देशभक्ति का मुकम्मल डोज़ हैं कवि प्रदीप के गीत
बात जब भी देशभक्ति की होगी तब-तब कवि प्रदीप का नाम आएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि कवि प्रदीप के गीतों ने हमें बताया कि बेशकीमती है हमें मिली आजादी.
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26 जनवरी 1950 से भारत के एक स्वतंत्र गणराज्य के बनने से शुरू हुआ यह सफर आज 2018 तक पहुंच चुका है. ऐसे में हम तमाम बातों के बीच कवि प्रदीप को नहीं भूल सकते हैं. तमाम प्रयासों और कुर्बानियों से मिली आजादी के बाद ये प्रदीप ही थे, जिन्होंने अपने गीतों से लोगों को इस बात का एहसास कराया कि कैसे हर एक हिंदुस्तानी को आजादी की कीमत समझनी चाहिए और उसके लिए दी गयी कुर्बानियों को याद रखना चाहिए. मध्यप्रदेश के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में कवि प्रदीप का मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था.
लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक पूर्ण कर द्विवेदी जी ने बंबई को ओर प्रस्थान किया. वहीं किसी कवि सम्मेलन में निर्देशक हिमांशु रॉय के जानने वाले एक व्यक्ति ने उनकी कविता से प्रभावित होकर हिमांशु को आग्रह किया कि वे इस ओर ध्यान दें. बाद में हिमांशु रॉय ने देरी न करते हुए कवि प्रदीप को 200 रुपये महीने की पगार पर बंबई बुला लिया. इसी यात्रा में रामचंद्र नारायण द्विवेदी जी को अपने रेलगाड़ी जैसे लम्बे नाम को छोटा कर कवि प्रदीप करना पड़ा था. हालांकि आज भी मुंबई में नाम बदलने की यह परंपरा विद्यमान हैं. हालांकि उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता प्रदीप पहले से थे इसीलिए उन्हे अपने नाम के आगे प्रदीप लगाना पड़ा.
कवि प्रदीप ने अपने गीतों से आजादी का महत्त्व समझाया और बताया कि ये आजादी बहुत कीमती है
कवि प्रदीप का जीवन परिचय देने से बेहतर हैं कि उनके कामों को याद किया जाए. उनके द्वारा लिखे गीतों को आज भी देश की जनता अगल-अलग आवाजों में मधुर संगीत के साथ सुन रही है. उनका ही लिखा गीत जिसे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपनी आवाज में गाया है वह काबिले तारीफ हैं.
ऐ मेरे वतन के लोगों को कवि प्रदीप ने भारत चाइना युद्ध के बाद लिखा था. युद्ध में खाई चोट से उबरने के लिए लिखा गया यह गीत आज भी आंख में आंसू ला देता है. कवि प्रदीप के शब्दों को लता मंगेशकर ने कुछ ऐसे गाया है कि सुनने वालों की आंखों में आंसू आ जाते हैं. यह तथ्य भी सच है कि इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखें भी नम हो गई थीं. इसके पूर्व भी कवि प्रदीप फिल्म बंधन, किस्मत, जागृति में देशभक्ति से ओत प्रोत गीतों को लिख चुके थे.
आइये सुनते हैं उनके ही लिखे कुछ गीत जिन्हे आज भी देशभक्ति के तरानों में सर्वश्रेष्ठ दर्जा प्राप्त है. गौरतलब है कि उनके लिखे गीतों को ब्रिटिश काल में प्रतिबंध का शिकार भी होना पड़ा था. 1940 में बनी फिल्म बंधन के गीत चल चल रे नौजवान के बोल अंग्रेज़ो को अखरने लगे तो उसे प्रतिबंधित कर दिया. देश की आज़ादी के लिए चल रहे संघर्ष में उनका लिखा यह गीत उन्हे भी आज़ादी की लड़ाई में शामिल करवाता हैं. 1943 में बनी फिल्म किस्मत के गीत को लेकर भी अंग्रेजों को ख़ासी दिक्कतें हुई जब प्रदीप ने लिखा कि दूर हटो ये दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है.
