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Updated: 26 अगस्त, 2018 12:35 PM
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महान व्यक्ति के नाम से भला कौन अपना नाम नहीं जोड़ना चाहता, फिर चाहे वह कोई आम व्यक्ति हो या फिर कोई देश. अब ऐसा ही कुछ हो रहा है संत की उपाधि से नवाजी गईं मदर टेरेसा के साथ. मदर टेरेसा की विरासत को अपना बताने के लिए उनके जन्मभूमि वाले देशों के बीच वर्षों से छिड़ी होड़ अब फिर से चर्चा में आ गई है. दरअसल ये विवाद बाल्कन देशों मैसेडोनिया और अल्बानिया के बीच छिड़ा है.

मैसेडोनिया में मदर टेरेसा का जन्म हुआ था जबकि उनके माता-पिता अल्बानियाई मूल के थे, जिस वजह से इन दोनों पड़ोसी देशों से टेरेसा का गहरा संबंध था और यही वजह है कि दोनों के बीच टेरेसा को अपना  नागरिक साबित करने के लिए वर्षों से होड़ मची है. टेरेसा को अपना साबित करने के लिए इन देनों देशों के पास अपने तर्क है और उनके सम्मान में ये देश मेमोरियल बनवाने से लेकर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने जैसे कदम उठाते रहे हैं. आइए जानें क्यों दोनों देशों के बीच मदर टेरेसा को लेकर मची है होड़. 

टेरेसा एक, उन्हें अपना बताने वाले देश कईः

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोपजे (तब के ओटोमन साम्राज्य के कोसोवो विलायेत के शहर) में हुआ था, वर्तमान में स्कोपजे मैसेडोनिया की राजधानी है. उनके माता-पिता के भी मूल जन्म स्थान को लेकर काफी विवाद है. उनकी मां अल्बानियाई मूल की थीं, जिनका परिवार कोसोवो से आया था. लेकिन उनके पिता के जन्म स्थान को लेकर ज्यादा विवाद है. उनके पिता को अल्बानियाई लोग अल्बानिया का बताते हैं जबकि मैसेडोनिया का कहना है कि उनके पिता मैसेडोनिया के वाल्च समुदाय से आते थे.

इससे पता चलता है कि मदर टेरेसा का अल्बानिया और मैसेडोनिया से जन्म से लेकर खून तक का गहरा नाता था. ऐसे में होना तो ये चाहिए था कि इन दोनों देशों का ही उन पर बराबर का हक होता लेकिन ये दोनों देश उन पर सिर्फ अपना हक जताते हैं. टेरेसा को अपना बताने की प्रतिद्वंद्विता इन दोनों देशों में इस कदर है कि दोनों के यहां टेरेसा के नाम पर सड़कें, मूर्तियां, अस्पताल और संग्रहालय हैं.

यह भी पढ़ें: 'संत' मदर टेरेसा की उपाधि पर विवाद क्यों है?

मुस्लिम बहुल देश अल्बानिया में 2003 में टेरेसा के बीटिफिकेशन घोषित किए जाने की वर्षगांठ को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया है. तो मैसेडोनिया भी इस मामले में पीछे नहीं है और वहां टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने के उपलक्ष्य में कई समारोह आयोजित किए जा रहे हैं. वहां का राष्ट्रीय बैंक टेरेसा के सम्मान में चांदी के सिक्के जारी करने जा रहा है.

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मदर टेरेसा की विरासत को लेकर अल्बानिया और मैसेडोनिया के बीच वर्षों से होड़ मची है

अब टेरेसा के जन्म भूमि से जुड़े इन दोनों देशों के अलावा उनकी कर्मस्थली रहा भारत देश भी है, जो टेरेसा को अपना मानता है. 2009 में अल्बानिया द्वारा टेरेसा के अवशेषों को उसे सौंपे जाने को भारत ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि ‘टेरेसा अपने देश, अपनी भूमि पर शांति से रह रही हैं.’

टेरेसा के अच्छे कार्यों को मिल रहा है सम्मानः

मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीबों और बेसहारा लोगों की सेवा में अर्पित कर दिया. मानवता के कल्याण के लिए उनके अच्छे कामों के कारण ही उन्हें पूरी दुनिया में सम्मान के साथ याद किया जाता है. यही वजह है कि मैसेडोनिया और अल्बानिया से लेकर भारत तक हर देश उन्हें अपना बताना चाहता है.

लेकिन अब इसकी तुलना जरा हजारों निर्दोषों की मौत की वजह बने अलकायदा प्रमुख और खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन से कीजिए. क्या कोई देश ओसामा को अपना नागरिका बताना चाहेगा. क्या टेरेसा की तरह कभी ओसामा को भी अपना बताने के लिए किन्हीं दो देशों के बीच होड़ छिड़ेगी?

जवाब है, बिल्कुल नहीं. ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि मानवता के दुश्मन और अपने बुरे कार्यों से मानवता को नुकसान पहुंचाने वाले शख्स को तो उसका जन्मदाता देश भी अपना मानने से इंकार कर देगा, ऐसे शख्स को अपना बताने में खुद उसके अपने देश को भी शर्म आएगी. लेकिन टेरेसा के महान और बेहतरीन कार्यों की वजह से दुनिया का हर देश उन्हें अपना नागरिक बताकर गौरवान्वित महसूस करेगा.

तो यही फर्क है अच्छाई और बुराई के बीच का, जो फर्क है मदर टेरेसा और ओसामा बिन लादेन में है. अच्छाई यानी टेरेसा को हर कोई अपनाना चाहता है लेकिन बुराई यानी ओसामा से हर कोई अपना पल्ला झाड़ लेना चाहता है!

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