दादा साहब फालके और अमिताभ बच्चन: पुरस्कार और कलाकार की गोल्डन जुबली का संयोग!
दादा साहब फाल्के पुरस्कार इस बार Amitabh Bachchan को दिया जा रहा है. जानना चाहते हैं कि अमिताभ सदी के महानायक क्यों है? उन्हें किसी भी परिवार की तीनों पीढ़ियां क्यों पसंद करती हैं?
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भारतीय फिल्म उद्योग के पितामह दादा साहब फाल्के के जन्म शताब्दी वर्ष (1969) से प्रारम्भ यह पुरस्कार जब अपनी पचासवीं जयंती मना रहा है. ऐसे में सदी के महानायक Amitabh Bachchan के लिए Dadasaheb Phalke award घोषित किया जाना इसे और भी विशिष्ट बनाता है. क्योंकि अभिनेता के तौर पर अमिताभ ने भी अपना फिल्मी सफर 1969 में ही 'सात हिन्दुस्तानी' से शुरू किया था. अपने जीवन के पिछले पचास वर्षों से वे बॉलीवुड में सक्रिय हैं. अतः यह 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' और अभिनेता के रूप में अमिताभ दोनों का ही गोल्डन जुबली वर्ष है. आज देश विदेश में बसे करोड़ों प्रशंसक भी अपने इस 76 वर्षीय 'युवा' अभिनेता की कार्य क्षमता और जीवटता की सराहना करते नहीं अघाते.
1913 में 'राजा हरिश्चंद्र' से अब तक भारतीय सिनेमा भी जानना चाहते हैं कि अमिताभ सदी के महानायक क्यों है? उन्हें किसी भी परिवार की तीनों पीढ़ियाँ क्यों पसंद करती हैं? जानिए -सौ साल पूर्ण कर चुका है. ऐसे में कई नाम हैं जिन्हें बॉलीवुड में आजीवन, अतुलनीय योगदान के लिए दिये जाने वाले 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' के लिए योग्य माना गया होगा और संभव है कि अब तक हर चयन पर आपत्ति उठाने वाले लोगों का एक वर्ग इस बार भी सक्रिय हो जाए लेकिन उन्हें समझना होगा कि अमिताभ मात्र एक कलाकार ही नहीं बल्कि 'युग' हैं, एक ऐसा युग जिसने युवाओं की सोच बदल दी. एक ऐसा 'एंग्री यंग मैन' जिसके बिना बॉलीवुड अशक्त कहलाएगा.
अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक कहा जाता है
जानना चाहते हैं कि अमिताभ सदी के महानायक क्यों है?
अमिताभ सदी के महानायक हैं और उन्हें किसी भी परिवार की तीनों पीढ़ियां पसंद करती हैं? क्योंकि-
* अमिताभ एक ऐसे कलाकार हैं जिनकी फिल्मों के दृश्यों और संवादों में अश्लीलता की झलक तक नहीं मिलती! इनकी फिल्में कभी भी, कहीं भी सपरिवार देखी जा सकती हैं.
* आजकल की तरह इनकी फिल्मों में प्रेम के नाम पर, कभी देह नहीं परोसी गई.
* भारतीय संस्कृति में मां का दर्जा सदैव ऊपर रहा है लेकिन अमिताभ की फिल्म 'दीवार' के एक डायलॉग 'मेरे पास मां है' (शशि कपूर द्वारा बोला गया) को आज भी मंत्र की तरह बोला जाता है. इनकी लगभग सभी फिल्मों में 'मां' की महत्ता बताई गई है.
* 'जंजीर' ने हिन्दी फिल्मों में वर्षों से चली आ रही प्रेम की सत्ता को तोड़ एक ऐसे युवा की छवि पेश की, जो व्यवस्था से लड़ने के लिए खड़ा होता है. उसके बाद इनकी ऐसी कई फिल्में आईं जिन्होंने देश के युवाओं को सच्चाई और ईमानदारी के साथ खड़े होकर समाज में चल रही अव्यवस्थाओं के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया.
