Besharam Rang song: बॉलीवुड में कोरियाग्राफी चूल्हे में चली गई, लिहाजा गाने भी!
पठान कंट्रोवर्सी को दरकिनार कर निष्पक्ष हो कर हम अगर बेशर्म रंग गाना सुनें / देखें,तो इसमें कोरियोग्राफी के नाम पर वाक़ई ऐसा कुछ नहीं है जो अपने में भारतीय मूल्यों को प्रदर्शित करे. मतलब अगर इस गाने से थोड़ी देर के लिए शाहरुख़ और दीपिका को निकाल दिया जाए और फिर इसे देखा जाए तो कहीं से भी नहीं लगेगा कि हम किसी बॉलीवुड फिल्म का हिंदी गाना देख रहे हैं.
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शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की अपकमिंग फिल्म पठान हाल ही में सर्टिफिकेशन के लिए सीबीएफसी की एग्जामिनेशन समिति पहुंची थी. फिल्म देखने के बाद, समिति ने निर्माताओं को गाने सहित फिल्म में सुझाए गए बदलावों को लागू करने को कहा है. साथ ही समिति ने ये भी कहा है कि सिनेमाघरों में रिलीज से पहले निर्माताओं को फिल्म का रिवाइज्ड वर्शन सीबीएफसी के पास जमा करना होगा. पठान को 25 जनवरी, 2023 को रिलीज होना था मगर जिस तरह फिल्म अपने गाने 'बेशर्म रंग' के चलते कंट्रोवर्सी में आई इतना तो तय है कि शाहरुख़ खान और यश राज कैम्प की परेशानियां इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं हैं. भले ही फिल्म आने में अभी वक़्त हो मगर क्योंकि फिल्म के दो गाने बेशर्म रंग और झूमे जो पठान हमारे सामने हैं और आलोचकों के निशाने पर हैं. कॉस्ट्यूम से लेकर मेक अप तक लोकेशन से लेकर डांस और उसके ट्रीटमेंट तक लगभग हर चीज पर बात हो रही है और फिल्म के दोनों ही गानों को फूहड़ता की पराकाष्ठा बताया जा रहा है.
पठान के बेशर्म रंग गाने को लेकर तमाम तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन अगर वाक़ई कहीं अंगुली उठेगी तो वो इस गाने की कोरियोग्राफी पर ही उठेगी. जो कंट्रोवर्सी गाने को लेकर चल रही है. यदि उसे हम एक बार के लिए दरकिनार कर दें और निष्पक्ष हो कर गाना सुनें / देखें. तो इसमें वाक़ई ऐसा कुछ नहीं है जो अपने में भारतीय मूल्यों को प्रदर्शित करे. मतलब अगर इस गाने से थोड़ी देर के लिए शाहरुख़ और दीपिका को निकाल दिया जाए और फिर इसे देखा जाए. तो कहीं से भी नहीं लगेगा कि हम किसी बॉलीवुड फिल्म का हिंदी गाना देख रहे हैं.
बेशर्म रंग गाने में शाहरुख़ खान और दीपिका ने तमाम हदें पार कर दी हैं
आखिर बेशर्म रंग में हुई बेशर्मी का जिम्मेदार कौन है?
सवाल ये है कि आखिर इस दोष का जिम्मेदार कौन है? प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर तक बताने को तो हम किसी का भी नाम बता सकते हैं. लेकिन यदि सही मायनों में देखा जाए तो ऐसे वाहियात गाने जो हमारे सामने आ रहे हैं, उसके इकलौते जिम्मेदार इसके कोरियोग्राफर हैं. 'बेशर्म रंग' के लिए ये जिम्मेदारी क्योंकि वैभवी मर्चेंट ने निभाई है तो हम उनसे जरूर ये सवाल करना चाहेंगे कि क्या पर्दे पर जो दर्शक देख रहे हैं वो कोरियोग्राफी है?
सवाल इसलिए भी क्योंकि जब हमने गाना देखने की कोशिश की तो हमें डांस जैसी कोई चीज नहीं दिखी. और जो हमारे सामने था वो या तो जिम्नास्टिक थी या फिर लोगों को कम कपड़े या ये कहें कि नाम मात्र के कपड़े पहनवाकर करवाई गयी एक्रोबेटिक्स. साथ ही बतौर कोरियोग्राफर वैभवी से हमारा सवाल एक और है. जब गाने का कॉन्सेप्ट उनके पास आया होगा, जब वो इसे शूट करवाने का प्लान कर रही होंगी तो इस बात को जानती और समझती होंगी कि ये गाना एक हिंदी फिल्म के लिए बन रहा है मगर अब जबकि ये गाना हमारे सामने हैं तो हम उनसे पूछेंगे कि इसमें टिपिकल बॉलीवुड मसाला अगर मिस हुआ है तो क्या वो इसकी जिम्मेदारी लेंगी?
कब आपने पर्दे पर आखिरी बार देखा था डांस?
