ज्यादती !!! टैक्स फ्री के लायक फिल्म को ए सर्टिफिकेट दे दिया
महिलाओं के शरीर के बारे में बात करने को लेकर लोगों को सहज बनाना और इस बारे में फैली चुप्पी को तोड़ना जरूरी है. जिस चीज को हम देख नहीं सकते, वो हम हो नहीं सकते. इसलिए ही इस फिल्म को देखना जरूरी है.
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फूल्लो फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने A सर्टिफिकेट दिया है. पहलाज निहलानी की अध्यक्षता वाले इस बोर्ड ने फूल्लो को इसलिए ए सर्टिफिकेट दिया क्योंकि इसमें मासिक धर्म के बारे में बात की गई है.
आखिर आश्चर्य क्यों?
आखिर यहां लोग चाहते हैं कि औरतें हमेशा प्रेग्नेंट ही रहें. और सरकार के एक मंत्रालय और मंत्री श्रीपद नाईक ने एक बुकलेट जारी किया जिसमें गर्भवती महिलाओं के लिए गाइडलाइन जारी की गई है. इसमें कहा गया कि प्रेग्नेंट औरतों को मांस का सेवन नहीं करना चाहिए, इस समय औरतों को कोई 'इच्छा' और 'अशुद्ध' विचार नहीं रखना चाहिए. सिर्फ इतना ही नहीं यहां आरोग्य भारती भी है जो अभी लोगों को परफेक्ट बच्चे पैदा करने के लिए गर्भ विज्ञान संस्कार का पाठ पढ़ाने में व्यस्त हैं.
फिल्म का एक दृश्य
संघ परिवार के आकाओं का विश्वास है औरतों को सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन होना चाहिए, जो खुद को घर के कामों के लिए समर्पित कर दे और चारदीवारी के अंदर ही खत्म हो जाए. इसलिए ये साफ है कि औरतों के अधिकारों से संबंधित कोई भी बात नहीं होनी चाहिए और उनके पीरियड्स से संबंधित भी कोई बात नहीं होनी चाहिए. खासकर सार्वजनिक तौर पर तो बिल्कुल भी नहीं. तो फिर वो ऐसे मुद्दों को उठाने वाली फिल्म को कैसे पास करेंगे. इसी तरह की एक दूसरी फिल्म पैडमैन, अरुणाचलम मुरूगनानथम के अद्भुत कामों पर आधारित फिल्म इस साल के अंत में रीलिज होगी. इस फिल्म के हीरो अक्षय कुमार होंगे. ये फिल्म उनके दिक्कतों की शुरूआत भर है.
बड़ी समस्या महिलाओं के आसपास फैली चुपी और बायोलॉजिकल भिन्नताएं हैं. यही कारण है कि सैनिटरी नैपकिन को टैक्स फ्री कराने की मांग उठाने जैसे असाधारण काम के लिए बधाई तो बनती है.
महिलाओं के शरीर के बारे में बात करने को लेकर लोगों को सहज बनाना और इस बारे में फैली चुप्पी को तोड़ना जरूरी है. जिस चीज को हम देख नहीं सकते, वो हम हो नहीं सकते. इसी तरह पुरूषों को एक अलग ही वातावरण में पाला जाता है जहां पर पीरियड के बारे में बात करना वर्जित होता है. उन्हें इन चीजों के बारे में जानना और देखना सिर्फ स्क्रीन पर ही अलाउड है या फिर इसे रोजमर्रा की बातों में सुनते हैं. इसलिए इस फिल्म की प्रशंसा की जा रही है.
हैंडमेड वो औरतें हैं जिन्हें कमांडरों की सेवा के लिए चुना जाता है क्योंकि उनकी पत्नियां मां बनने में असमर्थ होती हैं. संघ परिवार इस कदम से बहुत खुश होगा लेकिन ऐसे भविष्य की कल्पना करके देखिए. पता नहीं वो दिन कब आएगा? अभी ही शुरु करते हैं? निहलानी साहब को फिल्म के ए सर्टिफिकेट को बदलने के लिए मजबूर करके इसकी शुरूआत की जा सकती है? और यह सुनिश्चित करें कि महिलाओं स्वयं या अपने शारीरिक कार्यों के बारे में बात करने पर कभी भी शर्माएंगी नहीं. यही हमारी सच्चाई है.
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