पानीपत का विरोध पदमावत से फीका ही रहेगा
पानीपत (Panipat Protest) फिल्म के विरोध में राजस्थान में खूब प्रदर्शन हो रहे हैं. आरोप है कि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है. हालांकि, इसका विरोध प्रदर्शन पद्मावत (Padmavat Protest) फिल्म के विरोध के सामने काफी फीका है.
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हाल ही में रिलीज हुई बॉलीवुड (Bollywood) फिल्म पानीपत को इन दिनों विरोध प्रदर्शन (Panipat Protest) का सामना करना पड़ रहा है. ये विरोध मुख्य रूप से राजस्थान में हो रहा है. आरोप लगाया जा रहा है कि फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है. सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है महाराजा सूरजमल (Maharaja Surajmal) के किरदार पर. राजस्थान के लोगों का कहना है कि उनके किरदार को गलत तरीके से दिखाया गया है, जो जनता में एक गलत संदेश पहुंचा रहा है. भरतपुर के महाराजा सूरजमल के वंशज और राजस्थान के पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने इस फिल्म को बैन करने की मांग की है और विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा भी बन रहे हैं. आशुतोष गोवरिकर (Ashutosh Gowariker) की फिल्म पानीपत के खिलाफ प्रदर्शन तो खूब हो रहा है, लेकिन ये प्रदर्शन इतना भी बड़ा और आक्रामक नहीं है कि फिल्म पर बैन लग जाए. हालांकि, सोमवार को जयपुर के कुछ मल्टीप्लेक्स में आग लगाए जाने की खबरें भी सामने आईं. पद्मावत (Padmavat Protest) फिल्म को लेकर जो प्रदर्शन हुए थे और उसके साथ जैसे सेंटिमेंट जुड़े थे वह कई मायनों में पानीपत से काफी अलग हैं. बता दें पानीपत फिल्म में अर्जुन कपूर (Arjun Kapoor) ने सदाशिव राव भाऊ, कृति सेनन (Kriti Senon) ने पार्वती बाई और अहमद शाह अब्दाली का किरदार संजय दत्त (Sanjay Dutt) ने निभाया है. पानीपत फिल्म पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बनी है.
इतिहास की एक बेहद खौफनाक जंग का गवाह है पानीपत.
पद्मावत से कैसे फीका है पानीपत का विरोध?
पद्मावत फिल्म का नाम पहले पद्मावती था और ये फिल्म भी वहां की रानी पद्मावती के ऊपर बनी थी. जहां एक ओर पानीपत फिल्म के साथ राजस्थान और हरियाणा के एक छोटे से तबके की भावनाएं जुड़ी हैं, वहीं पद्मावत फिल्म से पूरे देश की भावनाएं जुड़ने लगी थीं, विशेषकर राजपूतों की. पद्मावत फिल्म का हिंसक विरोध कर रही थी करणी सेना. यहां तक कि संजय लीला भंसाली के साथ उनकी कहासुनी और झड़प भी हुई. विरोध सिर्फ राजस्थान में नहीं हुए, बल्कि देश के अन्य इलाकों में भी हुए. पद्मावत में लोगों ने सिर्फ ये नहीं देखा था कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई है. दरअसल, पद्मावती एक सती थीं, जिन्होंने हजारों महिलाओं के साथ जौहर किया था. ऐसे में वह लोगों के लिए एक देवी समान थीं. वहीं दूसरी ओर, पद्मावती फिल्म के साथ हिंदू सेंटिमेंट भी जुड़ा हुआ था, जिसकी वजह से उसका विरोध और भी अधिक उग्र हो गया था. यही वजह है कि बाद में फिल्म का नाम पद्मावती से बदलकर पद्मावत करना पड़ा और राजस्थान-मध्य प्रदेश में तो फिल्म पर बैन भी लगा.
क्या लगाया जा रहा है आरोप?
राजस्थान के पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने ट्वीट किया है- यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिग्गज जाट शासक महाराजा सूरजमल के किरदार को गलत तरीके से दिखाया गया है और पानीपत फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. हरियाणा और राजस्थान की जाट कम्युनिटी की ओर से हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुझे विश्वास है कि इस फिल्म को कानून व्यवस्था को नजरअंदाज करने के लिए उत्तर भारत में बैन किया जाएगा. उन्होंने तो प्रेस रिलीज भी जारी की है, जिसमें भी इस फिल्म पर बैन लगाने की मांग की है. साथ ही ये भी बताया है कि उन्हें असल आपत्ति किस बात से है.
किस बात को लेकर नाराज हो रहे हैं विश्वेंद्र प्रताप?
जाट समुदाय की तरफ से ये भी आपत्ति जताई जा रही है कि फिल्म में महाराजा सूरजमल को लालची इंसान दिखाया गया है. फिल्म के अनुसार वह अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ पेशवा सदाशिव राव भाऊ की मदद के बदले आगरा का एक किला मांगते हैं. विश्वेंद्र सिंह के अनुसार यह बिल्कुल गलत है. विश्वेंद्र प्रताप महाराजा सूरजमल जाट की 14वीं पीढ़ी के हैं. वह कहते हैं- सच्चाई ये है कि जब मराठा और पेशवा पानीपत की लड़ाई में हारकर और बुरी तरह से घायल होकर वापस लौटे थे, जो महाराजा सूरजमल और महारानी किशोरी ने पूरी मराठा सेना और पेशवाओं को 3 महीने तक आश्रय प्रदान किया था. यहां तक कि खंडेराव होल्कर की मौत भी कुम्हेर में हुई थी, जो उस वक्त भरतपुर की राजधानी हुआ करती थी. आज भी उनका छाता गागरसोली गांव में मौजूद है.
