धरती पर ही एक साल 'एलियन' बनकर रहे ये 6 लोग
मंगल ग्रह पर इंसान को उतारने की कोशिशों के तहत नासा ने छह लोगों की एक टीम को मंगल जैसी परिस्थितियों में एक साल तक एक छोटी सी गुंबद में कैद रहने का टास्क दिया था. जानिए फिर क्या हुआ?
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अगर आपको एक साल तक मंगल ग्रह पर बसना पड़े तो क्या होगा. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है नासा के मंगल मिशन से जुड़े छह लोगों की टीम ने. जिन्होंने हवाई स्थित बिल्कुल मंगल जैसी परिस्थितियों में एक साल पूरा कर लिया है.
महज 36x20 फीट की गुंबदाकार बंद जगह में पूरी दुनिया से अलग एकांत में बिल्कुल मंगल ग्रह जैसी परिस्थितियों में एक वर्ष बिताने के बाद ये छह लोग अब सामान्य जीवन बिताने के लिए वापस आए हैं. दरअसल ये सारी कवायद 2030 में मंगल पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना पर काम करे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रोजेक्ट का हिस्सा है.
पिछले कई वर्षों से नासा इस मंगल मिशन के लिए दुनिया भर से लोगों को मंगल जैसी परिस्थितियों में रहने के अनुभव के लिए आवेदन मंगवाता है और फिर उसमें से चुने गए लोगों को नासा के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने का मौका मिलता है. इससे पहले मंगल ग्रह जैसी परिस्थितियों के साथ एकांतवास में रहने के नासा के मिशन में शामिल रिसर्चर्स ने अधिकतम 8 महीने ही बिताए थे.
लेकिन इस बार छह लोगों की टीम ने ऐसी परिस्थितियों में सबसे ज्यादा एक वर्ष बिताए हैं. ऐसे मिशन के लिए ये अब तक का दूसरा सबसे लंबा एकांतवास है. इससे पहले 2011 में मंगल मिशन के लिए ही रूसी मिशन के दौरान रिसर्चर्स की एक टीम ने 520 दिन का लंबा एकांतवास बिताया था. आइए जानें मंगल पर जाने की तैयारियों के लिए जारी इस विशेष मिशन की खासियतें.
नासा द्वारा फंडेड प्रोजेक्ट के तहत हवाई के एक द्वीप में 6 लोगों ने मंगल ग्रह जैसी परिस्थितियों में 1200 स्क्वैयर फीट के एक गुंबदाकार बंद जगह में एक साल बिताए |
मंगल पर जाने के लिए एक साल तक एक ही जगह में बंद रहे 6 लोगः पिछले साल अगस्त से ही छह लोगों की टीम मंगल पर रहने जैसे अनुभव के लिए अमेरिका के हवाई स्थित एक पहाड़ी पर 1200 स्क्वैयर फीट की चारों तरफ से बंद एक गुंबदाकार जगह में रह रही थी. नासा की फंडिंग से चलने वाले इस प्रोजेक्ट को हवाई स्पेस एक्सपोलेरेशन एनालॉग एंड सिमुलेशन या HI-SEAS के नाम से जाना जाता है और यह 28 अगस्त को समाप्त हुआ है.
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हवाई के सबसे निर्जन द्वीप माउना लोआ की पथरीली बंजर ढलानों पर मंगल ग्रह के प्राकृतिक वातावरण से मिलती-जुलती परिस्थितियों में छह लोगों की टीम ने सोलर पवार से युक्त एक चारों तरफ से बंद 1200 स्क्वैयर फीट की गुंबदाकार जगह में एक साल गुजारा. इन छह लोगों को इस बंद जगह से सिर्फ स्पेससूट में पहनकर बाहर आने की इजाजत थी. वर्ष 2012 से शुरू हुए HI-SEAS का यह ऐसा चौथा और अब तक सबसे लंबा मिशन था.
