श्रीदेवी के मृत शरीर को 'बॉडी' कहने पर नाराज हुए ऋषि कपूर, लेकिन सच तो यही है
ऋषि कपूर ने ट्वीट किया है- 'अचानक श्रीदेवी 'बॉडी' कैसे बन गईं? सारे टीवी चैनल दिखा रहे हैं कि बॉडी आज रात मुंबई लाई जाएगी. अचानक आपकी पहचान खत्म हो गई और बॉडी बन गई.'
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अभिनेत्री श्रीदेवी के अचानक निधन से पूरा देश सदमे में है. 24 फरवरी की रात अचानक खबर आई कि दुबई में श्रीदेवी का हार्ट अटैक से निधन हो गया. खबर सुनते ही बॉलीवुड के तमाम सितारे सोशल मीडिया पर शोक जताने लगे और उन्हें श्रद्धांजलि देने लगे. लेकिन श्रीदेवी के निधन पर जिस तरह से मीडिया कवरेज हुआ, उससे अभिनेता ऋषि कपूर थोड़े नाराज भी दिखे.
उन्होंने ट्वीट किया, "अचानक श्रीदेवी 'बॉडी' कैसे बन गईं? सारे टीवी चैनल दिखा रहे हैं कि बॉडी आज रात मुंबई लाई जाएगी. अचानक आपकी पहचान खत्म हो गई और बॉडी बन गई."
How has Sridevi all of a sudden become the “body”? All television channels reporting “the body will be brought to Mumbai in the night!” Suddenly your individuality gets lost and becomes a mere body??
— Rishi Kapoor (@chintskap) February 25, 2018
The Media(electronic/print)behaved badly with me during these three days after Sridevi ji passed away. I accept I worked with her in two Iconic films but that doesn’t mean I be hawked for a quote or reaction. My prerogative to speak or not. Mobile rang incessantly whilst at work
— Rishi Kapoor (@chintskap) February 27, 2018
थोड़ी देर के लिए मीडिया कवरेज को छोड़ दीजिए, तो ऋषि कपूर की इस नाराजगी का जबाव भारतीय परंपरा और मनीषा में मिलता है. हिंदू जीवन धर्म में जन्मतिथियों के मनाने की परंपरा है और पुण्यतिथि सिर्फ पिता की मनाई जाती है. क्योंकि पिता की मृत्यु की घटना जीवन से जुड़ी है. भारतीय परंपरा कहती है कि मृत्यु के अनंतर ही पिता का सारा ऋण पुत्र को हस्तांतरित होता है.
कोई सामान्य हिन्दू श्राद्ध की सारी विधियां पूरी करे या न करे, दाह संस्कार के बाद पीपल के पेड़ के नीचे एक घड़ा जरूर बांधता है. उस घड़े में नीचे छोटा-सा छेद कर दिया जाता है. प्रतिदिन उस घड़े में पानी भरा जाता है और यह अपेक्षा की जाती है कि पानी निरंतर पीपल की जड़ में गिरता रहे. उस घड़े के पास प्रतिदिन दीपक जलाया जाता है. यह जीवन की साधना है.
महाप्रयाण के लिए गया जीवन ही उस घड़े के रूप में सनातन काल की शाखाओं में उतने दिनों तक लटका दिया जाता है जितने दिन प्रतीक रूप में उसे नया जन्म ग्रहण कर लेना है. और तब इस प्रतीक की जरूरत नहीं रह जाती है. इस प्रतीक की सार्थकता खत्म हो जाती है तो इसे भी फोड़ दिया जाता है, 'फूटा घट-घट घटहिं समाना'. एक चेतन व्यक्ति समष्टि में, सृष्टि में वापस चला जाता है.
विज्ञान पढ़ने वाले लोग जानते होंगे, हम सभी मूलतः ऊर्जा से बने हैं. हम एनर्जी का पार्ट हैं. उस एनर्जी या ऊर्जा को जो इस अखंड ब्रह्मांड में व्याप्त है और हर ओर प्रवाहित हो रही है. ऊर्जा के संरक्षण का सिद्धांत कहता है, 'ऊर्जा का न तो नाश हो सकता है न उसका सृजन किया जा सकता है. वह सिर्फ रूपांतरित हो सकता है.'
क्या भौतिकी का यह सामान्य नियम आपको गीता के श्लोकों की याद दिला रहा है? बिलकुल सही, हम सभी ऊर्जा का हिस्सा हैं और उसी में चले जाते हैं. आप चाहें तो इसको 'पंचतत्वों में विलीन हो जाना' भी कह सकते हैं.
क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम शरीरा.
शरीर के भौतिक अवशेषों को गंगा की धारा में या तीर्थ में प्रवाहित करने के पीछे भी जीवन की निरंतरता की खोज की भावना है. भस्मीभूत अवशेष एक अध्याय की समाप्ति के प्रतीक भर हैं, वे पूरी तरह अशुचि हैं. अपवित्र हैं. उन्हें छूने भर से आदमी अपवित्र हो जाता है, क्योंकि आदमी मृत्यु को छूने के लिए नहीं बना है. वह जीवन का प्रतीक है. इसलिए मृत्यु अशौच है, अपवित्र है. आदमी की देह जीवन के पार जीवन की खोज के लिए साधन है. भारतीय परंपरा कहती है ऐसी साधन देवताओं तक को मयस्सर नहीं है.
लेकिन बदलते वक्त में चलन उल्टा हो गया है. भस्मियां पवित्र हो गई हैं. उनको ताम्र कलशों में रखा जाने लगा है. चुपचाप शांति से प्रवाहित करने की बजाय बड़े-बड़े जुलूस निकाले जाते हैं. उनको एक जगह नहीं, जगह-जगह प्रवाहित करने का चलन चल पड़ा है. मृत्यु की पूजा भोंडे तरीके से शुरू हो गई.
दिवंगतों की मूर्तियों की स्थापना की जाने लगी हैं. मंदिर बनने लगे हैं. जो चला गया, उसकी पार्थिव आकृति इतिहास के लिए भले जरूरी हो, पर उसकी पूजा क्यों?
श्रीदेवी के मामले में उनका काम ही अनुकरणीय है. सिनेमा की कला में उनका योगदान ही सराहा जाना चाहिए. शरीर तो रीत गया, फूट गया (घड़े की तरह) तो उसकी पूजा क्यों?
यह श्लोक ऋषि कपूर ने नहीं सुना हो तो सुनना चाहिए,
न त्वहं कामये राज्यं, न स्वर्गं न पुनर्भवम.कामये दुःख ऋतांना केवलमार्स्त्तिनाशनम्..
यानी, न मैं राज्य चाहता हूं न स्वर्ग, न पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्ति. मैं केवल दुखितों के पीड़ा हरने का अवसर चाहता हूं.
जो कुछ भी जैसा जीवन चारों तरफ है, उसकी साझेदारी यही हिन्दू सनातन परंपरा का मूल तत्व है. दर्शन है. ऐसे में श्रीदेवी का कार्य ही उनकी पहचान है. बाकी जो बचा हुआ है, पांच तत्वों वाला, वह घड़ा है, रीता हुआ खाली हुई देह है बॉडी है. मैं जानता हूं कि संवेदनशील ऋषि कपूर बेहद शोकाकुल हैं पर उऩको श्रीदेवी की देह को 'बॉडी' कहने पर नाराज नहीं होना चाहिए.
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