वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में भारत की हार दो साल पहले ही तय हो गई थी !
वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से भारत की हार की वजह कोई टीम की बल्लेबाजी बता रहा है तो कोई बैटिंग ऑर्डर और धोनी पर सवाल उठा रहा है. लेकिन इस हार की पृष्ठभूमि तो कोई दो साल पहले ही तैयार हो गई थी.
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10 जुलाई 2019 को इंग्लैंड के मैनचेस्टर में टीम इंडिया वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार जाती है. यानी वर्ल्ड कप जीतने का जो सपना पिछले कुछ सालों से बुना जा रहा था वो एकदम से चकनाचूर हो गया. किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि दुनिया की नंबर 1 टीम जिस न्यूजीलैंड को हाल के कुछ सालों में बड़ी ही बेफिक्री से हराती रही है उससे ऐसे हार जाएगी. वो भी तब जब लक्ष्य महज 240 रन का था. विराट की टीम के इस प्रदर्शन से करोडों लोगों की उम्मीदें भी धराशायी हो गईं.
वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में क्यों हारी टीम इंडिया?
अब ऐसा हुआ क्यों? टीम इंडिया को तो वर्ल्ड कप का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था. इस वर्ल्ड कप के लीग दौर में टीम इंडिया सबको पीछे छोड़ते हुए अव्वल भी रही थी. तो अचानक ऐसा क्या हो गया जो आसमान से जमीन पर आ गई टीम इंडिया? कोई टीम की बल्लेबाजी को दोष दे रहा है, तो कोई बैटिंग ऑर्डर को लेकर सवाल उठा रहा है. कुछ तो उस धोनी पर भी सवाल उठा रहे हैं जिन्होंने टॉप ऑर्डर के ढेर हो जाने के बाद टीम को संभाला, जडेजा के साथ शतकीय साझेदारी करके एक हारे हुए मुकाबले को जीत की दहलीज तक ले गए. खैर हर किसी की अपनी अपनी दलील हो सकती है. लेकिन मेरा मानना है कि इस हार की पृष्ठभूमि तो कोई दो साल पहले ही तैयार हो गई थी.
सेमीफाइनल में टीम इंडिया की हार की कल्पना किसी ने नहीं की थी
19 जून 2017: ऐतिहासिक 'विराट' भूल
इस तारीख को पर्दे के पीछे कुछ ऐसा हुआ था जो शायद इससे पहले भारतीय क्रिकेट में कभी नहीं हुआ था. टीम इंडिया के तब के मुख्य कोच अनिल कुंबले को इस्तीफा देने पर मजबूर किया जाता है. वो भी किसी और के दबाव में नहीं बल्कि खुद कप्तान विराट कोहली ने अपने पसंदीदा रवि शास्त्री को मुख्य कोच बनवाने के लिए ऐसे हालात खड़े कर दिए जहां कुंबले को अपना सम्मान बचाने के लिए इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा. वो भी तब जब उनके कोच बनने के बाद टीम इंडिया का ग्राफ हर फॉर्मेट में ऊपर की तरफ जा रहा था.
कुंबले अपने दशकों के अनुभव के दम पर टीम को नई धार देने में लगे थे और खिलाड़ियों को अनुशासन की डोर में भी बांधने की वो लगातार कोशिश कर रहे थे. लेकिन शायद उनका ये तरीका कप्तान और कुछ खिलाड़ियों को रास नहीं आया, जिससे उनकी विदाई हो गई और कोच की मुख्य भूमिका निभाने आ गए रवि शास्त्री, जो विराट की पहली और आखिरी पसंद थे. यहीं से टीम इंडिया एक ऐसी राह पर चल निकली जिसपर चलकर उसे वापस वहीं पहुंचना था.
अनिल कुंबले को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा
कप्तान-कोच की नापाक जोड़ी!
किसी भी टीम में कप्तान और कोच की अलग अलग भूमिका होती है. लेकिन जब से रवि शास्त्री ड्रेसिंग रुम का हिस्सा बने कोच और कप्तान एक हो गए. यहां एक होने का मतलब ये है कि जो कप्तान बोले उसपर कोच की हां में हां.