जाट समुदाय एक और बात को लेकर नाराज हैं कि फिल्म में महाराजा सूरजमल को राजस्थानी और हरियाणवी बोलते हुए दिखाया गया है, जबकि भरतपुर क्षेत्र के लोग बृज भाषा बोलते हैं.
वसुंधरा राजे भी कर रही हैं फिल्म का विरोध
इस फिल्म का विरोध सिर्फ विश्वेंद्र सिंह ही नहीं कर रहे, बल्कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी कर रही हैं. अब इस विरोध में कितनी हकीकत है और कितनी राजनीति, ये कहा नहीं जा सकता. राजे ने ट्वीट करते हुए कहा है- स्वाभिमानी,निष्ठावान और हृदय सम्राट महाराजा सूरज मल का फ़िल्म निर्माता द्वारा फ़िल्म पानीपत में किया गया ग़लत चित्रण निदंनीय है. बता दें कि वसुंधरा राजे की शादी भी रॉयल जाट परिवार में महाराज राणा हेमंत सिंह से हुई है. जाट समुदाय की होने की वजह से ही वह महाराजा सूरजमल के किरदार के गलत चित्रण पर दुखी हैं और अपना विरोध दर्ज कर रही हैं.
पानीपत के विरोध की वजह एक डायलॉग भी है
पानीपत फिल्म का ट्रेलर जारी होने की कुछ दिन बाद ही आशुतोष गोवरिकर को एक डायलॉग के लिए भी नोटिस भेजा गया था. ये नोटिस भेजा था पेशवा बाजीराव की 8वीं पीढ़ी के नवाजादा शादाब अली बहादुर ने. ये डायलॉग है- मैंने सुना है पेशवा जब अकेले मुहिम पर जाते हैं तो एक मस्तानी के साथ लौटते हैं. बता दें कि ये डायलॉग पार्वती बाई का किरदार अदा कर रही कृति सेनन ने सदाशिव राव भाव का किरदार अदा कर रहे अर्जुन कपूर से बोला था. उस समय गोवरिकर ने सभी से आग्रह किया था कि पहले फिल्म देख लें, फिर कोई राय बनाएं. हालांकि, इस बार जब राजस्थान में जगह-जगह फिल्म पानीपत के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं तो गोवरिकर न तो सफाई दे रहे हैं ना ही कोई और तर्क देते दिख रहे हैं.
तो क्या वाकई पानीपत फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई है?
इतिहासकार महेंद्र सिंह सिकरवार ने अपनी भरतपुर के इतिहास पर अपनी किताब में लिखा है कि पानीपत की लड़ाई से पहले ही आगरा का लाल किला महाराज सूरजमल के राज्य का हिस्सा था. उन्होंने ये भी दावा किया है कि महाराजा सूरजमल बृज भाषा बोलते थे, जो दावा जाट समुदाय के लोग भी कर रहे हैं. सिकरवार कहते हैं कि फिल्म में दिखाया है सदाशिव राव भाऊ सीधे अहमद शाह अब्दाली से पानीपत में लड़ने चले गए, जबकि इससे पहले वह भरतपुर के महाराजा सूरजमल से मिले थे और इस अफगान राजा के खिलाफ लड़ाई में मदद मांगी थी. उस वक्त महाराजा सूरजमल ने तीन शर्तें रखी थीं, जिन्हें पेशवा ने मानने से इनकार कर दिया तो महाराजा सूरजमल ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया.
सिकरवार बताते हैं- सदाशिव भाऊ जंग के मैदान में महिलाओं के साथ आए थे, जिन्होंने गहने पहने हुए थे. महाराजा सूरजमल ने तीन शर्तें रखीं. पहली ये कि महिलाएं युद्ध में नहीं लड़ेंगी. दूसरी ये कि लड़ाई सूरजमल की रणनीति के हिसाब से लड़ी जाएगी और तीसरी ये कि जंग में गुरिल्ला तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. सदाशिव राव ने ये शर्तें नहीं मानीं, तो महाराजा सूरजमल ने उनकी मदद नहीं की. उनकी किताब में ये भी लिखा है कि हारने के बाद महाराजा सूरजमल ने 3 महीने तक मराठा सेना और पेशवाओं के रहने-खाने की व्यवस्था की थी.
अलग-अलग जानकारों और स्थानीय लोगों की मानें तो पानीपत फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों के दिखाने में गड़बड़ी तो हुई है. अब ये जानबूझ कर किया गया है या जानकारी ना होने की वजह से ये गलती हुई है, ये कहा नहीं जा सकता है. हां, इस फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं और हो सकता है आने वाले वक्त में इसके खिलाफ कोई एक्शन भी हो. लेकिन ये देखना दिलचस्प रहेगा कि फिल्म पर कहीं बैन लगता है या फिर सिर्फ कुछ एडिटिंग के साथ दोबारा रिलीज का आदेश होता है. ये भी हो सकता है कि छुटपुट प्रदर्शन होते रहें और फिल्म बड़े पर्दे से उतर भी जाए. वैसे भी, फिल्म काफी धीरे-धीरे कमाई कर रही है.
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