इस 1200 स्क्वैयर फीट की बंद गुंबदाकार जगह का व्यास 36 फीट और ऊंचाई 24 फीट थी, जिसमें 1500 स्क्वैयर फीट का फ्लोर स्पेस था. यह जगह हवाई के माउना लोआ पहाड़ी पर समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित थी. इस गुबंदाकार जगह में ऊपरी तल तल पर 424 स्क्वैयर फीट के छह बेडरूम बने थे, जिनमें सोने के बेड और डेस्क थे. लैब, किचन, शॉवर और एक्सरसाइज एरिया निचले फ्लोर पर थे. जिस माउना लोआ की जिस निर्जन पहाड़ी पर ये गुबंदाकार जगह बनाई गई थी, वहां की मिट्टी मंगल ग्रह से मिलत-जुलती है.
इस जगह में एक साल तक बिना शुद्ध हवा और शुद्ध भोजन के रहने वाले इन छह लोगों में 3 महिलाएं और 3 पुरुष शामिल थे. इनमें फ्रांस के एस्ट्रोबॉयोलॉजिस्ट सेप्रियन वर्सेउक्स, जर्मनी की भौतिकशास्त्री क्रिस्चियन हेनेके, अमेरिकी सॉइल साइंटिस्ट कार्मेल जॉन्सटन, अमेरिकी आर्किटेक्ट ट्रिस्टन बसिंग्थवेघटे, अमेरिकी पत्रकार शेयना गिफोर्ड और अमेरिकी फाइट कंट्रोलर आंद्रेज स्टीवर्ट शामिल थे.
एक साल तक एक निर्जन द्वीप में एक छोटी सी बंद जगह में रहने वाले छह लोग सामान्य जिंदगी में लौट आए हैं |
किन चुनौतियों का करना पड़ा सामनाः
इन लोगों को कम खाने और पानी में दिन गुजारने पड़े जैसा कि मंगल पर रहने के लिए जरूरी होगा. इन छह लोगों को अपने सारे काम खुद करने पड़ते थे और उन्हें बेहद कम भोजन और पानी पर गुजारा करना पड़ता था.
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पानी की बचत के लिए एक बाल्टी पानी को नहाने के लिए दो हफ्ते तक प्रयोग करना पड़ता था. वह यहां की सूखी धरती से खुद ही पानी निकालने में सक्षम थे. खाने के लिए वे जमे हुए सूखे या डिहाइड्रेटेड खाने, पनीर के पाउडर और डिब्बाबंद खाने का इस्तेमाल करते थे.
हवाई में मंगल जैसी परिस्थितियों में रहने के दौरान इन छह लोगों को सूखी जमीन से पानी खोजना पड़ता था |
बाहरी दुनिया से उनका संपर्क सिर्फ ईमेल के जरिए था लेकिन एक ईमेल भेजने और पाने में उन्हें करीब 20 मिनट का समय लगता था. इतना ही समय मंगल से पृथ्वी के बीच ईमेल भेजने और पाने में लगता है. इस मिशन में शामिल रही हेनेके इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौतियों के बारे में कहती हैं, 'सबसे बड़ी चुनौती नीरसता और दूसरे साथ में काम करने वाले लोग थे.'
बाहरी दुनिया से पूरी तरह से संपर्क कट जाने के कारण यहां रहने वाले लोगों को सबसे ज्यादा मुश्किल अकेलेपन से लड़ने में आती है. इसके लिए लोग डांस जैसे माध्यमों का सहारा लेते हैं. हेनेके भविष्य में ऐसे मिशन में शामिल होने वालों को साथ में किताबें ले जाने की सलाह देती हैं. इस रिसर्च में शामिल रहे सभी छह लोग अब इस मिशन की समाप्ति पर अपनी-अपनी सामान्य जिंदगी में लौट जाएंगे.
नासा ने ये मिशन 2030 में मंगल पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के उद्देश्य से चलाया है | ||
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नासा 2017 और 2018 में ऐसा ही एक और मिशन शुरू करने जा रहा है. जहां ऐसी ही परिस्थितियों में आठ महीने रहना होगा और इसके लिए दुनिया भर से आवेदन मंगवाए गए हैं.
इस मिशन में भाग लेने वालों को साइंस में अंडरग्रैजुएट होना चाहिए, रिसर्च में तीन साल का अनुभव और शारीरिक और मानसिक तौर पर मजूबत होना चाहिए. तो अगर आपको भी मंगल ग्रह पर रहने जैसा अनुभव पाना है तो नासा के HI-SEAS प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने के लिए आवेदन जरूर करिए!
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