अच्छा होता अगर अक्षय कुमार ये नेशनल अवार्ड न लेते
बीजेपी के लिए फिल्म, कला और संस्कृति से जुड़े क्षेत्रों में बीजेपी की विचारधारा का समर्थन करने वाले बहुत कम लोग हैं, तो जब भी कोई शख्स इन्हें इस विचारधारा का समर्थन करते दिखता है, वो उसे हाथों-हाथ लेते हैं और उसे उपकृत कर देते हैं.
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इस साल 64 वां नेशनल फिल्म अवार्ड अक्षय कुमार को दिया जाना उनके लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है. क्योंकि अपने 25 सालों के करियर में उन्हें अब तक न तो कोई फिल्म फेयर अवार्ड मिला और न ही कोई नेशनल अवार्ड. खुशी भी है कि इतनी बेहतरीन फिल्में देने के बाद आखिरकार अक्षय कुमार को नेशनल अवार्ड मिला, वहीं इस बात का दुख भी कि उनकी फिल्म 'रुस्तम 'के लिए अवार्ड मिलना किसी के गले नहीं उतर रहा. विरोध के सुर तेज हैं, वहीं कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं जिसका संबंध इस अवार्ड को दिए जाने के कारणों से जुड़ा भी दिखाई दे रहा है.
विरोध का कारण साफ है कि 2016 में 'रुस्तम' से बेहतर फिल्में थीं, अगर मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा की ही बात करें तो 'पिंक' का नाम सबसे ऊपर था, उसके बाद आमिर खान की 'दंगल'. अगर अमिताभ बच्चन और आमिर खान का काम अक्षय कुमार के काम से बेहतर नहीं था तो ये कहने में जरा भी संकोच नहीं होता कि खुद अक्षय का काम भी इस फिल्म में उतना अच्छा नहीं था कि उन्हें इसके लिए नेशनल अवार्ड मिले. बल्कि इससे बेहतर तो वो एयरलिफ्ट में नजर आए थे. खुशी होती अगर उन्हें ये अवार्ड 'ऐयर लिफ्ट' के लिए दिया जाता.
तो क्या जो बातें सोशल मीडिया पर सुनाई दे रही हैं उन्हें सही मान लिया जाए. क्या ये समझा जाए कि अक्षय कुमार को नेशनल अवार्ड नहीं बल्कि नेशनलिज्म अवार्ड मिला है.
क्यों माना जाए कि ये नेशनलिज्म अवार्ड है
बीजेपी के लिए फिल्म, कला और संस्कृति से जुड़े क्षेत्रों में बीजेपी की विचारधारा का समर्थन करने वाले बहुत कम लोग हैं, तो जब भी कोई शख्स इन्हें इस विचारधारा का समर्थन करते दिखता है, वो उसे हाथों-हाथ लेते हैं और उसे उपकृत कर देते हैं. और ये भला क्यों भूला जाए कि ये राष्ट्रीय पुरस्कार सरकार ही देती है, भारत के राष्ट्रपति अपने हाथों से ये सम्मान विजेताओं को देते हैं. और इस समय तो सरकार भी बीजेपी की है.
जरा इतिहास में जाएं और गौर करें कि अजय देवगन को 2002 में उनकी फिल्म 'लेजेंड ऑफ भगत सिंह' के लिए नेशनल अवार्ड मिला था. और उस वक्त भी एनडीए की सरकर थी. तब अजय देवगन के लिए भी ठीक ऐसी ही बात उठी थी, लेकिन जब 1998 में फिल्म जख्म के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड दिया गया तो किसी ने सवाल नहीं उठाया, क्योंकि सही मायने में वो उसके हकदार थे.
2016 में ही जब सारे देश में बीजेपी के खिलाफ बुद्धिजीवियों का वर्ग 'असहिष्णु' हो चला था, उस वक्त जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल के मंच से काजोल ने ये कहकर कि 'देश में असहिष्णुत जैसी कई चीज नहीं है' से अपना रुख साफ कर दिया था. जिस बेबाकी से उन्होंने ये बात कही उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये था कि किस मंच पर कही, वो मंच जहां अमूमन वामपंथी स्वर सुनाई देते थे, लेकिन वहां काजोल ने ऐसा कहकर सबको चौंका दिया था. और इस बेबाकी का ईनाम काजोल को प्रसार भारती बोर्ड की सदस्य बनाकर दिया गया और उनके पति अजय देवगन को पद्मश्री के रूप में मिला.
जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में काजोल
नोटबंदी पर अजय देवगन ने खुलकर मोदीजी के फैसले का स्वागत किया.
You really need guts to take a step like this; hats off as this will be beneficial in long run: Ajay Devgan #DeMonetisation pic.twitter.com/uPeHeRvODQ
— ANI (@ANI_news) November 13, 2016
अक्षय कुमार की बात करें तो वो अपनी फिल्मों के जरिए दूसरे मनोज कुमार बनते दिखाई दे रहे हैं. देशभक्ति और राष्ट्रहित के लिए न सिर्फ फिल्में करना बल्कि असल जीवन में भी देश और सेना के लिए वो हमेशा आगे दिखाई देते हैं. किसानों की मदद करना, सैनिकों के लिए फंड भेजना, आर्मी जवानों के लिए एप्प लॉन्च करना, और प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को आगे बढ़ाना हो, तो अक्षय हमेशा अव्वल दिखे. सर्जिकल स्ट्राइक पर अक्षय ने सरकार के इस कदम की तारीफ करते हुए ट्वीट भी किया.
Proud of the Indian Army for successfully carrying out the anti-terrorism operation.Glad the Government took this bold step,was about time!
— Akshay Kumar (@akshaykumar) September 29, 2016
अक्षय कुमार ने मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान का साथ देने के लिए तो पूरी की पूरी फिल्म ही बना डाली. 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' पर अक्षय न सिर्फ फिल्म बना रहे हैं बल्कि उको लेकर समाज को जागरुक भी कर रहे हैं. देखिेए क्या कहा अक्षय ने-
Time hai apni #SochAurShauch dono badalne ka. Dekhiye, sochiye aur apne vichar bataiye ???????? pic.twitter.com/qpYdZwUpQ9
— Akshay Kumar (@akshaykumar) March 24, 2017
यही नहीं जब नए साल पर बैंगलुरू में सड़कों पर लड़कियों के साथ ज्यादती की गई थी, तो अक्षय ने ट्विटर पर वीडियो शेयर करके अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया था. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और इस वाकये के बाद अक्षय कुमार का विरोध यूं समझिए कि वहां की सरकार का विरोध करना था, यानी एक तरह से भाजपा का सपोर्ट करना.
अक्षय कुमार ने 26 जनवरी पर भारत के शहीद सैनिकों के परिवारों के लिए एक एप्प या वेबसाइट लॉन्च करने की बात की थी, इससे शहीदों के परिवारों की मदद करने के लिए जनता सीधे उन परिवारों से जुड़ सकेगी और आर्थिक रूप से मदद कर सकेगी. ये आइडिया सरकार को बेहद पसंद आया और अब अक्षय कुमार की यही सोच आकार लेने जा रही है. 'भारत के वीर' नाम के इस वेब पोर्टल को भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह लान्च करने जा रहे हैं.
Here I am standing up AGAIN for something I truly believe in coz THEIR well-being MATTERS to ME.I'd love to know if it does to YOU as well? pic.twitter.com/3Y5NPmTJhg
— Akshay Kumar (@akshaykumar) January 24, 2017
तो इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अजय देवगन हों या अक्षय कुमार दोनों अनऑफीशियली बीजेपी कार्यकर्ताओं की तरह से काम कर रहे हैं. ये लोग मुखर होकर वहां बीजेपी का साथ देते हैं जहां पार्टी को इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है. और जाहिर है बीजेपी की सरकार अपने इन स्टार्स को उनके किए का ईनाम इन अवार्ड्स के रूप में ही दे रही है. आश्चर्य मत कीजिएगा अगर आने वाले समय में अक्षय कुमार को ये सरकार पद्म सम्मान से नवाज दें. और अक्षय ही क्यों, इस लिस्ट में बहुत सारे नाम हैं, हर वो सेलिब्रिटी जो पार्टी की विचारधारा का हो और बीजेपी सरकार का समर्थन करे, वो नेशनल अवार्ड और पद्म पुरस्कार से यूं ही नावाजा जाता रहेगा, यहां आपका काम, आपकी अदायगी फिर उतने मायने नहीं रखती.
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