बात सिर्फ पठान के गाने बेशर्म रंग की नहीं है. बतौर दर्शक आप खुद इस सवाल का जवाब दें कि वो आखिरी बार कब था जब आपने पर्दे पर किसी एक्ट्रेस को डांस करते हुए देखा? वो कब था जब आपने किसी डांस फॉर्म को फिल्म में देखा और आपने मुंह से वाह निकला? इस सवाल के जवाब में दिमाग के आप चाहे जितने भी घोड़े दौड़ा लें मिलेगा यही कि गुजरे 8-10 सालों से इंडस्ट्री से एक विधा के रूप में डांस का पूरा कॉन्सेप्ट ही ख़त्म हो गया है.
जब ट्रेन्ड डांसर होना थी एक्ट्रेस बनने की शर्त
आज भले ही रंग बिरंगी बिकनी में दीपिका पर्दे पर आग लगा रही हों. लेकिन बेशर्म रंग में जो उन्होंने डांस के नाम पर जिम्नास्टिक किया है उसमें कहीं भी हमें क्लास नजर नहीं आता. इसके विपरीत हमने बॉलीवुड का वो दौर भी देखा है जब एक्ट्रेस के रूप में हमारे सामने मीना कुमारी, आशा पारेख, वहीदा रहमान, वैजंती माला, रेखा जैसी अभिनेत्रियां थीं फिर हमने एक दौर वो भी देखा जब माधुरी, जूही चावला, श्री देवी जैसी एक्ट्रेस की पर्दे पर एंट्री हुई. इन तमाम एक्ट्रेस की खास बात ये थी कि ये जहां एक तरह बेहतरीन एक्ट्रेस थीं तो वहीं जब बात डांस की आती तो भी इनका किसी से कोई मुकाबला नहीं रहता. इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि ये ट्रेन्ड डांसर्स थीं जो अलग अलग तरह के डांस फॉर्म को जानती थीं. ध्यान रहे तब का दौर ऐसा था जब फिल्म में एक्ट्रेस को लेने की शर्त यही होती कि उसे डांस आए.
वेस्टर्न कोरियाग्राफी गाने को एक्स फैक्टर दे सकती है लेकिन गाना हिट हो जरूरी नहीं
गुजरे कुछ सालों में एक इंडस्ट्री के रूप में बॉलीवुड बदल गया है और क्योंकि सिनेमा को ग्लोबल कहा जा रहा है ये चीज हमें गानों में साफ़ दिखाई देती है. फिल्म भले ही दिल्ली या एनसीआर के बैकड्रॉप में हो या फिर कोई छोटा शहर फिल्म का हिस्सा हो लेकिन जब इसका गाना शूट होता है तो सीधा हमें विदेश पहुंचा दिया जाता है जहां बीच, बेब्स, बिकनी, बियर और डांस के नाम पर अजीबो गरीब चीजों के जरिये इसमें एक्स फैक्टर डाला जाता है. सवाल प्रोड्यूसर्स से है कोरियोग्राफर्स से है. आखिर ये लोग इस बात को क्यों नहीं समझ रहे कि अब तकनीक हम पर कुछ इस हद तक हावी हो गयी है कि बतौर दर्शक हम इन चीजों से बोर हो गए हैं. हमें ख्याली दुनिया नहीं ओरिजिनल देखना है. साफ़ बात ये है कि आज गानों में जो भी चीज दिखाई जा रही है हम अपने को उससे शायद ही रिलेट कर पाएं.
साउथ इसलिए हिट क्योंकि उसने अपने मूल को बचा कर रखा है!
मौजूदा वक़्त साउथ का है. जिस तरह हिंदी पट्टी के बीच साउथ की लोकप्रियता बढ़ी वो हैरान करने वाला है. इस बात में कोई शक नहीं है कि कंटेंट के लिहाज से मौजूदा वक़्त में साउथ सिनेमा का बॉलीवुड से कोई मुकाबला नहीं है. उनका जो डांस होता है या फिर जो उनकी कोरियोग्राफी होती है हम उससे अपने को जोड़ पाते हैं. ऐसा नहीं था कि पुष्पा द फायर में पुष्पराज किसी फॉरन लोकेशन पर एक्ट्रेस के साथ डांस कर रहा है. श्रीवल्ली पर कमर हिला रहा है या फिर कांतारा के किसी गाने का पोर्शन स्कॉटलैंड की पहाड़ियों में शूट किया गया.
सवाल ये है कि क्या साउथ के कोरियोग्राफर प्रयोग नहीं कर सकते? बिलकुल कर सकते हैं लेकिन फिर वो इस बात को जानते हैं कि अगर उन्होंने प्रयोग के नाम पर कुछ कर लिया तो फिर वो जिसका निर्माण कर रहे हैं वो बर्बाद हो जाएगी. साउथ वाले जानते हैं कि उनकी ऑडिएंस कौन है. उसे क्या देखना है, कुलमिलाकर जिस दिन सही कोरियाग्राफी की शुरुआत होगी हमें अच्छे गाने पर्दे पर देखने को मिलेंगे, तब हम पर्दे पर दीपिका जैसी एक्ट्रेस को बिकनी में बेशर्म रंग में रंगते नहीं देखेंगे.
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