इलेक्ट्रिक कार: क्यों इस सरकारी सपने पर आसानी से यकीन नहीं होता..
सरकार का कहना है कि इलेक्ट्रिक वेहिकल्स के लिए हर तीन किलोमीटर पर वो चार्जिंग स्टेशन लगा देगी. ये उन शहरों में होगा जहां 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या है, स्मार्ट शहर हैं या फिर नैशनल हाईवे है. नैशनल हाईवे पर हर 50 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन लगाए जाएंगे.
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पेट्रोल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ रही हैं और अब पेट्रोल धीरे-धीरे 80 रुपए पार चला गया है. इस समय ऐसा लगता है कि काश हमारे पास कोई ऐसी कार होती जो 10 पैसे में 1 किलोमीटर चल जाती. सालाना ज्यादा खर्च भी न होता, न ही उसकी मरम्मत को लेकर ज्यादा चिंता करनी पड़ती. भले ही आपकों ये अचंभित कर दे, लेकिन सरकार ने एक समय हमें ऐसा सपना जरूर दिखाया था. वो समय था जब भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों ने अपनी जगह बना ली थी.
भारत में 2030 तक इलेक्ट्रिक कारें भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट के 40% हिस्सा बन जाएंगी. ये प्रस्ताव था SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) का. लोगों को लगा कि बस अब 2030 तक भारत में वही क्रांति आएगी जो लगभग 10-15 साल पहले इलेक्ट्रिक बाइक्स के साथ हुआ था. भारतीय मार्केट में एक दशक पहले इलेक्ट्रिक बाइक्स ने वर्चस्व साबित कर लिया था और पेट्रोल टू-व्हीलर मार्केट को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ा था.
अब सरकार का कहना है कि इलेक्ट्रिक वेहिकल्स के लिए हर तीन किलोमीटर पर वो चार्जिंग स्टेशन लगा देगी. ये उन शहरों में होगा जहां 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या है, स्मार्ट शहर हैं या फिर नैशनल हाईवे है. नैशनल हाईवे पर हर 50 किलोमीटर पर चार्जिंग स्टेशन लगाए जाएंगे.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक एक सरकारी कर्मचारी का कहना है कि, " ऐसा माना जा रहा है कि 30 हज़ार स्लो चार्जिंग स्टेशन और 15 हज़ार फास्ट चार्जिंग स्टेशन फेज़ 1 में लगाए जाएंगे और ये अगले 3-5 सालों में होगा."
इस मामले में काफी गहमा-गहमी चल रही है, NTPC तो पहले ही महाराष्ट्र में ऐसी सुविधा की बात कर चुकी है.
इसके अलावा, सरकार ने 9400 करोड़ का पैकेज भी तय किया है और 2.5 लाख तक का फायदा जो लोग पेट्रोल और डीजल कार छोड़कर इलेक्ट्रिक की तरफ जाएंगे उनके लिए किया है. इसी के साथ, 1.5 लाख तक की गाड़ी खरीदने वालों को 30 हज़ार का मुनाफा मिलेगा.
ऐसे ही कैब और बस चलाने वाली कंपनियों को अलग तरह के फायदे दिए जाएंगे. इलेक्ट्रिक कार मालिक जो अपनी कार को टैक्सी के तौर पर चलाएंगे उन्हें 1.5-2.5 लाख तक का फायदा मिलेगा उन वाहनों के लिए जो 15 लाख तक की कीमत के होंगे. इलेक्ट्रिक गाड़ियों की सेल 2020 तक दुगनी हो जाएगी ये भी बातें की जा रही हैं.
ये डिपार्टमेंट ऑफ हेवी इंडस्ट्री द्वारा प्रस्तावित रूपरेखा है. यकीनन ये सुनने में बहुत अच्छी लग रही है, लेकिन क्या ये सब कुछ वाकई सफल हो पाएगा? या फिर कोरा वादा ही बनकर रह जाएगा.
मनमोहन सरकार की पॉलिसी..
जिस समय इलेक्ट्रिक स्कूटर मार्केट ने तेज़ी पकड़ी थी उस समय मनमोहन सरकार इन वाहनों पर सब्सिडी देती थी. यहां तक की इलेक्ट्रिक कारों पर भी बहुत डिस्काउंट मिलता था और 10 पैसे में 1 किलोमीटर चलने वाला विज्ञापन इस मार्केट को ऊंचाइयों पर ले गया था.
फिर अचानक सरकार ने इसपर सब्सिडी खत्म कर दी और एक नई पॉलिसी बनाने को कहा. इसे व्यवसायिक तौर पर देखा गया कि पेट्रोल और डीजल मार्केट को और कार बनाने वालों को इससे काफी नुकसान हो रहा था.
मनमोहन सिंह ने 2011 में एक राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान की घोषणा की थी जिसे 2020 तक पूरा होना था. ये भविष्य के लिए बेहतर और साफ ट्रांसपोर्ट सिस्टम बनाना. ये प्लान अगले आठ सालों में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड गाड़ियों को प्रमोट करने वाला था और 13 से 14 हज़ार करोड़ का खर्च सिर्फ इसी काम के लिए किया जा रहा था.
