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Updated: 16 जून, 2018 01:33 PM
मनीष जैसल
मनीष जैसल
  @jaisal123
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संगीत नाटक अकादमी ने हाल ही में प्रदर्शनकरी कलाओं के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले कलाकारों को सम्मानित किया है. जिसमें लौंडा नाच की परंपरा को आगे बढाने वाले 93 वर्षीय रामचंद्र मांझी जो बिहार के छपरा से ताल्लुक रखते हैं उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है. प्रसिद्ध नाटककार स्वर्गीय भिखारी ठाकुर की परंपरा को जीवित रखने वाले रामचंद्र मांझी उन कलाकारों की एक आस बनें है जो सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में खोती जा रही विधाओं के संरक्षण में दिन रात कार्यरत हैं.

ramchandra-manjhiरामचंद्र मांझी ने लौंडा नाच की परंपरा को आगे बढ़ाया

दलित पिछड़ों के दर्द को अपने नाटकों में भिखारी जिस प्रचुरता से शामिल करते थे वह मौजूदा समय में भी किसी नाटककार के लिए काफी मुश्किल काम है. गौरतलब है कि बिहार की पृष्ठभूमि से ही जुड़े रहने वाले पंडित सियाराम तिवारी, पंडित रामचतुर मलिक, अभय नारायण मलिक, पंडित रामाशीष पाठक, पंडित आनदं मिश्र को हिन्दुस्तानी संगीत में, विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा को लोक संगीत तथा थियेटर जगत में सतीश आनंद और परवेज अख्तर जैसे कलाकारों को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिल चुका है.

यहां यह भी जानना जरूरी है कि बिहार और उत्तर प्रदेश से जुड़े कलाकारों को मिलने वाले इस सर्वोच्च सम्मान में रामचंद्र पहले ऐसे कलाकार हैं जो दलित समाज से आते हैं. यह सम्मान उनकी लौंडा नाच परंपरा के साथ दलित समाज के कलाकारों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किये जा रहे कार्य को लेकर भी सकारात्मक सन्देश देता प्रतीत होता है. यह सच है कि मांझी के जमीनी कार्य का प्रतिफल उन्हें मिलने में थोड़ी देर हुई, लेकिन यह डॉ. ओमप्रकाश भारती, सतीश आनंद, जैनेन्द्र दोस्त, संजय उपाध्याय जैसे तमाम उन लोगों की कड़ी मेहनत का फल है कि इस दिशा में बेहतर कार्य हो सका.

रामचंद्र माझी, लौंडा नाच, संगीत नाटक अकादमी, बिहार   कहना गलत नहीं है कि संगीत नाटक अकादमी के इस फैसले के बाद लोक कलाओं को बल मिलेगा

बीते दस सालों से रंग समीक्षक, नाटककार जैनेन्द्र दोस्त ने राम मांझी की अभिनय शैली और उनके काम को लेकर जिस तरह के कठिन प्रयास उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए किये हैं वह काबिले तारीफ़ है. लोक रंगमंच में अनसुना सा नाम राम चन्द्र मांझी जब मुख्यधारा में आज सुनाई देता है तो एक उम्मीद जागती है कि अब भी कलाकारों की क़द्र होती है. 93 वर्ष की आयु में भी मांझी अपनी आवाज को जिस उंचाई से मंच पर प्रस्तुत करते हैं दर्शकों को वाह के सिवाए कुछ और नहीं समझ आता.

हाल ही में फिल्म्स डिविजन के साथ मिलकर निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त और शिल्पी गुलाटी ने मांझी को लेकर एक वृत्तचित्र का निर्माण भी किया. जिसका नाम नाच भिखारी नाच था. हालांकि पूर्व में इसका नाम नाच लौंडा नाच रखा गया था लेकिन सरकारी अड़चनों की वजह से निर्देशकों ने इस नाम पर ही हामी भर दी थी. यह एक तरह का सामाजिक राजनैतिक सेंसरशिप का ही प्रतिफल था. फिल्म को दिल्ली बंगलौर आदि शहरों में अब तक दिखाया जा चुका है. दर्शको ने फिल्म को खूब सराहा भी है.

रामचंद्र माझी, लौंडा नाच, संगीत नाटक अकादमी, बिहार   रामचंद्र मांझी को सम्मान मिलने से कहीं न कहीं दलित समाज मजबूत हुआ है

गबर गिचोर, विदेशिया, गंगा स्नान, भाई विरोध, बेटी वियोग, विधवा विलाप जैसे नाटकों में अपनी बुलंद आवाज से दर्शकों का मन मोह लेने वाले रामचंद्र मांझी ने नाटकों से सामाजिक सन्देश देने में अपना पूर्ण जीवन दिया है. संगीत नाटक अकादमी द्वारा दिया गया यह सम्मान उन्हें ऐसे तमाम कलाकारों को एक सकारात्मक दिशा दे रहा है. जिससे वह प्रदर्शनकारी कलाओं के क्षेत्र में एक नई ऊर्जा के साथ काम करेगा. आज लौंडा नाच और विदेशिया की परंपरा को आगे बढाने वाले रामचन्द्र मांझी को दिया गया सम्मान पूरे बिहार और उत्तर प्रदेश के कलात्मक परिदृश्य और सामाजिक सांस्कृतिक मिलाप के लिए एक सुखद सन्देश है.

देखिए वीडियो-

बीते 25-30 वर्षों से भारत की सांस्कृतिक धरोहर उन पर गहन अध्ययन अध्यापन कर रहें तथा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रदर्शनकारी कला विभाग के हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट डॉ. ओम प्रकाश भारती रामचन्द्र मांझी को मिले इस सम्मान से काफी उत्साहित हैं. उन्होंने हमें बताया भी कि, यह सम्मान उपेक्षित समाज एक कला रूप लौंडा नाच और उससे जुड़े समाज को मिला है. बात केवल सम्मान की नही हैं बल्कि वर्षों से वंचित सांस्कृतिक धाराओं तथा विविधताओं को अंगीकार करने की है. निर्णायक मंडल को साधुवाद.

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लेखक

मनीष जैसल मनीष जैसल @jaisal123

लेखक सिनेमा और फिल्म मेकिंग में पीएचडी कर रहे हैं, और समसामयिक मुद्दों के अलावा सिनेमा पर लिखते हैं.

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