ओह गुलजार...ये सब आप ही कर सकते हैं !
बच्चों के गाने की यदि कोई ABCD हो, तो उसमें A होगा गुलजार का लिखा- 'लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा...'. गुलजार की शायरी और रोमांटिक गाने ताउम्र जवां रहने की घुट्टी है. लेकिन, उस गुलजार के बारे में क्या कहेंगे जो बच्चों में जीता है.
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बच्चों के गाने की यदि कोई ABCD हो, तो उसमें A होगा गुलजार का लिखा- 'लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा...'. गुलजार की शायरी और रोमांटिक गाने ताउम्र जवां रहने की घुट्टी है. लेकिन, उस गुलजार के बारे में क्या कहेंगे जो बच्चों में जीता है.
गुलजार कहते हैं कि उनका दिमाग तभी चलता है जब उनकी कलम चलती है, तब ऐसा नहीं कि वो सिर्फ शायरी ही करें वो कुछ भी लिखते हैं और वो दिल में उतर जाता है.
ख्याल को शक्ल देना उन्हें खूब आता है, एब्स्ट्रैक्ट लेखन के महारथी हैं. गुलजार पर कहते हैं कि इस लेखन में उन्हें सफलता मिली फिल्म खामोशी के गीत- हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू, से. और दूसरा टर्निंग प्वाइंट फिल्म 'दिल से' के गीत 'छैया-छैया' को मानते हैं.
शायर आइटम नंबर नहीं लिख सकते ऐसा बिलकुल नहीं है. गुलजार की माने तो 'शायरी गंभीर हो ये ज़रूरी नहीं' और इस बात को साबित करता है फिल्म 'बंटी और बबली' का गीत 'कजरारे-कजरारे'.
आम इन्सानों के दिल की बातों को कोई भी लफ्ज दे सकता है, लेकिन किसी गैंगस्टर के दिल की बात को बयां करने का फन शायद गुलजार में ही है. तभी तो 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा' लिखने वाले गुलजार 'सत्या' में लिखते हैं 'गोली मार भेजे में, कि भेजा शोर करता है'.
उम्र के इस पड़ाव में भी जो बच्चों सा दिल रखता हो वो सिर्फ गुलजार ही हो सकते हैं. देखिए क्या कहता है फिल्म ‘इश्किया’ का ये गीत ‘दिल तो बच्चा है जी’
गुलजार की शायरी और गीत सिर्फ बड़ों तक सीमित नहीं रहे. बच्चों के दिल को भी उन्होंने खूब गुदगुदाया. भला इस तरह के शब्द और कौन उन्हें दे पाता 'चढ्ढ़ी पहन के फूल खिला है फूल खिला है'.
फिल्म इंडस्ट्री में होता ये रहा कि यदि बच्चों के लिए कोई गाना लिखा जाता तो लता मंगेशकर से गवा लिया जाता. लेकिन गुलजार ने गानों से निकलकर बच्चों के लिए पूरी दुनिया ही बसा दी. वे बाल मनोविज्ञान पर आधारित मशहूर फिल्म परिचय बनाते हैं. एक बच्चे पर बनी उनकी एक और फिल्म 'किताब' याद है ना. और उसका वो गाना- 'धन्नो की आंखों में रात का सुरमा...'
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