Gaganyaan से Chandrayaan-3 तक 2022 का भारतीय अंतरिक्ष मिशन हमारे सपनों से परे
2022 इसरो के लिए इसलिए भी आशाजनक लग रहा है क्योंकि कई ऐसे अंतरिक्ष मिशनों की शुरुआत होने वाली है जो 2021 में कोविड -19 और उसके चलते लगे लॉक डाउन के कारण विलंबित हो गए थे.
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कोरोना के इस दौर में जब वायरस के नए वेरिएंट Omicron ने चिंताएं बढ़ा दी हों, साल 2021 अपने समापन की ओर है. नया साल कैसा होगा लोग पशोपेश में हैं लेकिन उम्मीद यही की जा रही है कि सब अच्छा रहे. बात नए साल की चल रही है तो ISRO ने भी अपनी कमर कस ली है और माना यही जा रहा है कि साल 2022 में ISRO के अंतर्गत हमें ऐसा बहुत कुछ देखने को मिलेगा जो न केवल हमारी कल्पना से परे होगा बल्कि जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी में एक बड़ी पहल कहा जाएगा.
माना जा रहा है कि भारत की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी ISRO 2022 में बेहतर दिनों की तलाश में इसलिए भी होगी क्योंकि ऐसे कई मिशनों को गति देने की योजना है जो 2021 में कोरोना के चलते लॉक डाउन की भेंट चढ़ गए थे. ध्यान रहे कि इसरो पहले ही ये हिंट दे चुका था कि साल 2022 में कई नए लांच होंगे और द्विपक्षीय सहयोग से संभवतः 2022 में अंतरिक्ष विज्ञान के अंतर्गत एक नए युग की शुरुआत होगी.
इसरो को 2022 से काफी उम्मीदें हैं माना जा रहा है कि 2022 में इसरो कमाल करने वाला है
इसरो द्वारा 2022 के लिए निर्धारित बड़े मिशन जिनपर पूरे देश की निगाह है.
उड़ान के लिए बिल्कुल तैयार है गगनयान
भारत का महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन, जिसका उद्देश्य स्वदेशी विकसित अंतरिक्ष यान पर भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के पहले बैच को अंतरिक्ष में भेजना है, 2022 के लिए कमर कस चुका है. क्योंकि ये इसरो का पहला मानव रहित प्रक्षेपण है इसलिए भी इसे एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है. बताते चलें कि अंतरिक्ष एजेंसी 2022 की दूसरी छमाही की शुरुआत में क्रू एस्केप सिस्टम का और गगनयान की उड़ान का संचालन करेगी.
बताया ये भी जा रहा है कि इसका दूसरा अनक्रूड मिशन 2022 के अंत के लिए निर्धारित किया गया है, इसे अंतरिक्ष में लांच किया जाएगा और इसके लिए भारतीय वायु सेना के तीन अधिकारी, प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.
मिशन के लिए वायुसेना के चार अधिकारियों का चयन किया गया है, जिनकी पहचान गोपनीय रखी गई है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि कोविड प्रतिबंधों के कारण कार्यक्रम में थोड़ी देरी हुई, लेकिन अब 2023 तक मिशन को पूरा करने की तैयारी जोरों पर है. साथ ही इस प्रोजेक्ट पर बात करते हुए उन्होंने ये भी कहा था कि गगनयान कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय प्रक्षेपण यान पर मनुष्यों को LEO में भेजने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता का आंकलन करना है.
आदित्य एल1 मिशन टू सन
सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला मिशन, आदित्य एल 1 को 2022 में कोविड -19 प्रतिबंधों के कारण एक साल की देरी के बाद लॉन्च किया जाएगा. आदित्य-एल1 मिशन को लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किए जाने की उम्मीद है - जो पृथ्वी से 15,00,000 किलोमीटर दूर है. आदित्य, जो 'सूर्य' के लिए संस्कृत शब्द है - 2013 में अपने मंगल कक्ष को लॉन्च करने के बाद इसरो का दूसरा हाई-प्रोफाइल अंतरिक्ष मिशन होगा.
चंद्रयान-3 चंद्र मिशन की विरासत को आगे ले जाएगा
कोविड -19 के चलते लगे लॉकडाउन के कारण हुई देरी के बाद इसरो 2022 की तीसरी तिमाही में महत्वाकांक्षी चंद्रयान -3 मिशन लॉन्च करेगा. मिशन को 2021 में लॉन्च किया जाना था. चंद्रयान -3 अक्टूबर 2008 में लॉन्च किए गए पहले चंद्रयान मिशन से संकेत लेता है जिसने चंद्र सतह पर पानी के सबूत खोजने सहित प्रमुख खोजें कीं. ज्ञात हो कि तीसरा चंद्र मिशन चंद्रयान -2 के चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त होने के दो साल बाद शुरू हो रहा है.
गौरतलब है कि उस दुर्घटना मे लैंडर और रोवर दुर्घटनाग्रस्त हो गए, ऑर्बिटर अभी भी चंद्र सतह के ऊपर मंडरा रहा है और इसरो चंद्रयान -3 के साथ भी इसका उपयोग करने की योजना बना रहा है. इसपर इसरो प्रमुख के सिवन ने कहा है, 'हम इस पर काम कर रहे हैं. यह चंद्रयान-2 जैसा ही कॉन्फिगरेशन है लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा. चंद्रयान-2 के दौरान लॉन्च किए गए ऑर्बिटर का इस्तेमाल चंद्रयान-3 के लिए किया जाएगा. एक सिस्टम पर काम कर रहे हैं और ज्यादातर लॉन्च अगले साल 2022 में होगा.
एसएसएलवी द्वारा कम लागत वाले लॉन्च के लिए भारत को हॉट-स्पॉट बना गया
भारत लो-अर्थ ऑर्बिट में उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए एक हॉट स्पॉट के रूप में उभर रहा है. इसके लिए इसरो लघु उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (एसएसएलवी) विकसित कर रहा है. अंतरिक्ष एजेंसी 2022 की पहली तिमाही में पहला प्रक्षेपण करेगी. एसएसएलवी 500 किलोमीटर की प्लानर कक्षा में 500 किलोग्राम की पेलोड क्षमता प्रदान करेगा. यदि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो पीएसएलवी - इसरो का वर्कहॉर्स - 600 किमी की ऊंचाई के एसएसओ में 1,750 किलोग्राम पेलोड तक ले जा सकता है. केंद्र ने एसएसएलवी विकसित करने के लिए 169 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं, जो नैनो और माइक्रो सहित कई उपग्रहों को माउंट करने के विकल्प के साथ तीन चरणों वाला पूर्ण ठोस वाहन है.
उल्लेखनीय है कि इसरो ने 2021-2023 में उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए चार देशों के साथ छह समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे 132 मिलियन यूरो का राजस्व प्राप्त हुआ है.
बहरहाल अब जबकि ये जानकारियां हमारे सामने आ गयी हैं तो कहना गलत न होगा कि भले ही कोविड और उसके अलग अलग वेरिएंट्स को अभी हमें और झेलना हो लेकिन जब बात स्पेस की आएगी. साइंस एंड टेक्नोलॉजी की आएगी तो भारत ने अपनी तरफ से तैयारी पूरी कर ली है. साल 2022 में ऐसा बहुत कुछ होगा जो भारत के लिए नए कीर्तिमान स्थापित करेगा.
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