अरुण जेटली से सवाल, महिलाओं के सैनिटरी पैड पर टैक्स क्यों ?
सैनिटरी पैड्स महिलाओं के लिए कपड़े और गहने जैसे लग्जरी आइटम नहीं हैं जिसे अपनी हैसियत के हिसाब से खरीदा जा सके बल्कि ये महिलाओं के स्वास्थ्य की जरूरत है, जिसपर टैक्स लिया जाना बहुत अजीब है.
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बिग बॉस 9 से चर्चा में आईं प्रिया मलिक अपने बेहद बिंदास अंदाज के लिए जानी जाती हैं. वे बोल्ड सोशल मीडिया पोस्ट्स के लिए भी ख्यात हैं. इस बार उन्होंने मोदी सरकार, खासकर वित्त मंत्री अरुण जेटली का आइना दिखाने का काम किया है. वे सवाल करती हैं कि सरकार देश में बीड़ी को टैक्स फ्री करती है, जबकि महिलाओं के सैनिटरी पैड्स को पर टैक्स लगा देती है.
ट्विटर पर उन्होंने #LahuKaLagaan यानी 'लहु का लगान' हैशटैग से भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली को टैग करते हुए कई ट्वीट किए हैं. वो लिखती हैं-
1- अगर गर्भनिरोधक टैक्स फ्री हैं, तो सैनिटरी पैड्स क्यों नहीं? भारत की केवल 12% महिलाएं ही इसे अफोर्ड कर सकती हैं.
2. 88% महिलाएं आज भी इन अच्छे दिनों में कपड़ा, प्लास्टिक, सूखी पत्तियां और मिट्टी का ही इस्तेमाल करती हैं.
3. अगर कुमकुम, बिंदी, आल्ता और सिंदूर टैक्स फ्री हैं, तो सैनिटरी पैड्स क्यों नहीं? श्रृंगार का अधिकार लेकिन 'लहु के लगान' का क्या?
4. भारत में बीड़ी टैक्स फ्री हैं, लेकिन सैनिटरी पैड्स पर लगान वसूला जा रहा है. सही कह रही हूं जिगर मां बड़ी आग है..
असल में प्रिया मलिक 'शी सेज़ इंडिया' की पहल #LahuKaLagaan को सपोर्ट कर रही हैं. और वही नहीं इस हैशटैग को हथियार बनाकर हर कोई अरुण जेटली से सवाल कर रहा है.
Time to do away with the tax on Sanitary Napkins. Mr @arunjaitley, Sanitary Napkins must be affordable & accessible. Say no to #LahuKaLagaan pic.twitter.com/OJps2P028l
— SheSays (@SheSaysIndia) April 18, 2017
If sanitary napkins aren't luxury why do we have to pay tax on buying them? @arunjaitley #LahuKaLagaan @SheSaysIndia pic.twitter.com/wiKgDFBJkl
— Girliyapa (@Girliyapa) April 18, 2017
.@arunjaitley @SheSaysIndia Infections 70% more common among women who don't use hygienic materials during menstruation. Old 500/1000 notes not ideal for heavy flow
— Kanan Gill (@KananGill) April 18, 2017
सैनिटरी पैड्स से आज भी क्यों दूर हैं महिलाएं-
सवाल जायज़ भी है. महिलाओं के साथ होने वाली ये प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसकी स्वच्छता पर अगर ध्यान न दिया जाए तो ये महिलाओं के लिए खतरनाक भी साबित होती है. कपड़े का इस्तेमाल करने वाली ज्यादातर महिलाएं कपड़ा धोकर अगली बार उसी कपड़े को दोबारा इस्तेमाल करती हैं. ऐसे में जरूरी है कि वो कपड़ा धूप में सुखाया जाए जिससे उसके बैक्टीरिया मर जाएं. लेकिन जिस देश में महिलाएं अपने अंतर्वस्त्र तक खुली धूप में नहीं सुखा पातीं, वहां माहवारी में इस्तेमाल करने वाले कपड़े को कैसे सुखाएंगी, जाहिर है बैक्टीरिया वाला ये कपड़ा हर बार इस्तेमाल करते-करते महिलाएं उन बैक्टीरिया को अपने शरीर के अंदर पहुंचाने के लिए मजबूर हैं. भारत में 70% प्रजनन संबंधी रोग माहवारी के दौरान अस्वच्छता के कारण ही होते हैं. यह मातृ मृत्यु दर को भी प्रभावित कर सकती है.