इसके अलावा, ये पूरा प्लान 22500 करोड़ का था. इस बात को 7 साल गुज़र चुके हैं. हालांकि, 2013 में पुन: इसपर बात हुई थी और तब भी 8 साल की बात कही गई थी, लेकिन उसमें से भी 5 साल गुज़र चुके हैं.
अब बात करते हैं मोदी सरकार की...
जब से मोदी सरकार आई है इलेक्ट्रिक वेहिकल पॉलिसी पर चर्चा होने की बात कर रही है.
अप्रैल 2017 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पियूष गोयल ने कहा था कि 2030 तक भारत में एक भी पेट्रोल या डीजल कार नहीं बिकेगी.
सितंबर 2017 में नितिन गडकरी ने कहा था कि सरकार कार बनाने वाली कंपनियों को इलेक्ट्रिक कारों की तरफ मुड़ने को कह रही है, अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो जबरदस्ती सरकारी पॉलिसी उन्हें इलेक्ट्रिक कार बनाने पर मजबूर करेगी.
जनवरी 2018 में नितिन गडकरी ने ही कहा कि इलेक्ट्रिक वेहिकल पॉलिसी नीति आयोग द्वारा बना ली गई है और इसके लिए बस कैबिनेट का अप्रूवल चाहिए.
फरवरी 2018 में गडकरी ने ही कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए किसी पॉलिसी की जरूरत नहीं है.
मार्च 2018 में सरकार ने कहा कि नीति आयोग को इसके लिए एक एक्शन प्लान तैयार करना चाहिए. इसके लिए नीति आयोग की तरह से 7 मंत्रालयों का सपोर्ट लिया है और रूपरेखा तैयार करने को कहा है.
एक बार ये रूपरेखा तैयार हो गई तो नीति आयोग इसे लेकर एक एक्शन प्लान तैयार करेगा और यही इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए बेहतर होगी. यानी पॉलिसी नहीं बनाई जाए और सिर्फ एक एक्शन प्लान से काम हो जाएगा.
इलेक्ट्रिक कार और बिजनेस..
मोदी सरकार का ये फैसला भी कार बनाने वाली कंपनियों के आधार पर किया गया है. कार मेकर्स ने इस मामले में सरकार का विरोध किया था और कहा था कि वो अभी इलेक्ट्रिक कारें बनाने के लिए तैयार नहीं है और सरकार की पॉलिसी उन्हें नुकसान पहुंचाएगी. तो सरकार ने फिर यूटर्न ले लिया और कहा कि वो बिना पॉलिसी के इलेक्ट्रिक गाड़ियों का प्रचार करेगी. सरकार का कहना है कि वो इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर काफी सीरियस है और इसपर काम करेगी.
राजनीति और इलेक्ट्रिक कार..
जैसे बिजनेस के बिना राजनीति नहीं चलती वैसे ही सरकार अभी एकदम से इलेक्ट्रिक वेहिकल पॉलिसी में बदलाव कर भी नहीं सकती. इसके दो कारण हो सकते हैं पहला तो चुनाव और दूसरा ये कि भारतीय ऑटो मार्केट दुनिया के कुछ सबसे बड़े ऑटो मार्केट्स में से एक है. ऐसे में ऑटो मार्केट को एकदम से बिगाड़ देगा भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
क्या किया है सरकार ने?
ऐसा नहीं है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर सरकार ने कुछ भी नहीं किया है. चीनी ऑटो कंपनी वोल्वो ने जब ये ऐलान किया था कि 2019 से वो सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियां ही बनाएगी तब कई देशों की तरफ से 2030-2040 तक पूरी तरह से पेट्रोल और डीजल कार बैन करने की बात सामने आई थी.
राज्यों के स्तर पर कर्नाटक ने इलेक्ट्रिक वेहिकल पॉलिसी अप्रूव कर दी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा रिसर्च राज्य में हो सके और कोई बना निवेश हो, महाराष्ट्र ने उसके बाद अपनी अलग इलेक्ट्रिक वेहिकल पॉलिसी लागू कर जी थी. इसमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मालिकों को कुछ फायदे देना और चार्जिंग स्टेशन बनाना शामिल था. शहरों की बात की जाए तो नागपुर ने इलेक्ट्रिक मास-ट्रांजिट प्रोजेक्शन शुरू किया था ओला कैब्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, काइनेटिक ग्रीन आदि की मदद से जो ई-रिक्शा और इलेक्ट्रिक कैब बनाएं. बुरी बात ये है कि ये प्रोजेक्ट कभी शुरू ही नहीं हो सका.
अपने-अपने तरीके से थोड़ी-थोड़ी कोशिश सभी कर रहे हैं और ये भी सच है कि सरकार इसको लेकर थोड़ा ध्यान दे रही है, लेकिन फिर भी भारत को एक थोस पॉलिसी की जरूरत है जो कई लेवल पर काम करे, कई मंत्रालयों का हिस्सा हो और उसपर सिर्फ एक्शन प्लान नहीं बल्कि थोस नियम बनाए जाएं. जब तक ये नहीं होता तब तक तेल का इम्पोर्ट और पेट्रोल की कीमतें भी ऐसे ही बढ़ती रहेंगी!
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