यह वही गीत था जब अंग्रेजों ने गीत बैन किया और प्रदीप को कुछ समय के लिए भूमिगत होना पड़ा. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि देश की आज़ादी के बाद भी कवि प्रदीप का देश के प्रति प्रेम खत्म नहीं हुआ. 1962 में चीन से साथ हुए युद्ध में हार के बाद उनका मन बहुत व्याकुल था. इसी व्याकुलता के चलते यूं ही अपनी दिन राह चलते सिगरेट पीते हुए उनके मन ‘जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी’ जैसी लाइने आईं और इसे उन्होने सिगरेट की डिब्बी के अंदर के कागज पर ही लिख लिया. बाद में इस गीत ने क्या क्या रिकॉर्ड बनाए वह हम सभी को मालूम हैं. इससे हुई कमाई शहीदो की विधवाओं के राहत कोश में भेज दिया गया था.
आइये सुनते हैं कुछ ऐसे ही देशभक्ति गीत जिन्हे कवि प्रदीप ने लिखे हैं.
1- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं - जागृति
फिल्म जागृति 1954 का यह गीत उस दौर के नौजवानों और बच्चों को एक आदर्श राह पर चलने की ओर चलने पर प्रेरित करता था. गीत की एक एक लाइन नए नवेले आजाद भारत और इसके बनने की कहानी को उन दिनों की नयी पीढ़ी को सीख देती हुई सुनाई पड़ती हैं.
2 - ऐ मेरे वतन के लोगों
1962 के चाइना के साथ हुए युद्ध और शहीद हुए सैनिकों की याद को संजोये हुए इस गीत की लाइनें कवि प्रदीप ने सैनिकों को ही समर्पित की थी. गीत का सार भारत की ओर से शहीद हुए सैनिको की कुर्बानी को यूं ही न भुला देने की ओर इशारा करता हैं. आज भी इसे सुनते हुए उस दौर को याद किया जा सकता हैं. जब घायल हुआ हिमालय, ख़तरे में पड़ी आज़ादी जैसी पंक्तियाँ हमें चाइना से मिली हार का भी बोध कराती हैं और भारतीय सैनिकों की हिम्मत और आखिरी दम तक देश के लिए लड़ने मर मिटने की याद दिलाती हैं.
3 - साबरमती के सन्त
फिल्म जागृति का ही यह गीत दे ही हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढ़ाल अहिंसा और शांति से आज़ादी कि लड़ाई लड़ने वाले महात्मा गांधी को समर्पित था. उनके जीवन का सार ही यह पूरा गीत हैं.
4 - आज हिमालय की चोटी से
फिल्म किस्मत 1943 के लिए लिखा गया कवि प्रदीप का यह गीत ब्रिटिश हुकूमत को पसंद नहीं आया था. पहले इसे प्रतिबंधित किया गया फिर कई तर्क वितर्क के बाद जब इसे अनुमति दी गयी तो लोगों ने इसे खूब पसंद किया. ‘शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी, तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी’ वाली पंक्ति से जिस ओर इशारा किया गया वह हम सभी जानते हैं.
5 - हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के
फिल्म जागृति का यह गीत आज़ादी के उन संघर्षों के बाद मिली आज़ादी का नयी पीढ़ी को एक संदेश देता हैं जिसके माध्यम से आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों के जीवन संघर्ष और उन मुसीबतों का जिक्र हैं जिससे गुजरते हुए भारत को आज़ादी मिली . तभी तो कवि प्रदीप कहते हैं हम लाएँ हैं तूफान से किश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ....
6 - चल चल रे नौजवान
फिल्म बंधन का ही यह गीत उन दिनों आज़ादी की लड़ाई में कूदने के लिए युवाओं को प्रेरित करते हुआ दिखता हैं. कवि प्रदीप उन नौजवानों को निर्देशित करते हुए कहते हैं कि तू आगे बढ़े जा, आफ़त से लड़े जा, आँधी हो या तूफ़ान, फटता हो आसमान, रुकना तेरा काम नहीं, चलना तेरी शान, चल-चल रे नौजवान
कवि प्रदीप की जीवन में उनके सिनेमा में दिये बेशकीमती योगदान के लिए वर्ष 1998 में 'दादा साहब फालके' पुरस्कार से प्रदान किया गया था.
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