81% of rural women use unsterilized cloth. 27% of the world’s cervical cancer deaths occur in India. #LahukaLagaan @SheSaysIndia
— Neha Poonia (@NehaPoonia) April 18, 2017
Cervical cancer is linked to poor menstrual hygiene. @arunjaitley, this is the human cost of #LahukaLagaan. #ScrapTheTax @SheSaysIndia
— Neha Poonia (@NehaPoonia) April 18, 2017
2011 के सर्वे के मुताबिक भारत की केवल 12% महिलाएं उन दिनों में सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं. और बाकी महिलाएं केवल कपड़ा और लकड़ी का बुरादा, मिट्टी, अखबार जैसे अस्वस्थ साधनों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि सैनिटरी पैड्स इतने महंगे हैं कि वो उन्हें खरीद ही नहीं पातीं.
ये है सामान्य गणित-
एक अच्छे ब्रांड के सैनिटरी पैड का 8 पैड का पैकेट करीब 80 रुपए में मिलता है. माहवारी के औसत 4 दिन होते हैं. 4 दिन के हिसाब से दो पैड प्रतिदिन इस्तेमाल किए गए तो एक महीने में एक महिला को करीब 8 पैड की जरूरत पड़ती है, यानी 80 रुपए हर महीना. जरूरत के हिसाब से पैड की संख्या बड़ भी सकती है. अब शहरों में रहने वाले लोगों के लिए 80 रुपए खर्च करना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन जरा सोचिए कि गांवों में रहने वाले या शहरों में भी रह रहे गरीब तबके के लोगों के लिए हर महीने 80 रुपए खर्च करना कितना बड़ा सौदा है.
ये भारत की आधी आबादी की जरूरत है, एक ऐसी जरूरत जिसके लिए उसे हर महीने सोचना पड़ता है और अपनी सेहत से खिलवाड़ करना पड़ता है.
सैनिटरी पैड को टैक्स फ्री करने की आवाजें भारत के अलावा अन्य देशों में भी उठाई जा रही हैं. लेकिन भारत को नरेन्द्र मोदी में अब उम्मीद दिखाई देती है. स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने की जितनी जिम्मेदारी लोगों की है उतनी ही खुद मोदी सरकार की भी होनी चाहिए, सैनिटरी पैड से टैक्स हटेगा तो ये हर जरूरतमंद महिला की पहुंच में होगा. क्योंकि सैनिटरी पैड्स महिलाओं के लिए कपड़े और गहने जैसे लग्जरी आइटम नहीं है जिसे अपनी हैसियत के हिसाब से खरीदा जा सके बल्कि ये महिलाओं के स्वास्थ्य की जरूरत है, जिसपर टैक्स लिया जाना बहुत अजीब है. बल्कि जिस तरह सरकार कंडोम फ्री में बांटती है, उसी तरह सैनिटरी पैड भी मुफ्त दिए जाने चाहिए. तभी स्वच्छता और स्वास्थ्य की दृष्टी से भारत की महिलाएं मजबूत बनेंगी. सरकार को तो ये फैसला लेना ही होगा क्योंकि भारत में अरुणाचलम मुरुगनंथम जैसा अभी तक कोई दूसरा नहीं हुआ, जिन्होंने गरीब महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी पैड्स डिजाइन किए और उन्हें घर घर तक पहुंचाया भी.
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