ही इसका फायदा टीम के बाकी सदस्यों को भी है. मतलब खुद सोचिये कि चाहे वो विराट कोहली और के एल राहुल को आराम देना रहा हो या ऋषभ भट्ट के सब्सिट्यूट के रूप में मैदान में उतरना हमेशा ही संकट मोचक की भूमिका में शिखर धवन रहे और दिलचस्प ये कि जो भी मौके उन्हें मिले उसका उन्होंने सार्थक इस्तेमाल किया.
बहरहाल जैसी स्थिति है शिखर धवन कब तक वन डे टीम में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं ? जवाब वक़्त देगा. लेकिन जैसा वर्तमान है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि अभी बहुत क्रिकेट है जो शिखर धवन में शेष है. खैर अभी वक़्त धवन पर मेहरबान है उम्मीद है गब्बर चाहे मैदान में रहे या मैदान के बाहर वो यूं ही अपना जलवा बिखेरेगा और यूं ही सबको आश्चर्य में डालेगा.
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