ये वो भी दौर था जब दुनिया की ज्यादातर बड़ी टीम किसी ना किसी वजह से लगातार कमजोर होती जा रही थीं. ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, द. अफ्रीका जैसी मजबूत टीमें बदलाव के उस दौर से गुजर रही थीं जहां उनकी ताकत पहले से आधी भी नहीं रही. जिसका फायदा विराट को मिला. विराट की टीम जीत के घोड़े पर सवार होकर पहले घरेलू सीरीज तो जीती ही साथ ही विदेशों में जीत का नया सिलसिला चल पड़ा. जाहिर है इससे कोच और कप्तान को वाहवाही तो मिलनी ही थी.
इस जोड़ी के साइड इफैक्ट वर्ल्डकप में सामने आए
लेकिन इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि टीम सेलेक्शन को लेकर एक्सपेरिमेंट का एक नया दौर शुरू हो गया. इससे कुछ खिलाड़ियों का आत्मविश्वास डिगा जिसका असर उनके प्रदर्शन पर भी पड़ना लाजिमी था. लेकिन जीत के नशे में कोच-कप्तान ने अपनी पसंद के कुछ खिलाड़ियों को बैक करना शुरू कर दिया. वो इस बात से भी बेपरवाह रहे कि इससे टीम का संतुलन बनने की बजाय बिगड़ रहा था.
उदाहरण के तौर पर पूरे दो साल हर तरह के एक्सपेरिमेंट करने के बाद भी नंबर 4 पर किसी बल्लेबाज की जगह पक्की नहीं हो पाई. अंबाति रायडू ने उम्मीदें जगाईं भी तो वर्ल्ड कप से ठीक पहले उनकी फॉर्म को देख कप्तान ने हाथ पीछे खींच लिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि नंबर 4 की समस्या सुलझाए बिना ही अतिआत्मविश्वास में वर्ल्ड कप की टीम चुन ली गई. टीम के पास शायद प्लान A तो था लेकिन प्लान B नदारद था.
वर्ल्ड कप में भी एक्सपेरिमेंट जारी रहा
कोहली-शास्त्री की जोड़ी ने जो गलती टीम व्यवस्था को लेकर की थी उसका असर वर्ल्ड कप में भी साफ दिखने लगा. टीम इंडिया लगातार जीत तो रही थी लेकिन अफगानिस्तान जैसी टीम के खिलाफ हारते हारते भी बची. जैसे-जैसे टीम आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे नंबर 4 की दिक्कत टीम के लिए गले की हड्डी बनती जा रही थी. केएल राहुल, विजय शंकर, हार्दिक पांड्या से होते-होते ये जिम्मेदारी ऋषभ पंत तक पहुंच गई जो चोटिल खिलाड़ी के बदले बीच वर्ल्ड कप में टीम में शामिल किए गए थे. रविंद्र जडेजा जैसे बेहतरीन ऑलराउंडर को प्लेइंग 11 से बाहर बिठाना भी एक बड़ी रणनीतिक भूल थी, जो न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में साफ नजर भी आई.
धोनी को सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजना किसी के गले नहीं उतरा
धोनी ने पर्दे के पीछे से कप्तानी करके मैदान पर तो विराट की कमजोरियों को ढक दिया लेकिन मैच सिर्फ मैदानी रणनीति से नहीं जीते जाते बल्कि इसमें ड्रेसिंग रुम का भी उतना ही दखल होता है. और सेमीफाइनल में कई चूक ऐसी हुईं जो समझे से परे थीं, जैसे जब टॉप ऑर्डर बुरी तरह फेल हो गया तो धोनी को सातवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजना किसी के गले से नहीं उतरा.
गलतियां तो पिछले दो साल से लगातार हो रही थीं लेकिन जीत मिलने से वो बार-बार छिप जाती थीं. लेकिन ऐन वक्त पर कोच-कप्तान की चूक ने टीम इंडिया के विश्वविजेता बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया. वो भी तब जब विश्वविजेता का ताज महज 2 जीत दूर था. वर्ल्ड कप सेमीफ़ाइनल में हार तो महज ट्रेलर भर है. कोच-कप्तान की इस जोड़ी की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. जल्द ही आप नीली जर्सी में रोहित शर्मा को कप्तानी करते देख सकते हैं. और रवि शास्त्री की कोच की कुर्सी भी अब खतरे में है. अब इंतजार तो इस बात का है कि दो साल पहले की गई ऐतिहासिक गलती का अहसास क्या भारतीय क्रिकेट को चलाने वालों को भी हो गया है या फिर वो और ज्यादा नुकसान होने के बाद जागेंगे.
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