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Updated: 23 मार्च, 2017 01:40 PM
मनीष दीक्षित
मनीष दीक्षित
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आईपीएल 2017 की दस्तक के साथ ही सट्टेबाजी को कानूनी बनाने पर बहस फिर गर्म हो गई है. ऑनलाइन गेमिंग से जुड़ी कंपनियों के संगठन ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (एआईजीएफ) ने राजधानी दिल्ली में अपने पहले कॉनन्न्लेव में ऑनलाइन गेम्स समेत जुआ-सट्टा माने जाने वाले खेलों को कानूनी दर्जा देने और सरकार के नियंत्रण में लाने की मांग फिर उठाई है.

इंडस्ट्री के मुताबिक, सट्टे समेत गेमिंग का कारोबार तीन लाख करोड़ से ऊपर का है. दलील ये है कि सरकार इसे कानून से नियंत्रित करेगी तो उसे मोटा राजस्व मिलेगा, खेलने वालों का हित सुरक्षित होगा और ये कारोबार अपराधियों व माफिया के चंगुल से बाहर निकलेगा. इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा और कालेधन पर भी लगाम लगेगी.

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दूसरी ओर, सरकार को इस मसले पर सुझाव देने की कसरत में जुटे विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बी.एस. चौहान कहते हैं कि हमारी सबसे बड़ी चिंता सट्टे के शिकार गरीबों और उनके परिवार की है. ऐसा न हो कि किसी को इसकी लत लग जाए और परिवार सड़क पर आ जाए. सट्टे पर पैसा लगाने की हद तय करना जरूरी है. बहरहाल, मैच फिक्सिंग के चलते क्रिकेट पर सट्टे का मामला बेहद नाजुक हो गया है. मैच होने के चार साल बाद पता चले कि ये तो फिक्स था. ऐसे में हारने वाले का पैसा कैसे लौटाने का प्रावधान करने की भी जरूरत होगी. विधि आयोग इन तमाम मुद्दों पर लोगों से राय मांग रहा है.

ये तो हो गई सट्टेबाजी को कानूनी जामा पहनाने के मामले की मौजूदा स्थिति. अब सवाल उठता है कि आखिर इसे लागू करने की जरूरत क्यों महसूस हो रही है. ये सचमुच जरूरी है या सिर्फ इंडस्ट्री अपने हित के लिए ये मांग उठा रही है. देखा जाए तो खेल समेत हर उस घटना में सटोरिए अपने दांव तलाश लेते हैं जो लोगों में रोमांच पैदा करती है. फिल्म, चुनाव परिणाम या महत्वपूर्ण फैसलों से पूर्व के क्षणों में सटोरिये सक्रिय हो जाते हैं. देश में कोलकाता, मुंबई, वडोदरा सटोरियों के गढ़ माने जाते हैं, लेकिन खेला ये हर इलाके में जाता है और बड़े सटोरियों के तार दुबई या पाकिस्तान में बैठे अपराधियों से जुड़े होते हैं. सट्टा खिलाने वाले अपराधी ही माने जाते हैं.

अगर इसे देश में कानूनी दर्जा दिया जाता है तो अंडरवर्ल्ड के उन लोगों के धंधे को कानूनी दर्जा मिल जाएगा जिनकी तलाश लंबे समय से देश की सुरक्षा एजेंसियों को है. गेमिंग इंडस्ट्री या सरकार ये समझती है कि कानूनी जामा पहनाकर सट्टे का अवैध कारोबार रोक लिया जाएगा तो ये सिर्फ छलावा है. उदाहरण सामने है कि शेयरों की अवैध खरीद-फरोख्त महाराष्ट्र-गुजरात में टैक्स बचाने के लिए होती है. इसे डब्बा ट्रेडिंग कहते हैं. इसी तरह जहां लॉटरी चालू है उन शहरों में सिंगल डिजिट पर समानांतर सट्टा बेधड़क चलता है. ये दोनों ही काम टैक्स से बचने और रकम छिपाने के लिए होते हैं. लिहाजा ये कहना मुश्किल है कि कानूनी दर्जा देने से सट्टा खेलने और खिलाने वाले ईमानदारी से टैक्स देकर राष्ट्रभक्ति की मिसाल पेश करेंगे.

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गेमिंग इंडस्ट्री की चिंता अलग है. वह कसीनो, ऑनलाइन गेमिंग जैसे सट्टे को एक व्यवस्थित कारोबार के रूप में फैलाना चाहती है. हो सकता है विधि आयोग गरीबों को सट्टा खेलने से रोकने का तरीका बताए और सरकार उसे मान ले. ये भी हो सकता है कि सरकार मैच फिक्सिंग को गंभीर अपराध मानते हुए इस पर भी कड़ा कानून बनाते हुए सट्टे को लीगल कर दे. लेकिन सरकार कभी भी अवैध कारोबार को जड़ से नहीं उखाड़ सकती.

अवैध कारोबार तो दवाओं से लेकर कंप्यूटर, मोबाइल और कपड़ों तक का हो रहा है. करोड़ों रुपयों का टैक्स बचाया जा रहा है. ऐसे में सट्टे जैसे काम में लगे लोगों से टैक्स वसूलना सरकारी तंत्र के लिए बेहद मुश्किल काम होगा. जो तंत्र अभी तक पूरी तरह आयकर लोगों से नहीं वसूल सका है उसके कंधों पर सटोरियों से टैक्स वसूलने की जिम्मेदारी डालने के परिणामों की सहज कल्पना की जा सकती है.

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लेखक

मनीष दीक्षित मनीष दीक्षित @manish.dixit.39545

लेखक इंडिया टुडे मैगज़ीन में असिस्टेंट एडिटर हैं

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