Citizenship Amendment Bill 2019: सभी जरूरी बातें, और विवादित पहलू
मोदी सरकार (Modi Government) पिछले कार्यकाल में भी नागरिकता संशोधन बिल 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) को पारित कराने की कोशिश कर चुकी है. ये भाजपा की दूसरी कोशिश है. लोकसभा (Lok Sabha) में तो भाजपा ने बहुमत होने के चलते इसे पारित करवा लिया है, लेकिन राज्यसभा (Rajya Sabha) में चुनौती का सामना करना होगा.
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Citizenship Amendment Bill 2019 यानी नागरिकता संशोधन बिल 2019, जिसके तहत शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की तैयारी की जा रही है. करीब 4 महीने मोदी सरकार ने सख्त फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से धारा 370 (Article 370) को हटाया था और अब नागरिकता से जुड़े मामले पर एक सख्त फैसला ले रही है. कुछ लोग इसके समर्थन में हैं तो कुछ विरोध भी कर रहे हैं. केंद्रीय कैबिनेट (Modi Government) ने इस बिल को पहले ही मंजूरी दे दी है और अब ये बिल लोकसभा में पहुंच चुका है. बता दें कि पिछले कार्यकाल में भी मोदी सरकार इसे संसद तक ला चुकी थी. 8 जनवरी 2019 को लोकसभा में इसे मंजूरी भी मिल गई, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध शुरू हो गया और फिर इसे राज्यसभा (Rajya Sabha) में नहीं ले जाया गया. इस बार दोबारा से बिल को लाया जा रहा है. लोकसभा में भाजपा (BJP) के पास बहुमत है ऐसे में ये पहले से ही तय था कि बिल को यहां से मंजूरी मिल जाएगी. इस बिल के पक्ष में 293 वोट पड़े और विरोध में 82 वोट पड़े. भाजपा के सामने असली चुनौती राज्यसभा में होगी, जहां भाजपा के पास बहुमत नहीं है.
मोदी सरकार की तरफ से लाए जा रहे नागरिकता संशोधन बिल का जमकर विरोध हो रहा है.
क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2019?
नागरिकता संशोधन बिल के तहत किसी विदेशी व्यक्ति को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी. इस बिल के तहत कोई भी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के नियमों में ढील देने का प्रावधान है. आपको बता दें कि मौजूदा कानून (Citizenship Act 1955) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना जरूरी है. नए बिल में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह अवधि घटाकर 6 साल कर दी गई है. गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार- 'सीएबी' में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.
कौन सा पहलू बना है विवादास्पद?
अगर नागरिकता संशोधन बिल 2019 को मंजूरी मिल जाती है तो ये बिल पड़ोसी देशों से भारत में शरण लेने के लिए आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा. इस लिस्ट में मुस्लिम धर्म का जिक्र नहीं हैं. अब पहला विवाद तो इस बात को ही लेकर हो रहा है कि यह बिल मुस्लिमों के खिलाफ है और दूसरी बात ये हो रही है कि आखिर धर्म के हिसाब से ये कैसे तय हो सकता है कि किसी नागरिकता देनी है. यानी अगर मुस्लिम शरणार्थी है तो उसे नागरिकता नहीं देंगे और हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी, ईसाई हुआ तो नागरिकता दे दी जाएगी. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि ये बिल मुसलमानों के खिलाफ है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन कर रहा है. बस यही इस बिल का विवादास्पद पहलू है और हो सकता है कि अगर मोदी सरकार बिल में मुस्लिमों को भी जोड़ ले तो सभी का साथ उसे मिल जाए.
नागरिकता संशोधन बिल vs नेशनल रजिस्टर सिटिजन
नागरिकता संशोधन बिल के सामने आने के बाद से एक ये बहस भी शुरू हो गई है कि ये बिल एनआर सी का उल्टा है. दरअसल ये दोनों अलग हैं. नागरिकता संशोधन बिल के तहत प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है, जबकि नेशनल रजिस्टर सिटिजन के तहत भारत में अवैध रूप से रहरहे विदेशियों की पहचान कर के उन्हें वापस भेजना है. एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने का प्रावधान है.
कौन साथ, कौन खिलाफ?
नागरिकता संशोधन बिल पर कांग्रेस मोदी सरकार विरोध में खड़ी है. राहुल गांधी का कहना है कि धर्म के आधार पर किसी को नागरिकता नहीं दी जा सकती है. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि यह बिल समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिसका हक आर्टिकल 14 के तहत मिला हुआ है. वहीं ओवैसी का कहना है कि ये बिल भारत को इजराइल बना देगा.
वहीं दूसरी ओर शिवसेना ने कहा है कि भले ही भाजपा के साथ उसके मतभेद हैं, लेकिन राष्ट्र के मुद्दे की बात है इसलिए वह नागरिकता संसोधन बिल का समर्थन करती है. जेडीयू और बीजेडी ने पहले विरोध किया था, लेकिन बाद में समर्थन में आ गए. आप, एआईएडीएमके और टीआरएस ने भी इस बिल का समर्थन किया है. भाजपा की दो अन्य सहयोगी शिरोमणि अकाली दल और एलजेपी ने भी इस बिल का समर्थन किया है.
मोदी सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह धर्म के आधार पर भेदभाव कर रही है. आरोप है कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 के जरिए मोदी सरकार उन हिंदुओं को भारत की नागरिकता देना चाहती है जो अवैध रूप से देश में आए थे और एनआरसी से बाहर हो गए हैं. वहीं दूसरी ओर, मुस्लिम लोगों को देश से वापस जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा, क्योंकि इस बिल के तहत मुस्लिमों को नागरिकता देने की बात नहीं कही गई है. आरोप लगाया जा रहा है कि हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए मोदी सरकार ये बिल ला रही है ताकि हिंदू प्रवासियों का भारत में बसना आसान किया जा सके. वहीं पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध इस चिंता के साथ किया जा रहा है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिंदुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है.
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