Huawei 5G: जिसे पश्चिमी दुनिया खतरा मान रही है, उसे भारत ने न्योता क्यों दिया?
जिस कंपनी को पश्चिमी दुनिया ने 5G का ट्रायल करने से मना कर दिया, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं, उसे भारत ने न्योता दिया है. भारत सरकार के इस फैसले को जोखिम भरा बताते हुए सरकार की आलोचना हो रही है.
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4G मोबाइल टेक्नोलॉजी के बाद भारत में 5G तकनीक लाने के लिए टेलिकॉम कंपनियों को ट्रायल की इजाजत मिल चुकी है. लेकिन इनमें एक कंपनी ऐसी है, जिससे पश्चिमी देश किनारा कर रहे हैं. चाइनीज कंपनी हुवावे (Huawei) को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने अपने देश में 5जी का ट्रायल करने से मना कर दिया. यहां तक कि जापान ने भी हुवावे के खिलाफ सख्ती बरतने के निर्देश दिए हैं. भारत सरकार के इस फैसले को जोखिम भरा बताते हुए सरकार की आलोचना हो रही है. डर इस बात का है कि एक एडवांस तकनीक के चक्कर में कहीं भारत ने किसी बड़ी मुसीबत को तो न्योता नहीं दे दिया?
हुवावे से किस बात का खतरा: जो पश्चिमी देश हुवावे को अपने यहां 5जी ट्रायल करने की इजाजत इसलिए नहीं दे रहे हैं, उनका मानना है कि चीन की यह कंपनी उनकी सुरक्षा में सेंध लगा सकती है. चीनी कंपनी होने के नाते हुवावे पर वहां की सरकार के प्रभाव में रहने की बात सामने आई है. यह भी माना गया है कि यह कंपनी दुनिया के अलग-अलग देशों का संवेदनशील डेटा लेकर चीन की सेना को दे सकती है. ऐसे में माना जा रहा है कि चीन की सेना हुवावे के नेटवर्क का इस्तेमाल कर के अन्य देशों की सुरक्षा संस्थाओं में सेंध लगा सकती है.
हुवावे (Huawei) कंपनी को 5जी ट्रायल की इजाजत देने के फैसले को जोखिम भरा बताते हुए भारत सरकार की आलोचना हो रही है.
जब स्मार्टफोन से खतरा हो सकता है तो 5जी नेटवर्क क्यों नहीं?
जिस समय डोकलाम में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा था, उसी दौरान भारत सरकार ने कई चीनी स्मार्टफोन कंपनियों पर भी नकेल कसी थी. यह सिर्फ ये सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि कहीं ग्राहकों का डेटा तो चोरी नहीं किया जा रहा? ऐसे में 5जी नेटवर्क से भारत सरकार क्यों नहीं डर रही है? ऐसा नहीं है कि भारत सरकार को खतरे का अंदाजा नहीं है, क्योंकि जब भारत की ओर से 5जी नेटवर्क के ट्रायल के लिए दुनियाभर की टेलिकॉम कंपनियों को न्योता दिया गया, तो उनमें हुवावे और जेडटीई (ZTE) नहीं थीं. इसके जवाब में हुवावे ने विरोध जताते हुए कहा कि उसने भारत में एक बड़ा सेंटर बनाया है, उसके बावजूद उसे न्योता क्यों नहीं दिया गया? इसके बाद भारत सरकार ने हुवावे को भी ट्रायल का न्योता भेजा और भारत में नेटवर्क बनाने के लिए तारीफ भी की, लेकिन जेडटीई को अभी तक इजाजत नहीं मिली है.
जो सरकार स्मार्टफोन और डोकलाम को लेकर सेंसिटिव हो गई थी, उसने 5जी नेटवर्क को बिना किसी बहस के हरी झंडी दे दी है. अगर हुवावे का कोई देश विरोध नहीं करता तो इस पर बहस नहीं होती, लेकिन जब पूरी दुनिया उसके खिलाफ खड़ी है, तो भारत ने उसे अपने यहां घुसने की इजाजत क्यों दी? क्या भारत को इस बात का अंदाजा नहीं कि चीन की सरकार हुवावे के नेटवर्क का इस्तेमाल कर के चोरी करने पर उतर आई तो क्या क्या चुरा सकती है? या फिर चीन का विरोध सिर्फ स्मार्टफोन, दिवाली में आने वाली इलेक्ट्रॉनिक झालरें और दुनिया भर के सस्ते सामानों के मामले तक ही सीमित है? चीन और भारत के बीच कई तरह के विवाद हैं और हुवावे का चीन की सेना से करीबी संबंध है, जो भारत के लिए खतरा साबित हो सकता है.
हुवावे की ग्लोबल नाकाबंदी: हुवावे के फाउंडर की बेटी और चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर मेंग वांझाऊ पर पहले ही फ्रॉड के चार्ज लगे हुए हैं. अमेरिका ने हुवावे (Huawei) पर आरोप लगाया है कि उनका एक ऐसी कंपनी के साथ संबंध है, जो ईरान को उपकरण बेच रही है, जबकि अमेरिका ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए हुए हैं. अब तो मेंग वांझाऊ के कनाडा से अमेरिका को प्रत्यर्पण किए जाने की प्रक्रिया तक शुरू हो गई है.
हुवावे को लेकर भारत इतना बेफिक्र क्यों? डोकलाम विवाद के दौरान भारत सरकार ने चीन की टेक कंपनियों को लेकर जरूरत से ज्यादा तेजी दिखाई थी. सरकार ने कई चीनी स्मार्टफोन कंपनियों के कामकाज और उनकी टेक्नोलॉजी का विश्लेषण किया था. लेकिन 5G ट्रायल के मामले में मोदी सरकार का रुख थोड़ा अजीब है. ऐसा लग रहा है कि भारत को किसी बात का खतरा नजर नहीं आ रहा है. अगर ऐसा नहीं होता तो बिना किसी बहस के एक ऐसी कंपनी को 5जी ट्रायल की इजाजत कैसे मिल जाती, जिस पर पूरी दुनिया को संदेह है.
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