* अमिताभ रोमांटिक फिल्मों के दौर में परिवर्तन तो लाये लेकिन जब-जब प्रेमी बनकर रुपहले पर्दे पर उतरे तो दर्शकों के दिलों में जैसे सदा के लिए बस गए. सिलसिला, कभी-कभी, त्रिशूल में उनके धीर-गंभीर प्रेमी रूप को खूब सराहना मिली.
* रोमांस और एक्शन में अपने को स्थापित करने के साथ-साथ कॉमेडी में भी इन्होंने बड़े-बड़े कॉमेडियन को पीछे छोड़ दिया. ये ऐसे नायक के रूप में अवतरित हुए जो हर क्षेत्र में पारंगत था.
* 'कुली' की शूटिंग के दौरान हुए हादसे में मौत के मुंह से वापिस आये अमिताभ ने स्वास्थ्य सम्बन्धी कई कठिनाइयां झेलीं और अब भी उनसे जूझ रहे हैं लेकिन इससे उनके कार्य के प्रति समर्पण और लगन में रत्ती भर भी कमी नहीं आई और उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे सिर्फ फिल्मों के ही 'विजय' नहीं बल्कि असल जीवन से भी जूझना जानते हैं.
अमिताभ उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्हें सुनकर भी हिंदी सीखी जा सकती है
* एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें आर्थिक रूप से परेशानियों का सामना करना पड़ा. इस कष्टकारी दौर में भी उन्होंने संघर्ष जारी रखा और टीवी की ओर उन्मुख हुए. यह उनकी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेने की क्षमता बताता है. इसने युवाओं को विफलताओं के आगे घुटने न टेकने की सीख भी दी.
* उस समय कलाकार टीवी से फिल्मों में जाया करते थे और अमिताभ के इस निर्णय की चौतरफा आलोचना हुई. आने वाले समय ने उन सभी आलोचनाओं के मुंह बंद कर दिए और आज हर बड़ा हीरो/हीरोइन टीवी पर छाने को बेताब है. अमिताभ का यह कदम तथाकथित 'इडियट बॉक्स' के लिए भी सहायक सिद्ध हुआ.
* अमिताभ, भारतवर्ष के उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्हें सुनकर भी हिंदी सीखी जा सकती है. भाषा की सभ्यता और बोलने का सलीका क्या होता है, तमाम सुख-सुविधाओं के बीच रहते हुए भी एक अनुशासित जीवन कैसे जिया जाता है, कई दशकों से अमित जी इसके जीते-जागते साक्ष्य बन हमारे जीवन को प्रेरणा देते रहे हैं. कार्य के प्रति उनकी मेहनत, लगन, निष्ठा और अनुशासन देख अच्छे-अच्छे भी उनके सामने पानी भरते नज़र आते हैं. पर यहां यह भी जानना आवश्यक है कि इतने दशकों से सभी के दिलों पर कोई यूं ही राज नहीं कर लेता! इस क़ाबिल बनने के लिए वर्षों की अपार मेहनत और संघर्ष की भीषण आंधियों से गुजरना होता है. अमिताभ भी सारी मुश्किलों को झेलते हुए अपने बुरे समय से जूझकर आगे बढ़ते रहे हैं. इस उम्र में भी KBC के अब तक के सभी सीजन की लगातार सफलता सारी कहानी स्वयं ही कह देती है. KBC के माध्यम से हिन्दी को घर-घर पहुंचाने का श्रेय भी आपको ही जाता है. आपकी सक्रियता आज के नौजवानों को सतत प्रेरणा देती है.
अमिताभ के बारे में जितनी बार लिखा, हर बार लगा कि कम लिखा. इस कद तक पहुंचने में एक पूरा जीवन लग जाता है.
जियो तो यूं जियो! वरना 'ये (तुम्हारा) जीना भी कोई जीना है लल्लू! हईं!! ????
शुभकामनाएं, अमित जी आप चिरायु हों!
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